13 February 2018

WISDOM ------ जीवन में मौन का अभ्यास जरुरी है , इससे वाद - विवाद थमेंगे

' अनावश्यक  बोलने  में  जितनी  गलतफहमियाँ  और  समस्याएं  पैदा  होती  हैं ,  उतनी  मौन  से  नहीं  होतीं  हैं  l  निरर्थक  बोलना  बहुत  थकाने  वाली  प्रक्रिया  है  l  इससे  शरीर  में  गर्मी  पैदा  होती  है  l  जब  लोग  इतने  पढ़े - लिखे  और  बुद्धिजीवी  नहीं  थे , तब  कम  बोलते  थे  और  ज्यादा  प्रमाणिक  थे  l '
  आज  शरीर  में  उष्णता  बढ़ने  का  एक  कारण  यह  भी  है  --- निरर्थक  बोलना  और  जरुरत  से  ज्यादा  बोलना  l  मौन  रहने  से  अनावश्यक  कलह - क्लेश  नहीं  होंगे   और  शांति  का  साम्राज्य  फैलेगा  l
     महात्मा  गाँधी  भी  अपनी  दिनचर्या  में   मौन  रहने  का  नियमित  अभ्यास  करते  थे   l  सोमवार  उनके  आश्रम  में ' मौनवार  ' के  नाम  से  जाना  जाता  था  l  इस  दिन  सारे  आश्रमवासी मौन  रहते  थे  l  महात्मा  गाँधी  के  लिए  मौन  एक  प्रार्थना  के  समान  था  l  उनका  कहना  था  ---- " बोलना  सुन्दर  कला  है ,  लेकिन  मौन  इससे  भी  ऊँची  कला  है  l  मौन  सर्वोत्तम  भाषण  है  l  अगर   एक  शब्द  से  काम  चले ,  तो  दो   मत  बोलो   l "
  संत  एमर्सन  का  कहना  था ---- " आओ  हम  मौन  रहें ,  ताकि  फरिश्तों  की  कानाफूसियाँ  सुन  सकें  l "
 मौन  आत्मा  का  सर्वोत्तम  मित्र  है  l  जब  हम  मौन  धारण  करते  हैं  तो  सहज  ही   प्रकृति  का  अंश  बन  जाते  हैं   क्योंकि  प्रकृति  में   तो  सर्वत्र  मौन  पसरा  हुआ  है  l