खडाऊं पहन के पंडितजी मंदिर की और चले l कदम बढ़ने के साथ - साथ खडाऊं से भी खट-खट का स्वर निकल रहा था l पंडितजी को यह आवाज पसंद न आई l वह एक स्थान पर खड़े होकर खडाऊं से पूछने लगे ---- " अच्छा यह तो बताओ कि पैरों के नीचे इतनी दबी रहने पर भी तुम्हारे स्वर में कोई अंतर क्यों नहीं आया ? "
खडाऊं ने पैरों के नीचे दबे -दबे ही पंडितजी की जिज्ञासा शांत करते हुए कहा ---- " मैं तो जीने की इच्छुक हूँ , पंडितजी , इस संसार में ऐसे लोगों की कमी नहीं जो दूसरों के दबाव में आकर अपना स्वर मंद कर लेते हैं , उन्हें तो जीवित अवस्था में भी मैं मरा हुआ मानती हूँ l "
खडाऊं ने पैरों के नीचे दबे -दबे ही पंडितजी की जिज्ञासा शांत करते हुए कहा ---- " मैं तो जीने की इच्छुक हूँ , पंडितजी , इस संसार में ऐसे लोगों की कमी नहीं जो दूसरों के दबाव में आकर अपना स्वर मंद कर लेते हैं , उन्हें तो जीवित अवस्था में भी मैं मरा हुआ मानती हूँ l "