' मैं ही सब कुछ हूँ , मेरा विचार ही सबसे अच्छा है , मैं सबसे अधिक सुन्दर हूँ , मैं धनी हूँ , मैं पंडित हूँ आदि अहंकारिक भावनाओं के कारण ही संसार में कलह , झंझट , युद्ध और महायुद्ध की विभीषिकाएँ उठ खड़ी होती हैं l '
अपने इस अहंकार की तुष्टि के लिए ही मनुष्य दूसरों पर अत्याचार करता है l पराया माल छीनना , हड़पना , चोरी कर लेना , दूसरों की मेहनत का उचित पारिश्रमिक न देना , मानवीयता नहीं है l इससे मनुष्य का घोर आंतरिक पतन होता है l मनुष्य जानता है कि इस धन को वह अपनी लाश के साथ नहीं ले जा सकता , फिर भी उसका लालच कम नहीं होता !
संसार की क्षणभंगुरता को हमेशा ध्यान में रखने से ही यह संभव है कि मनुष्य इस दुष्प्रवृति से बचा रह सके l संकल्प के धनी व्यक्ति ही अहंकार को कुचलने का साहस कर पाते हैं l
अपने इस अहंकार की तुष्टि के लिए ही मनुष्य दूसरों पर अत्याचार करता है l पराया माल छीनना , हड़पना , चोरी कर लेना , दूसरों की मेहनत का उचित पारिश्रमिक न देना , मानवीयता नहीं है l इससे मनुष्य का घोर आंतरिक पतन होता है l मनुष्य जानता है कि इस धन को वह अपनी लाश के साथ नहीं ले जा सकता , फिर भी उसका लालच कम नहीं होता !
संसार की क्षणभंगुरता को हमेशा ध्यान में रखने से ही यह संभव है कि मनुष्य इस दुष्प्रवृति से बचा रह सके l संकल्प के धनी व्यक्ति ही अहंकार को कुचलने का साहस कर पाते हैं l