3 April 2018

WISDOM --- जन - आन्दोलन प्राय: उसी स्थिति में गति पकड़ते हैं जब उसके द्वारा जनता की किसी समस्या का समाधान होता हो

   वर्ष  1905  जब  देश  पर  लार्ड  कर्जन  का  कूटनीति पूर्ण  शासन  चल  रहा  था  l  वे  जब  से  भारत  के  वायसराय  बन  कर  आये  थे  , तब  से  यहाँ  की  जन - जागृति  को  दबाने  की  तरकीबें  कर  रहे  थे  और  उनका  अंतिम  प्रहार  था -- 19  अक्टूबर  1905  को   बंगाल  का  विभाजन  l  उस  समय  जनता  में   विदेशी  शासकों  के  प्रति  विद्रोह  का  भाव  अपने  चरम  बिन्दु  पर  था  l  देश  भर  में  आन्दोलन  चला  l  ज्यों - ज्यों   आन्दोलन  गति  पकड़ता  गया   सरकार  का  दमन - चक्र  भी   क्रूर  और  दानवी  होता  गया  l 
     '  जन - भावनाओं  का  दमन   वह  भी  आतंक  के  बल  पर  ,  कोई  भी  सरकार  सफल  नहीं  रही  है  l   इतिहास  इस  बात  का  साक्षी  है   l  मन  की   पाशविक  प्रक्रिया  विद्रोह  की  आग  को   कुछ  क्षणों  के  लिए  भले  ही  कम  कर  दे  ,  परन्तु  वह  अन्दर  ही  अन्दर  सुलगती  रहती  है   और  जब  विस्फोट  होता  है   तो  बड़ी  से  बड़ी  संहारक  शक्तियां   और  साम्राज्य  ध्वस्त  हो  जाते  हैं  l  
  शताब्दियों  से    भारतीय  समाज  पर  किये  जाने  वाले  अत्याचारों  की   भी  प्रतिक्रिया   अन्दर  ही  अन्दर  सुलगती  रही    और  बंग - भंग  योजना  का  प्रतिरोध  करते  समय  फूट  पड़ी  l  उस  समय  देश  का  बच्चा - बच्चा   आततायी  के  सामने  खुल  कर  मुकाबला  करने  के  लिए   आ  खड़ा  हुआ   l