9 February 2018

WISDOM -----

    कैकेयी  मंथरा  के  बहकावे में  आ  गई  और   भरत  को  राज्य  तथा  राम  को   वनवास  मांग  बैठी   l   दशरथ जी  ने  शरीर  त्याग  दिया ,  कौशल्या  पर  दुःख  का  पहाड़  टूट  पड़ा   परन्तु  एनी  माताओं  के  सम्मान  का  उन्हें  पूरा  ध्यान  था  l   राजा  जनक  ने  सुना  कि  जानकी  भी  साथ  गईं  हैं  l  उन्होंने  दूतों  द्वारा  सही  स्थिति  का  पता  लगाया  और  भरत  का  समर्थन  करने  चित्रकूट  पहुँच  गये   l  भरत  के  कारण  राम - सीता  को  वनवास  हुआ  ,  इस  नाते  उनको  अपमानित  करने  का  भूलकर  भी  प्रयास  नहीं  किया  l    ऐसे  एक  दूसरे  के  सम्मान  के  भाव  ने   विकट  परिस्थितियों  में  भी  अयोध्या  का  संतुलन  बनाये  रखा   l  भूल  सिर्फ  भूल  रह  गई  ,  उससे  परस्पर  स्नेह   और  पारिवारिक  सद्भाव  में  कोई  फर्क  नहीं  पड़ा   l  
  इसके  विपरीत   महाभारत  एक - दूसरे  को  सम्मान  न  दे  पाने  की   भीषण  प्रतिक्रिया  के  रूप  में  उभरा  था   ---  बचपन    में  दुर्योधन  राजमद  में  पांडवों    सम्मान  न  दे  सका   l  भीम   सहज   प्रतिक्रिया   के  रूप  में   अपने  बल  का  उपयोग  कर  के  उन्हें    अपमानित   करने   लगे  l    द्रोपदी  सहज  परिहास  में  भूल  गई  कि   दुर्योधन  को  ' अंधों  के  अंधे  '  संबोधन  से  अपमान  का  अनुभव  हो  सकता  है   l 
  दुर्योधन  ईर्ष्या - द्वेष वश   नारी  के  शील  का  महत्व  ही  भूल  गया   तथा  द्रोपदी  को  भरी  सभा  में  अपमानित  करने  पर  उतारू  हो  गया   l 
  यही  सब  कारण  जुड़ते  गए  तथा  छोटी - छोटी  शिष्टाचार  की  त्रुटियों  की   चिनगारियां  भीषण  ज्वाला  बन  गईं,  महाभारत  हो  गया  l
  यदि  परस्पर  सम्मान  का  ध्यान  रखा  जा  सका  होता  ,  अशिष्टता  पर  अंकुश  रखा  गया  होता   तो  स्नेह  बनाये  रखने  में   कोई  कठिनाई  नहीं   होती  l  छल - कपट  और  षड्यंत्रों  में  वक्त  बरबाद  न  होता ,  भीष्म  पितामह  और   श्रीकृष्ण  जैसे  युग - पुरुषों  के  प्रभाव  का  लाभ  मिल  जाता  l