6 January 2018

WISDOM ------ किसी हिंसक डाकू से अहिंसक योद्धा अनीति और अन्याय के लिए खतरनाक होता है

सत्य  और  अहिंसा  के  उपासक   डॉ. मार्टिन  लूथर  किंग  की  आयु  जब  बारह - तेरह  वर्ष  की   थी  तभी  से  वे  गोरों  द्वारा  हब्शियों  पर  किये  जाने  वाले   अन्यायों  को  देखने  और   समझने  लगे  थे  l   जब  स्कूल  का   कोई  बदमाश  लड़का  किंग  को  थप्पड़  मार  देता   तो  वह  उसका  बदला  लेने  के  लिए  उस  पर  हाथ  नहीं  उठाते  थे  l  एक  दुकान  में  गोरी  स्त्री  ने  उन्हें  चपत  लगा  दी  और  अपशब्द  कहे   l  किंग  ने  कुछ  कहा  नहीं , बस ! निर्भय  भाव  से   उसकी  और  देखते  रहे   l ऐसे  अवसरों  पर  वह  बिना  बोले  मन  ही  मन  उनका  जोरदार  प्रतिकार  का  उपाय  सोचा      करते  थे   l  उनकी  दादी  कहा  करती   थीं ---- ' किंग  की  बाहरी  शान्ति  के  नीचे  एक  अग्नि  प्रज्ज्वलित  रहती  है  l "
उन्होंने  कारखानों  में  भी   अपने  परिचितों , गरीब  लोगों  के  साथ  अन्याय  का  व्यवहार  होते  देखा  l  इससे उनको  विश्वास  हो  गया  कि  जातिगत  अन्याय   और  आर्थिक - अन्याय  दोनों  आपस  में  मिले - जुले  चलते  हैं  l 
   डॉ.  किंग  ने   देखा कि  अब  से  सौ  वर्ष  पूर्व  एक  महान  अमेरिकन  अब्राहम  लिंकन  के  प्रयास  और  आत्म - बलिदान  से   उनको  कानूनी  गुलामी  से  मुक्ति  मिल  गई  ,  फिर  भी  अमेरिका  की  दक्षिणी  रियासतों  में   गोरे   अधिकारियों  का  नीग्रो  के  साथ  व्यवहार  बहुत  ही  अन्यायपूर्ण   और  अमानवीय  था l        एक  घटना  है ,  उनके  आन्दोलनकारी  जीवन  का  प्रथम  अध्याय -------   एक    नीग्रो   युवती  जिसका  नाम  था  रोजपार्क   बस  में  बैठी  जा  रही  थी  l  रास्ते  में  कुछ  गोरे  यात्री  चढ़े  ,  उन्होंने  इन  नीग्रो   को  पीछे   की  सीट  पर  जाने  को  कहा  l  तीन  यात्री  तो  चले  गए  किन्तु  रोजापार्क  नहीं  उठी    तो  उसे  गिरफ्तार  कर  अदालत  में  पेश  किया  और  उस  पर  10  डालर  जुर्माना  लगा  l   नीग्रो  पर  अत्याचार  और  अपमान   तो  अनगिनत  बार   इससे  भी  अधिक  हो  चुका  था  किन्तु  अब  इन  पद - दलित   लोगों  में  स्वाभिमान  की  भावना  जाग्रत  हो  गई  थी  l  सबने  संगठित  रूप  से  बसों  के  बहिष्कार  का  निश्चय  किया   l   उस  दिन  मोंट्गुमरी   की  सड़कों  पर   विचित्र  द्रश्य  था l   हजारों  नीग्रो  खच्चरों  या  घोड़ों  से ,  हजारों  पैदल  व  निजी  मोटरों  से  कार्यालय  जा  रहे  थे  एक  भी  व्यक्ति  ने  ' बस ' में  पैर  नहीं  रखा  l   नीग्रो  नेताओं  के  अध्यक्ष  थे -- डॉ. मार्टिन लूथर  किंग  l   मोंटगुमरी  के  गोरे   अधिकारियों  ने  हड़ताल  को   समाप्त  करने  का  ,  उन    लोगों  में  फूट  डालने  का  हर  संभव  प्रयत्न  किया  l   डॉ.  किंग  का  एक    जवाब  था ---- जब  तक  भेदभाव  की  नीति    का  अंत  नहीं    जायेगा  तब  तक  कोई  व्यक्ति    बसों  में  नहीं  चढ़ेगा  l   यह    हड़ताल  एक  वर्ष  चली  l  एक  वर्ष  तक  हानि  उठाने  के  पश्चात्  बस - कंपनी  ने    नीग्रो  लोगों  की   मांगे  स्वीकार  की   तब  बहिष्कार  का  अंत  हो  सका  l 
  इस  आन्दोलन  के  बीच  श्री  किंग  को  कितने  ही  खतरों  का  सामना  करना  पड़ा ,  ' अहिंसात्मक  असहयोग  '  का  रास्ता    आत्मसंयम  और  परमेश्वर  पर   भरोसा  रखकर  आगे  बढ़ते  जाने  का  होता  है  l   अपने   सजातीयों  से  उन्होंने  कहा  था ---- "  अपना  न्याययुक्त  स्थान  प्राप्त  करने  में  हमको  किसी  दूषित  कर्म  का  अपराधी  नहीं  बनना  चाहिए  ,  अपनी  स्वाधीनता  की  प्यास  को  बुझाने  के  लिए   हमें  विद्वेष  और  घ्रणा  का  प्याला   नहीं  पी  लेना  चाहिए   l "