2 February 2018

जाति से महानता नहीं मिलती , ऊँचे बनना चाहते हो तो अच्छे कर्म करो ---- संत रविदास

  ' जिस  तरह   फूलों  से  खुशबू  ही  आती  है  ,  भले  ही  वे   कैसी  ही  भूमि  में  खिले  हों  l  उसी  तरह  उच्चस्तरीय  आत्माएं   कहीं  भी  जन्म  ले  लें ,  उनके  सद्गुणों  की  सुगंध   चारों  ओर  स्वत:  ही  फैल  जाती  है  l  '  
   संत  रविदास  बचपन  से  ही  बड़े  उदार  थे  l    वे  सोचते  थे    कि  सामर्थ्यवानो  को  अपनी  सम्पदा  में  से  निर्धनों  की  मदद  करनी  चाहिए  , अन्यथा  संग्रह  किया  हुआ  अनावश्यक  धन   उनके  लिए  विपत्ति  रूप  ही  सिद्ध  होगा  l   संत  रविदास  के  पिता  चमड़े  का  व्यापार  करते  थे ,  जूते  भी  बनाते  थे  l   संत  रविदास  प्रतिदिन  एक  जोड़ा  जूता  अपने  हाथ  से  बनाकर  जरुरतमंदों  को  दान  किया  करते  थे  l  उनकी  सच्चाई  में  निष्ठा  की  परख  करते  हुए   रामानंद  जैसे  महान  संत    कुटिया  में   पधारे   और  उन्हें  अपने  शिष्य  रूप  में  स्वीकार  किया   l
  उच्च  वर्ग  के  कहलाने  वाले  लोगों  को  संत  रविदास  की  प्रतिष्ठा  सहन  नहीं  होती  थी  ,  अत:  वे  उनकी  निंदा  व  उपहास  करते  थे  l   इस  पर  संत  रविदास  हँस  देते  और  कहते ---- " हाथी  अपने   रास्ते  चला  जाता  है  ,  उसे  किसी  के  धूलि  फेंकने   या  चिढ़ाने  से   विचलित  होने  की  जरुरत  नहीं  होती  l  "
धैर्य , साहस  और  सच्चाई   जिसके  साथ  है  ,  उसका  सारा  संसार  भी  विरोधी  होकर  कुछ  बिगाड़  नहीं  सकता   l   उन्होंने   घ्रणा  का  प्रतिकार  घ्रणा  से  नहीं  किया  ,  बल्कि  प्रेम  से  किया  ,  इसलिए  वे  हर  इनसान  के  लिए   प्रेरणा  स्रोत  बन  सके  l    जीवन  मानवता  के  लिए  मिसाल  है  l