भगवान बुद्ध ने कहा था --- " जिस तरह दुष्कर्म का दंड भुगतने के लिए हर प्राणी प्रकृति का दास है , उसी तरह सत्कर्म के पारितोषिक का भी अधिकार हर प्राणी को है , फिर चाहे वह किसी भी वर्ण का हो l न तो उपनयन धारण करने से कोई संत और सज्जन हो सकता है , न अग्निहोत्र से ------- यदि मन स्वच्छ है , अंत:करण पवित्र है तो ही व्यक्ति संत , सज्जन , त्यागी , तपस्वी और उदार हो सकता है l यह उत्तराधिकार नहीं साधना है l इसलिए आत्मोन्नति का अधिकार हर प्राणी को है l "
30 April 2018
29 April 2018
WISDOM ----- सुन्दर सुनहरे भविष्य के लिए बच्चों का व्यक्तित्व निर्माण बहुत जरुरी है
' व्यक्तित्व निर्माण तब संभव है जब बच्चे सुरक्षित हों l '
बच्चों के व्यक्तित्व निर्माण में माता - पिता और समाज की सम्मिलित भूमिका होती है l यदि माता - पिता अपने ऐशोआराम में व्यस्त हैं तब केवल पैसा खर्च करके बच्चों का व्यक्तित्व नहीं बन सकता l धन कमाना भी जरुरी है , इसके साथ अपने कुछ सुखों का त्याग कर बच्चों को अच्छे संस्कार देना भी जरुरी है l
इसी तरह समाज में विभिन्न क्षेत्रों में लोग अपना कर्तव्य पालन ईमानदारी से करते हैं , समाज में अपनी जिम्मेदारी को समझते हैं तभी बच्चे सुरक्षित रह सकते हैं l आज के समाज में हम देखते हैं कि बच्चे सुरक्षित नहीं हैं l कायरता इतनी बढ़ गई है कि आपसी दुश्मनी का बदला लोग बच्चों से लेते हैं l विभिन्न संस्थाओं का उद्देश्य केवल धन कमाना है , बच्चों की सुरक्षा के प्रति वे लापरवाह हैं l
परिवार और समाज को अपनी प्राथमिकताएं तय करनी पड़ेंगी कि उन्हें अपना भविष्य कैसा चाहिए l फ्रांस के प्रसिद्ध समाजशास्त्री और प्रजातंत्र के जन्मदाता रूसो ने मानवी भविष्य को उज्जवल बनाने के लिए बालकों के व्यक्तित्व निर्माण को सर्वोपरि महत्व दिया है l और कहा है कि नवयुग की आधारशिला उन्ही के बलबूते निर्मित की जा सकती है l
बच्चों के व्यक्तित्व निर्माण में माता - पिता और समाज की सम्मिलित भूमिका होती है l यदि माता - पिता अपने ऐशोआराम में व्यस्त हैं तब केवल पैसा खर्च करके बच्चों का व्यक्तित्व नहीं बन सकता l धन कमाना भी जरुरी है , इसके साथ अपने कुछ सुखों का त्याग कर बच्चों को अच्छे संस्कार देना भी जरुरी है l
इसी तरह समाज में विभिन्न क्षेत्रों में लोग अपना कर्तव्य पालन ईमानदारी से करते हैं , समाज में अपनी जिम्मेदारी को समझते हैं तभी बच्चे सुरक्षित रह सकते हैं l आज के समाज में हम देखते हैं कि बच्चे सुरक्षित नहीं हैं l कायरता इतनी बढ़ गई है कि आपसी दुश्मनी का बदला लोग बच्चों से लेते हैं l विभिन्न संस्थाओं का उद्देश्य केवल धन कमाना है , बच्चों की सुरक्षा के प्रति वे लापरवाह हैं l
परिवार और समाज को अपनी प्राथमिकताएं तय करनी पड़ेंगी कि उन्हें अपना भविष्य कैसा चाहिए l फ्रांस के प्रसिद्ध समाजशास्त्री और प्रजातंत्र के जन्मदाता रूसो ने मानवी भविष्य को उज्जवल बनाने के लिए बालकों के व्यक्तित्व निर्माण को सर्वोपरि महत्व दिया है l और कहा है कि नवयुग की आधारशिला उन्ही के बलबूते निर्मित की जा सकती है l
28 April 2018
WISDOM ------ शरीर के स्वास्थ्य की अपेक्षा मनुष्य का मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य अधिक महत्वपूर्ण है
चीन के संघर्ष शील तपस्वी साहित्यकार लू - शुन की मृत्यु के बाद उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए माओत्से तुंग ने कहा था ---- वे सांस्कृतिक क्रान्ति के महान सेनापति और वीर सेनानी थे l वे केवल लेखक ही नहीं एक महान विचारक और क्रान्तिकारी भी थे l
लू - शुन का जन्म 1881 में चीन में हुआ था l उस समय की चीन की दशा और चीनी नागरिकों के दुःख और वेदना के कारण उनकी आँखें नम हो जाती वे सोचते कि चीनी जनता की यह उदासीनता न जाने कब दूर होगी l आठ वर्ष तक जापान में चिकित्सा शास्त्र का अध्ययन कर वे जब चीन लौटे तो उनकी वेदना और अधिक बढ़ गई , उन्होंने संकल्प लिया कि वे लोगों की शारीरिक चिकित्सा के स्थान पर मस्तिष्कीय, भावनात्मक और चेतना की चिकित्सा के लिए प्रयत्न करेंगे और इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए साहित्य सर्वाधिक उपयुक्त माध्यम हो सकता है l अत: वे डाक्टर बानने की अपेक्षा स्कूल में अध्यापक हो गए l
अब वे ' नवयुवक ' पत्र का सम्पादन करने लगे l अब वे कहानियां भी लिखने लगे l उनकी कहानियां तत्कालीन सामाजिक और राजनैतिक परिस्थितियों को ध्यान में रखकर लिखी जाती थीं l जिसमे एक पक्ष में शोषण में पिस रहे लोगों की करुण स्थिति का चित्रण होता , तो दूसरे पक्ष में इसके विकल्प का प्रतिपादन होता कि वर्तमान व्यवस्था को तोड़ा जाये तो इसके स्थान पर क्या किया जाये l अपने साहित्य लेखन से उन्होंने समाजवादी क्रांति की संभावनाओं को मजबूत बनाया l यह सत्य है कि कोई भी परिवर्तन छोटा हो या बढ़ा विचारों के रूप में ही जन्म लेता है l मनुष्य और समाज की विचारणा तथा धारणा में जब तक परिवर्तन नहीं आता तब तक सामाजिक परिवर्तन भी असंभव ही है l और यह कार्य साहित्य से ही संभव है l
लू - शुन का जन्म 1881 में चीन में हुआ था l उस समय की चीन की दशा और चीनी नागरिकों के दुःख और वेदना के कारण उनकी आँखें नम हो जाती वे सोचते कि चीनी जनता की यह उदासीनता न जाने कब दूर होगी l आठ वर्ष तक जापान में चिकित्सा शास्त्र का अध्ययन कर वे जब चीन लौटे तो उनकी वेदना और अधिक बढ़ गई , उन्होंने संकल्प लिया कि वे लोगों की शारीरिक चिकित्सा के स्थान पर मस्तिष्कीय, भावनात्मक और चेतना की चिकित्सा के लिए प्रयत्न करेंगे और इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए साहित्य सर्वाधिक उपयुक्त माध्यम हो सकता है l अत: वे डाक्टर बानने की अपेक्षा स्कूल में अध्यापक हो गए l
अब वे ' नवयुवक ' पत्र का सम्पादन करने लगे l अब वे कहानियां भी लिखने लगे l उनकी कहानियां तत्कालीन सामाजिक और राजनैतिक परिस्थितियों को ध्यान में रखकर लिखी जाती थीं l जिसमे एक पक्ष में शोषण में पिस रहे लोगों की करुण स्थिति का चित्रण होता , तो दूसरे पक्ष में इसके विकल्प का प्रतिपादन होता कि वर्तमान व्यवस्था को तोड़ा जाये तो इसके स्थान पर क्या किया जाये l अपने साहित्य लेखन से उन्होंने समाजवादी क्रांति की संभावनाओं को मजबूत बनाया l यह सत्य है कि कोई भी परिवर्तन छोटा हो या बढ़ा विचारों के रूप में ही जन्म लेता है l मनुष्य और समाज की विचारणा तथा धारणा में जब तक परिवर्तन नहीं आता तब तक सामाजिक परिवर्तन भी असंभव ही है l और यह कार्य साहित्य से ही संभव है l
27 April 2018
WISDOM -----
साधनों और सुविधाओं के अभाव का रोना रोकर कई लोग असफलताओं और कठिनाइयों को रोते रहते हैं l जबकि साधन और सुविधाए, व्यक्ति के मार्ग में बाधा नहीं बनती l बाधा बनती है उसकी अपनी अकर्मण्यता और निष्क्रियता l पुरुषार्थी और परिश्रमी व्यक्ति कभी साधनों , सुविधाओं और परिस्थितियों का मुंह नहीं ताकते, वे आगे बढ़ते ही रहते हैं l
26 April 2018
WISDOM ------
मनुष्य को भगवान् ने बहुत कुछ दिया l बुद्धि तो इतनी दी कि वह संसार के सम्पूर्ण प्राणियों का शिरोमणि हो गया l बुद्धि पाकर भी मनुष्य एक गलती सदैव दोहराता है और वह यह कि उसे जिस पथ पर चलने का अभ्यास हो गया है वह उसी पर चलना चाहता है l रास्ते न बदलने से जीवन के अनेक महत्वपूर्ण पहलू उपेक्षित पड़े रहते हैं l ---- धनी , धन का मोह छोड़कर दो मिनट त्याग और निर्धनता का जीवन बिताने के लिए तैयार नहीं होता , नेता भीड़ पसंद करता है , वह दो क्षण एकान्त चिंतन के लिए नहीं निकलता l डाक्टर व्यवसाय करता है ऐसा नहीं कि सेवा का सुख भी देखें , पैसे को माध्यम न बनायें l व्यापारी बेईमानी करते हैं कोई ऐसा प्रयोग नहीं करते कि देखें कि ईमानदारी से भी मनुष्य सुखी और संपन्न रह सकता है l जीवन में विपरीत और कष्टकर परिस्थितियों से गुजरने का अभ्यास मनुष्य जीवन में बना रहा होता तो अध्यात्म और भौतिकता में परस्पर संतुलन बना रहता और धरती पर शान्ति होती l
25 April 2018
WISDOM ------
सफलता के इच्छुक व्यक्ति के लिए उपेक्षा , तिरस्कार और अभावों से परेशान न होकर निरंतर श्रम करते रहना ही सफलता का राजमार्ग है l इस मार्ग का अनुसरण कर व्यक्ति सामान्य ही नहीं विकट से विकट परिस्थितियों में भी ऊँचा उठ सकता है तथा प्रगति के उच्च शिखरों को छू सकता है l
24 April 2018
WISDOM ----- आज देश में सबसे बड़ी आवश्यकता चरित्र - निर्माण और नैतिक जागरण की है l
किसी भी समाज का जब चारित्रिक पतन होने लगे तो समझो कि उस देश की संस्कृति खतरे में है l कुछ जातियों को अपनी जातीय श्रेष्ठता का अभिमान होता है किन्तु पतन बड़ी तेजी से होता है और इसकी चपेट में सभी जाति व सम्प्रदाय आ जाते हैं , श्रेष्ठता केवल दिखावे की रह जाती है l मनुष्य अपनी मानसिक कमजोरियों कामना - वासना का गुलाम होता है l अपना चोला बदल ले , शराफत का कोई भी आवरण ओढ़ ले , इन कमजोरियों से मुक्ति पाना आसान नहीं है l
इसलिए समस्या यह उत्पन्न होती है कि इस चारित्रिक पतन को कैसे रोका जाये l केवल भाषण या कानून बन जाने से समस्या नहीं सुलझती l कोई भी देश अपनी संस्कृति की , अपनी जातिगत श्रेष्ठता की रक्षा करना चाहता है तो उसे उन कारणों पर प्रतिबन्ध लगाना होगा जो मन की कुत्सित भावनाओं को भड़काते हैं --- अश्लील साहित्य , अश्लील फ़िल्मों और इन्हें दिखने वाली साइट पर प्रतिबन्ध हो l भारत जैसे गर्म जलवायु के देश में शराब और हर प्रकार के नशे पर प्रतिबन्ध हो , नशे की वजह से ही व्यक्ति अमानवीय कार्य करता है l समाज जागरूक हो और इससे संबंधित कठोर कानून बने तभी कुछ सुधार संभव होगा l
इसलिए समस्या यह उत्पन्न होती है कि इस चारित्रिक पतन को कैसे रोका जाये l केवल भाषण या कानून बन जाने से समस्या नहीं सुलझती l कोई भी देश अपनी संस्कृति की , अपनी जातिगत श्रेष्ठता की रक्षा करना चाहता है तो उसे उन कारणों पर प्रतिबन्ध लगाना होगा जो मन की कुत्सित भावनाओं को भड़काते हैं --- अश्लील साहित्य , अश्लील फ़िल्मों और इन्हें दिखने वाली साइट पर प्रतिबन्ध हो l भारत जैसे गर्म जलवायु के देश में शराब और हर प्रकार के नशे पर प्रतिबन्ध हो , नशे की वजह से ही व्यक्ति अमानवीय कार्य करता है l समाज जागरूक हो और इससे संबंधित कठोर कानून बने तभी कुछ सुधार संभव होगा l
22 April 2018
WISDOM ------- हमारी कथनी और करनी में एकरूपता होनी चाहिए
' जो हम कहते हैं वह अमल में भी होना चाहिए l '
हिन्दी साहित्य के महान कवि अयोध्या सिंह उपाध्याय ' हरिऔध जी ' का जन्म 1865 में एक जमीदार परिवार में हुआ था l जमींदारी और पंडिताई उनका पैतृक धंधा था l उन्होंने मिडिल स्कूल की परीक्षा पास कर ली l
एक दिन उन्होंने अपने जमीदार पिता से किसी किसान को पिटते देखा l उस समय तो वे कुछ नहीं बोले l समय मिलने पर पूछा ---- ' क्या पिताजी इस दुनिया में यह सब चलता है l आप तो कथाओं में लोगों से कहा करते हैं कि किसी निरपराध प्राणी को कष्ट नहीं देना चाहिए l '
अपने किये पर पुत्र को टीका - टिपण्णी करते देख पिता को क्रोध आ गया , वे बोले --- " तू जानता है कि उसने कोई अपराध किया है या नहीं किया है l "
पुत्र ने कहा ---- " मेरी जानकारी में तो नहीं है l क्या आप बताने का कष्ट करेंगे l "
पिता उन्हें जमींदारी सिखाना चाहते थे , अत: कुछ शांत होकर बोले ---- " सारी फसल तो बेचकर खा गया और लगान के नाम पर वह कह रहा था कि कुछ हुआ ही नहीं l "
अयोध्या सिंह जी बोले ---- " इस साल तो पानी नहीं बरसा l यह बात तो हम लोग भी जानते हैं l फसल कहाँ से पैदा हुई होगी l "
पिता बोले --- " मिडिल पास कर ली तो खुद को मुझसे ज्यादा समझदार मानने लगा है l मैं जो कह रहा हूँ क्या वह तेरे लिए झूठ है l " यह कहकर वे बेटे की और लपके l
इस घटना ने उन्हें धर्म क्षेत्र में फैले हुए आडम्बर का बोध कराया l लोगों को दया , प्रेम का उपदेश देकर अपने स्वार्थ के लिए स्वयं उनके साथ मारपीट करना तो गलत है l जो हम कहते हैं उस पर अमल भी होना चाहिए l
अपने भावी जीवन के बारे में वे सोच रहे थे कि जमींदारी का धन्धा और पंडिताई ये दोनों काम नहीं बन सकते l कृषक की विवशता को समझकर भी उसे उपेक्षित करते हुए अमानवीय अत्याचार करना उन्हें गौरव अनुकूल नहीं लगा l जमींदारी करते हुए पंडिताई दूभर है l अब वे स्वतंत्र रूप से अपनी जीविका चलाने लगे l भारतेन्दु जी के संपर्क में आकर उन्हें सार्थक साहित्य सृजन की प्रेरणा मिली l समाज में व्याप्त कुरीतियों , मर्यादाहीन ब्राह्मण - पंडितों , बाल विवाह , वृद्ध विवाह जैसे विषयों पर उन्होंने अपनी कवितायेँ लिखीं l
हिन्दी साहित्य के महान कवि अयोध्या सिंह उपाध्याय ' हरिऔध जी ' का जन्म 1865 में एक जमीदार परिवार में हुआ था l जमींदारी और पंडिताई उनका पैतृक धंधा था l उन्होंने मिडिल स्कूल की परीक्षा पास कर ली l
एक दिन उन्होंने अपने जमीदार पिता से किसी किसान को पिटते देखा l उस समय तो वे कुछ नहीं बोले l समय मिलने पर पूछा ---- ' क्या पिताजी इस दुनिया में यह सब चलता है l आप तो कथाओं में लोगों से कहा करते हैं कि किसी निरपराध प्राणी को कष्ट नहीं देना चाहिए l '
अपने किये पर पुत्र को टीका - टिपण्णी करते देख पिता को क्रोध आ गया , वे बोले --- " तू जानता है कि उसने कोई अपराध किया है या नहीं किया है l "
पुत्र ने कहा ---- " मेरी जानकारी में तो नहीं है l क्या आप बताने का कष्ट करेंगे l "
पिता उन्हें जमींदारी सिखाना चाहते थे , अत: कुछ शांत होकर बोले ---- " सारी फसल तो बेचकर खा गया और लगान के नाम पर वह कह रहा था कि कुछ हुआ ही नहीं l "
अयोध्या सिंह जी बोले ---- " इस साल तो पानी नहीं बरसा l यह बात तो हम लोग भी जानते हैं l फसल कहाँ से पैदा हुई होगी l "
पिता बोले --- " मिडिल पास कर ली तो खुद को मुझसे ज्यादा समझदार मानने लगा है l मैं जो कह रहा हूँ क्या वह तेरे लिए झूठ है l " यह कहकर वे बेटे की और लपके l
इस घटना ने उन्हें धर्म क्षेत्र में फैले हुए आडम्बर का बोध कराया l लोगों को दया , प्रेम का उपदेश देकर अपने स्वार्थ के लिए स्वयं उनके साथ मारपीट करना तो गलत है l जो हम कहते हैं उस पर अमल भी होना चाहिए l
अपने भावी जीवन के बारे में वे सोच रहे थे कि जमींदारी का धन्धा और पंडिताई ये दोनों काम नहीं बन सकते l कृषक की विवशता को समझकर भी उसे उपेक्षित करते हुए अमानवीय अत्याचार करना उन्हें गौरव अनुकूल नहीं लगा l जमींदारी करते हुए पंडिताई दूभर है l अब वे स्वतंत्र रूप से अपनी जीविका चलाने लगे l भारतेन्दु जी के संपर्क में आकर उन्हें सार्थक साहित्य सृजन की प्रेरणा मिली l समाज में व्याप्त कुरीतियों , मर्यादाहीन ब्राह्मण - पंडितों , बाल विवाह , वृद्ध विवाह जैसे विषयों पर उन्होंने अपनी कवितायेँ लिखीं l
21 April 2018
WISDOM ------ दुर्बल और पीड़ित व्यक्ति की आततायी से रक्षा करना ही शक्तिशाली का धर्म है
' किसी को ईश्वर सम्पदा , विभूति अथवा सामर्थ्य देता है तो निश्चित रूप से उसके साथ कोई न कोई सदप्रयोजन जुड़ा होता है l मनुष्य को समझना चाहिए कि वह विशेष अनुदान उसे किसी समाज उपयोगी कार्य के लिए ही मिला है l जो अपनी शक्ति का सदुपयोग करता है , दुर्बल और पीड़ित व्यक्ति की आततायी से रक्षा करने के साथ ही अत्याचारी और अन्यायी को कठोर दंड देने व्यवस्था करता है तो यह निष्ठा उसके व्यक्तित्व में चार चाँद लगा देती है l '
20 April 2018
WISDOM ----- हम बना नहीं सकते तो बिगाड़ने का अधिकार नहीं है
बया दूर - दूर तक जाती है , एक - एक तिनका खोजकर पल - पल परिश्रम कर के घोंसला बनाती है l जिसे देखकर हर किसी को प्रेरणा मिलती है , प्रसन्नता होती है l
नन्हे से पक्षी बया के घोंसले को नष्ट कर देने वाला बिलाव हर किसी का निंदा पात्र बनता है l तब फिर परम पिता परमात्मा द्वारा रचित इस संसार को बिगाड़ना, उसे नष्ट करना निंदनीय है l संसार की हर वस्तु , हर जीव हमारी भलाई और कल्याण के लिए हैं , तब किसी को सताना , कष्ट पहुँचाना , ईश्वरीय कृति को विनष्ट करना उचित नहीं है l
इस संसार को सुन्दर बनाने का प्रयास करें l
नन्हे से पक्षी बया के घोंसले को नष्ट कर देने वाला बिलाव हर किसी का निंदा पात्र बनता है l तब फिर परम पिता परमात्मा द्वारा रचित इस संसार को बिगाड़ना, उसे नष्ट करना निंदनीय है l संसार की हर वस्तु , हर जीव हमारी भलाई और कल्याण के लिए हैं , तब किसी को सताना , कष्ट पहुँचाना , ईश्वरीय कृति को विनष्ट करना उचित नहीं है l
इस संसार को सुन्दर बनाने का प्रयास करें l
19 April 2018
WISDOM ---- महाकाव्यों से प्रेरणा लेने पर ही अनीति और अत्याचार का उन्मूलन संभव है
केवल कानून बना देने से समाज में फैली विकृतियों को दूर नहीं जा सकता , इसके लिए समाज का जागरूक होना जरुरी है l कहते हैं जो कुछ महाभारत में है , वही इस धरती पर भी है l असुरता सदैव देवत्व पर आक्रमण करती है , दुष्टता अच्छाई को मिटाने के लिए षडयंत्र रचती है l जागरूक रहकर ही उन षडयंत्रों से बचा जा सकता है --- यही महाभारत का शिक्षण है l
महाभारत -- जाति और सम्प्रदाय के आधार पर युद्ध नहीं था , यह तो अत्याचार और अन्याय को मिटाने के लिए महाभारत था l
दुर्योधन ने पांडवों को अपने रास्ते से हटाने के लिए सदैव षडयंत्र रचे l पांडव जब जागरूक रहे तो उन षडयंत्रों से बच गए जैसे दुर्योधन ने पांडवों को लाक्षाग्रह में महारानी कुंती समेत जला देने की योजना बनाई l पांडव सचेत थे , समय रहते उन्होंने वहां सुरंग बना ली और बच निकले l इस जागरूकता में जरा सी चूक से उन्हें जो हानि हुई उसकी क्षतिपूर्ति नहीं हो सकी l
जब महाभारत समाप्त हो गया , दुर्योधन भी पराजित हो गया तब पांचों पांडव महल में निश्चिन्त होकर सो गए l इस हार से बौखलाए ' गुरु - पुत्र ' अश्वत्थामा ने अर्द्ध रात्रि में सोते हुए पांचों पांडवों का वध करने का निश्चय किया , अपनी बौखलाहट में उसने पांडवों के पांच सुकोमल पुत्रों का वध कर दिया और अभी तक माथे पर कलंक लिए भटक रहा है l
यह कथा हमें सिखाती है कि राक्षसी प्रवृतियां रात्रि में जब चारों और सन्नाटा होता है तब क्रियाशील होती हैं lऐसी पाशविक प्रवृतियों का जाति या धर्म से कोई लेना - देना नहीं होता , यह तो व्यक्ति के भीतर बैठा दानव है जो अपने अनुकूल परिस्थितियां पाकर पाप और अधर्म करता है l
आज के समय में भी यदि राक्षसी - प्रवृतियों से समाज को बचना है तो जागरूक रहना होगा l समाज में कोई भी ऐसा स्थान न रहे जहाँ रात्रि को अँधेरा और सन्नाटा हो जिसमे दुष्टता को पांव पसारने का मौका मिले l जागते रहो !
महाभारत -- जाति और सम्प्रदाय के आधार पर युद्ध नहीं था , यह तो अत्याचार और अन्याय को मिटाने के लिए महाभारत था l
दुर्योधन ने पांडवों को अपने रास्ते से हटाने के लिए सदैव षडयंत्र रचे l पांडव जब जागरूक रहे तो उन षडयंत्रों से बच गए जैसे दुर्योधन ने पांडवों को लाक्षाग्रह में महारानी कुंती समेत जला देने की योजना बनाई l पांडव सचेत थे , समय रहते उन्होंने वहां सुरंग बना ली और बच निकले l इस जागरूकता में जरा सी चूक से उन्हें जो हानि हुई उसकी क्षतिपूर्ति नहीं हो सकी l
जब महाभारत समाप्त हो गया , दुर्योधन भी पराजित हो गया तब पांचों पांडव महल में निश्चिन्त होकर सो गए l इस हार से बौखलाए ' गुरु - पुत्र ' अश्वत्थामा ने अर्द्ध रात्रि में सोते हुए पांचों पांडवों का वध करने का निश्चय किया , अपनी बौखलाहट में उसने पांडवों के पांच सुकोमल पुत्रों का वध कर दिया और अभी तक माथे पर कलंक लिए भटक रहा है l
यह कथा हमें सिखाती है कि राक्षसी प्रवृतियां रात्रि में जब चारों और सन्नाटा होता है तब क्रियाशील होती हैं lऐसी पाशविक प्रवृतियों का जाति या धर्म से कोई लेना - देना नहीं होता , यह तो व्यक्ति के भीतर बैठा दानव है जो अपने अनुकूल परिस्थितियां पाकर पाप और अधर्म करता है l
आज के समय में भी यदि राक्षसी - प्रवृतियों से समाज को बचना है तो जागरूक रहना होगा l समाज में कोई भी ऐसा स्थान न रहे जहाँ रात्रि को अँधेरा और सन्नाटा हो जिसमे दुष्टता को पांव पसारने का मौका मिले l जागते रहो !
18 April 2018
WISDOM ----- हिंसा और अहिंसा का अद्भुत समन्वय करने वाले ----- भगवान परशुराम
' परशुरामजी शास्त्र और धर्म के गूढ़ तत्वों को भली - भांति समझते थे इसलिए आवश्यकता पड़ने पर कांटे से काँटा निकालने , विष से विष मारने की नीति के अनुसार ऋषि होते हुए भी उन्होंने सशस्त्र अभियान आरम्भ कर अनीति और अनाचार का अन्त किया l '
परशुरामजी उन दिनों शिवजी से शिक्षा प्राप्त कर रहे थे l अपने शिष्यों की मनोभूमि परखने के लिए गुरु ने कुछ अनैतिक काम कर के छात्रों की प्रतिक्रिया जाननी चाही l अन्य छात्र तो संकोच में दब गए लेकिन परशुराम से न रहा गया l वे गुरु के विरुद्ध लड़ने को खड़े हो गए l जब साधारण समझाने - बुझाने से काम न चला तो उन्होंने फरसे का प्रहार कर डाला l शिवजी का सिर फट गया पर उन्होंने बुरा नहीं माना l और संतोष व्यक्त करते हुए गुरुकुल के समस्त छात्रों को संबोधित करते हुए कहा ----- " अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करना प्रत्येक धर्मशील व्यक्ति का मनुष्योचित कर्तव्य है l फिर अन्याय करने वाला चाहे कितनी ही ऊँची स्थिति का क्यों न हो l संसार से अधर्म इसी प्रकार मिट सकता है l यदि उसे सहन करते रहा जायेगा तो इससे अनीति बढ़ेगी और इस सुन्दर संसार में अशांति उत्पन्न होगी l परशुराम ने अनीति के प्रतिकार के लिए जो दर्प प्रदर्शित किया उससे मैं बहुत प्रसन्न हूँ l "
शंकरजी ने अपने प्रिय शिष्य को ह्रदय से लगाया और ' परशु ' उपहार में दिया और आशा की कि इसके द्वारा वह संसार में फैले हुए अधर्म का उन्मूलन करेंगे l
परशुरामजी उन दिनों शिवजी से शिक्षा प्राप्त कर रहे थे l अपने शिष्यों की मनोभूमि परखने के लिए गुरु ने कुछ अनैतिक काम कर के छात्रों की प्रतिक्रिया जाननी चाही l अन्य छात्र तो संकोच में दब गए लेकिन परशुराम से न रहा गया l वे गुरु के विरुद्ध लड़ने को खड़े हो गए l जब साधारण समझाने - बुझाने से काम न चला तो उन्होंने फरसे का प्रहार कर डाला l शिवजी का सिर फट गया पर उन्होंने बुरा नहीं माना l और संतोष व्यक्त करते हुए गुरुकुल के समस्त छात्रों को संबोधित करते हुए कहा ----- " अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करना प्रत्येक धर्मशील व्यक्ति का मनुष्योचित कर्तव्य है l फिर अन्याय करने वाला चाहे कितनी ही ऊँची स्थिति का क्यों न हो l संसार से अधर्म इसी प्रकार मिट सकता है l यदि उसे सहन करते रहा जायेगा तो इससे अनीति बढ़ेगी और इस सुन्दर संसार में अशांति उत्पन्न होगी l परशुराम ने अनीति के प्रतिकार के लिए जो दर्प प्रदर्शित किया उससे मैं बहुत प्रसन्न हूँ l "
शंकरजी ने अपने प्रिय शिष्य को ह्रदय से लगाया और ' परशु ' उपहार में दिया और आशा की कि इसके द्वारा वह संसार में फैले हुए अधर्म का उन्मूलन करेंगे l
17 April 2018
WISDOM ---- सदियों की पराधीनता ने लोगों का मनोबल तोड़ दिया है और टूटा हुआ मनोबल मनुष्य को पंगु बना देता है
जब देश गुलाम था तब अंग्रेज अपनी हुकूमत के लिए गाँव के लोगों पर , अपना विरोध करने वालों पर हंटर और कोड़े बरसाते थे l वक्त के साथ चेहरे बदल गए , लेकिन अपनी हुकूमत के लिए निर्दोष पर कोड़े , हंटर और डंडे बरसाना नहीं बदला l
समाज में जब अनाचार और अत्याचार के विरोध की क्षमता और सामर्थ्य नहीं रहती तो अत्याचारी के दुस्साहसी होने की संभावना बनती है l उन लोगों के प्रति उदासीनता उनके प्रोत्साहन की प्रेरणा बन जाती है और अनाचार का कुचक्र दूनी गति से घूमने लगता है l
अहंकारी की मानसिकता कमजोर पर अत्याचार कर अपने अहंकार की पूर्ति करने की होती है , उसका किसी देश , धर्म या जाति से ताल्लुक नहीं होता l ऐसे लोगों का केवल एक ही उद्देश्य होता है कि जब - तब अपनी निर्दयी हरकतों से जनता को भयभीत किया जाये , विभिन्न तरीकों से उन्हें कमजोर कर दिया जाये ताकि वे अन्याय के विरुद्ध खड़े न हो सकें l
इन परिस्थितियों में ऐसे जागरूक , संघर्षशील और आत्मशक्ति संपन्न व्यक्तियों की आवश्यकता होती है जो अत्याचार और अन्याय का विरोध करने के लिए उठ खड़े हों और समाज को उसके दुस्साहस का सामना करने के लिए खड़ा करें l
लोग ऐसे अत्याचारियों के भय से उदासीन नहीं रहते बल्कि अपने छोटे - बड़े स्वार्थ , अपनी कमजोरियों के कारण वे चुप रहते हैं l अत्याचारी के प्रति तटस्थ रहने का सबसे बड़ा कारण यह है कि आज लोग दोगले हैं उनका असली भय यह है कि उनके ऊपर चढ़ा हुआ शराफत का नकाब न उतर जाये l बेनकाब होंगे तो जनता असलियत जान जाएगी l
जब जनता जागरूक और स्वाभिमानी होगी तभी विवेकपूर्ण ढंग से आततायी का सामना कर सकेगी l
समाज में जब अनाचार और अत्याचार के विरोध की क्षमता और सामर्थ्य नहीं रहती तो अत्याचारी के दुस्साहसी होने की संभावना बनती है l उन लोगों के प्रति उदासीनता उनके प्रोत्साहन की प्रेरणा बन जाती है और अनाचार का कुचक्र दूनी गति से घूमने लगता है l
अहंकारी की मानसिकता कमजोर पर अत्याचार कर अपने अहंकार की पूर्ति करने की होती है , उसका किसी देश , धर्म या जाति से ताल्लुक नहीं होता l ऐसे लोगों का केवल एक ही उद्देश्य होता है कि जब - तब अपनी निर्दयी हरकतों से जनता को भयभीत किया जाये , विभिन्न तरीकों से उन्हें कमजोर कर दिया जाये ताकि वे अन्याय के विरुद्ध खड़े न हो सकें l
इन परिस्थितियों में ऐसे जागरूक , संघर्षशील और आत्मशक्ति संपन्न व्यक्तियों की आवश्यकता होती है जो अत्याचार और अन्याय का विरोध करने के लिए उठ खड़े हों और समाज को उसके दुस्साहस का सामना करने के लिए खड़ा करें l
लोग ऐसे अत्याचारियों के भय से उदासीन नहीं रहते बल्कि अपने छोटे - बड़े स्वार्थ , अपनी कमजोरियों के कारण वे चुप रहते हैं l अत्याचारी के प्रति तटस्थ रहने का सबसे बड़ा कारण यह है कि आज लोग दोगले हैं उनका असली भय यह है कि उनके ऊपर चढ़ा हुआ शराफत का नकाब न उतर जाये l बेनकाब होंगे तो जनता असलियत जान जाएगी l
जब जनता जागरूक और स्वाभिमानी होगी तभी विवेकपूर्ण ढंग से आततायी का सामना कर सकेगी l
16 April 2018
WISDOM ---- बच्चे पवित्र और निर्दोष होते हैं
कहते हैं बच्चे भगवान का रूप होते हैं , उनमे कोई छल - कपट नहीं होता l कन्याएं देवी का रूप होती हैं जब दुष्ट कंस ने देवकी की आठवीं संतान कन्या को पटक कर मारा तो वह उसके हाथ से छिटक कर ऊपर चली गई और भविष्यवाणी हुई --- " पापी ! तेरा अंत निकट है तुझे मारने वाला पैदा हो चुका है l "
आज भी जब निर्दोष और पवित्र कन्याओं पर अमानुषिक अत्याचार होता है , इस धरती पर उनके जीने के हक को छीन लिया जाता है तब वह पवित्र आत्मा अपने जीते जी अपनी भोली आवाज में समाज को जो न सिखा पाई, वह अपनी मृत्यु से समाज को सिखाती है l पवित्र आत्माओं का सन्देश हम सुन लें , समझ लें तो इस डूबती हुई संस्कृति को बचा सकते हैं l सन्देश भिन्न - भिन्न हों लेकिन उनका सार एक ही है --- ' अपने पापों का प्रायश्चित करो , अपने हाथों से अपने परिवार , अपनी जाति, अपने धर्म और संस्कृति को पतन के गर्त में न ले जाओ l '
कोई आत्मा हमारे ' पवित्र स्थल ' की पवित्रता पर प्रश्न चिन्ह लगाती है , सत्य को परखने का सन्देश देती है l
कोई आत्मा समझाती है, चेतावनी देती है ---- इतने पतित न हो जाओ कि तुम्हारे दुष्कर्मों की छाया से , उसकी नकारात्मकता से तुम्हारे परिवार की इज्जत स्वयं मर्यादा रेखा का उल्लंघन कर दे और उस दलदल में फंस जाये जहाँ जीवन मृत्यु से भी बदतर होता है l
हमारी संस्कृति , हमारे आदर्श हमारी नस - नस में समाएं हैं l दुनिया के किसी भी कोने में पहुँच जाओ , वे हमसे अलग नहीं होंगे l उसी के अनुरूप व्यक्ति अपने परिवार को मर्यादित देखना चाहता है ताकि समाज में इज्जत बनी रहे लेकिन जब पापों की , दुष्कर्मों की काली छाया इतनी भयंकर हो जाएगी तब सिर पीटने और घुटन भरी , मृत्यु से भी बदतर जिन्दगी के अलावा कुछ भी शेष नहीं बचेगा l
आज भी जब निर्दोष और पवित्र कन्याओं पर अमानुषिक अत्याचार होता है , इस धरती पर उनके जीने के हक को छीन लिया जाता है तब वह पवित्र आत्मा अपने जीते जी अपनी भोली आवाज में समाज को जो न सिखा पाई, वह अपनी मृत्यु से समाज को सिखाती है l पवित्र आत्माओं का सन्देश हम सुन लें , समझ लें तो इस डूबती हुई संस्कृति को बचा सकते हैं l सन्देश भिन्न - भिन्न हों लेकिन उनका सार एक ही है --- ' अपने पापों का प्रायश्चित करो , अपने हाथों से अपने परिवार , अपनी जाति, अपने धर्म और संस्कृति को पतन के गर्त में न ले जाओ l '
कोई आत्मा हमारे ' पवित्र स्थल ' की पवित्रता पर प्रश्न चिन्ह लगाती है , सत्य को परखने का सन्देश देती है l
कोई आत्मा समझाती है, चेतावनी देती है ---- इतने पतित न हो जाओ कि तुम्हारे दुष्कर्मों की छाया से , उसकी नकारात्मकता से तुम्हारे परिवार की इज्जत स्वयं मर्यादा रेखा का उल्लंघन कर दे और उस दलदल में फंस जाये जहाँ जीवन मृत्यु से भी बदतर होता है l
हमारी संस्कृति , हमारे आदर्श हमारी नस - नस में समाएं हैं l दुनिया के किसी भी कोने में पहुँच जाओ , वे हमसे अलग नहीं होंगे l उसी के अनुरूप व्यक्ति अपने परिवार को मर्यादित देखना चाहता है ताकि समाज में इज्जत बनी रहे लेकिन जब पापों की , दुष्कर्मों की काली छाया इतनी भयंकर हो जाएगी तब सिर पीटने और घुटन भरी , मृत्यु से भी बदतर जिन्दगी के अलावा कुछ भी शेष नहीं बचेगा l
15 April 2018
WISDOM ---- जागरूक हों ----- प्रकृति हमें कुछ सन्देश देना चाहती है !
संसार में विभिन्न घटनाएँ घटती रहती हैं ' लेकिन कुछ दिल दहला देने वाली घटनाएँ ऐसी होती हैं जिन पर प्रकृति माँ भी रोती हैं l इस धरती पर विभिन्न जाति, धर्म अलग - अलग हैं l हर धर्म में श्रेष्ठ और महान आत्माएं इस धरती पर अवतरित हुईं l निर्दोष और मासूम की चीत्कारों से आज वे आत्माएं भी तड़प रही हैं l यह अत्याचार और अनाचार चाहे बाह्य युद्धों से हो या मनुष्य के भीतर चलने वाले आंतरिक युद्धों से हो l बाह्य युद्ध को तो एक बार आपसी सुलह और सहअस्तित्व के भाव से रोका भी जा सकता है लेकिन मनुष्य के भीतर जो ईर्ष्या - द्वेष , बदला , लोभ - लालच , कामना - वासना की आग धधक रही है उसे कैसे रोका जाये ?
प्रकृति हमें अपने ढंग से समझा रही है --- लाइलाज बीमारियाँ , कभी न मिटने वाला तनाव , पर्यावरण प्रदूषण, सब कुछ होते हुए भी जीवन में खोखलापन , प्राकृतिक आपदाएं --- यह सब मनुष्य की कायरता , निर्दोष और मासूमों की चीत्कारों का ही परिणाम है l
अहंकार में डूबा मनुष्य अब भी नहीं सुधर रहा , अपने स्वार्थ के लिए आज मनुष्य कितना नीचे गिर सकता है , इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती l अपने पाप और अपराध को छुपाने के लिए धर्म को भी कवच बना लिया है l
निर्दोष और मासूम आत्माएं उस अनन्त आकाश से हमें सन्देश दे रहीं हैं -- कब तक सोते रहोगे , अब तो जागो , केवल दुःख व्यक्त करने से कुछ नहीं होगा , जागो ! कोई और मासूम , माँ की गोद से बिछड़े लाल की चीत्कारें तुम्हारी श्रद्धा और विश्वास में अनसुनी न रह जाएँ l पत्थरों का कोई धर्म नहीं होता l पवित्रता ह्रदय में होती है , पत्थरों में नहीं l
प्रकृति हमें अपने ढंग से समझा रही है --- लाइलाज बीमारियाँ , कभी न मिटने वाला तनाव , पर्यावरण प्रदूषण, सब कुछ होते हुए भी जीवन में खोखलापन , प्राकृतिक आपदाएं --- यह सब मनुष्य की कायरता , निर्दोष और मासूमों की चीत्कारों का ही परिणाम है l
अहंकार में डूबा मनुष्य अब भी नहीं सुधर रहा , अपने स्वार्थ के लिए आज मनुष्य कितना नीचे गिर सकता है , इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती l अपने पाप और अपराध को छुपाने के लिए धर्म को भी कवच बना लिया है l
निर्दोष और मासूम आत्माएं उस अनन्त आकाश से हमें सन्देश दे रहीं हैं -- कब तक सोते रहोगे , अब तो जागो , केवल दुःख व्यक्त करने से कुछ नहीं होगा , जागो ! कोई और मासूम , माँ की गोद से बिछड़े लाल की चीत्कारें तुम्हारी श्रद्धा और विश्वास में अनसुनी न रह जाएँ l पत्थरों का कोई धर्म नहीं होता l पवित्रता ह्रदय में होती है , पत्थरों में नहीं l
14 April 2018
WISDOM ---- पीड़ित और प्रताड़ित व्यक्ति को उपदेशों का मरहम सुखी नहीं कर सकता
रुसी साहित्यकार एन्टन चेखव का लिखा नाटक ' वार्ड न. ६ ' में इस तथ्य को उभारा गया है कि हिंसा और अत्याचार को रोकने के लिए निष्क्रिय विरोध , उपेक्षा और उदासीनता से काम नहीं चलता , उसे रोकने के लिए अदम्य और कठोर संघर्ष की आवश्यकता है तभी उसमे सफल हुआ जा सकता है l बुद्धिजीवी वर्ग की नपुंसक अकर्मण्यता पर तीव्र प्रहार करने वाला यह नाटक जब लेनिन ने देखा तो वे इतने व्यग्र हो गए कि अपने स्थान पर बैठ न सके l
' वार्ड न. ६ ' नाटक पागलखाने की पृष्ठभूमि पर लिखा गया नाटक है ----- डा. रैगिन पागलों के अस्पताल के सुपरिटेंडेट हैं l उनकी आकांक्षा है अस्पताल में सुधार की परन्तु प्रतिकूलताओं से लड़ने का उनमे साहस नहीं है l वह अस्पताल की व्यवस्था और सिस्टम में कोई सुधार नहीं कर पाते इस कारण अस्पताल में अव्यवस्था बढती गई और एक दिन वहां का जमादार अस्पताल का संरक्षक बन बैठा l वह रोगियों और कर्मचारियों से बहुत दुर्व्यवहार करता , उन्हें मारता - पीटता l जब रोगी व कर्मचारी शिकायत लेकर डा. रैगिन के पास जाते तो वह उन्हें सैद्धांतिक उपदेश देने लगता कि अपनी सहन शक्ति बढ़ाओ l इस पर उनमे घंटों तक विवाद चलता l इसमें बुद्धिजीवी वर्ग के डा. रैगिन की निष्क्रियता और उदासीनता तथा कर्मचारियों द्वारा हिंसा व अत्याचार के विरुद्ध कठोर संघर्ष और स्वाभिमान पूर्ण प्रतिरोध की भावना स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त होती है l यह विवाद बढ़ता ही चला गया और एक दिन ऐसा आता है कि डा. रैगिन को पागल और विक्षिप्त करार देकर उसी पागलखाने के वार्ड न. ६ में भर्ती करा दिया जाता है l
चेखव की रचनाओं में सत्य को जिस बुलंदगी से कहा गया है , बहुत कम साहित्यकार ऐसा करने का साहस कर सके हैं l
' वार्ड न. ६ ' नाटक पागलखाने की पृष्ठभूमि पर लिखा गया नाटक है ----- डा. रैगिन पागलों के अस्पताल के सुपरिटेंडेट हैं l उनकी आकांक्षा है अस्पताल में सुधार की परन्तु प्रतिकूलताओं से लड़ने का उनमे साहस नहीं है l वह अस्पताल की व्यवस्था और सिस्टम में कोई सुधार नहीं कर पाते इस कारण अस्पताल में अव्यवस्था बढती गई और एक दिन वहां का जमादार अस्पताल का संरक्षक बन बैठा l वह रोगियों और कर्मचारियों से बहुत दुर्व्यवहार करता , उन्हें मारता - पीटता l जब रोगी व कर्मचारी शिकायत लेकर डा. रैगिन के पास जाते तो वह उन्हें सैद्धांतिक उपदेश देने लगता कि अपनी सहन शक्ति बढ़ाओ l इस पर उनमे घंटों तक विवाद चलता l इसमें बुद्धिजीवी वर्ग के डा. रैगिन की निष्क्रियता और उदासीनता तथा कर्मचारियों द्वारा हिंसा व अत्याचार के विरुद्ध कठोर संघर्ष और स्वाभिमान पूर्ण प्रतिरोध की भावना स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त होती है l यह विवाद बढ़ता ही चला गया और एक दिन ऐसा आता है कि डा. रैगिन को पागल और विक्षिप्त करार देकर उसी पागलखाने के वार्ड न. ६ में भर्ती करा दिया जाता है l
चेखव की रचनाओं में सत्य को जिस बुलंदगी से कहा गया है , बहुत कम साहित्यकार ऐसा करने का साहस कर सके हैं l
WISDOM ----- विवेक और समझदारी जरुरी है , ' अपने ' ज्यादा घातक होते हैं
पारिवारिक व्यवस्था परस्पर विश्वास और त्याग पर टिकी है , लेकिन लालच , स्वार्थ , ईर्ष्या - द्वेष , कामना - वासना ने मनुष्य के भीतर छुपे राक्षस को जगा दिया है l इस कारण यह व्यवस्था चरमराने लगी है l भूमि - सम्पति के झगड़े, महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा, यह सब परिवार में ही होता है , इसमें विजातीय या विधर्मी नहीं आते l कोई महिला अकेली है , कमजोर है तो उसकी सम्पति उसके परिवार , रिश्तेदार ही हड़प लेते हैं l
एक ही बिरादरी के लोगों में ईर्ष्या और आपसी दुश्मनी इस कदर बढ़ जाती है कि वे ' अपनों ' को ही परेशान करने के लिए गैरों का , विधर्मियों का सहारा लेते हैं l आज व्यक्ति में दोगलापन है , शराफत और सज्जनता के मुखौटे के पीछे कितनी कालिक है ! इसी को समझने और सतर्क रहने की जरुरत है l
एक ही बिरादरी के लोगों में ईर्ष्या और आपसी दुश्मनी इस कदर बढ़ जाती है कि वे ' अपनों ' को ही परेशान करने के लिए गैरों का , विधर्मियों का सहारा लेते हैं l आज व्यक्ति में दोगलापन है , शराफत और सज्जनता के मुखौटे के पीछे कितनी कालिक है ! इसी को समझने और सतर्क रहने की जरुरत है l
13 April 2018
WISDOM ---- स्वतंत्रता और जागरूकता
युगों की गुलामी के बाद हम आजाद हो गए , स्वतंत्र हो गए l अपने ऊपर हुए जुल्मों के लिए सदा दूसरों को ही दोष दिया , अपने भीतर नहीं झाँका , अपनी कमियों को नहीं देखा l युगों से नारी पर अत्याचार हुए ---- सती - प्रथा --- पति की मृत्यु के बाद पत्नी को पति के साथ जीवित जला दिया जाता था l बाल - विधवा --- पति को देखा ही नहीं और उसकी मृत्यु होने पर विधवा हो गई , फिर जिन्दगी भर समाज के जुल्म सहे l
अब इस आधुनिक युग में कन्या - भ्रूण - हत्या , दहेज के लिए हत्या , घरेलू हिंसा , विभिन्न कार्यालयों में महिला - उत्पीड़न l इन सबसे भी जी नहीं भरा तो छोटी - छोटी नादान बच्चियों पर जुल्म l यह सब अत्याचार किसी विदेशी ने नहीं किए l अपने ही लोगों ने सताया है l
स्वतंत्रता का दुरूपयोग न हो इसके लिए हमें जागरूक होने की जरुरत है l हर अपराध की शुरुआत परिवार से होती है l चोर , जुआरी , शराबी पैसों की जरुरत होने पर सबसे पहले अपने घर में ही चोरी करते है , फिर मित्रों व रिश्तेदारों के यहाँ चोरी करते हैं , अपने हुनर में माहिर हो जाने पर वे समाज में बड़े स्तर पर चोरी - डकैती करते हैं l इसी तरह बड़े - बड़े अपराधी , दुष्कर्मी सभी अपने अपराध की शुरुआत परिवार से ही करते हैं l लालच , वासना , क्रोध में आदमी अँधा हो जाता है , अपने पराये का भेद भूल जाता है l परिवार के लोग समाज में अपनी इज्जत को बचाए रखने के लिए चुप रहते हैं , उनकी यही चुप्पी , उनकी उदासीनता ऐसे अपराधी को बढ़ावा देती है l
अपने स्वार्थ , लालच आदि अनेक कारणों से जब लोग किसी अपराधी का समर्थन करते हैं , उसे संरक्षण देते हैं तो इसका अर्थ है कि वे उसके द्वारा किये जाने वाले अपराध का समर्थन कर रहे हैं , उसकी दुष्प्रवृति को बढ़ावा दे रहे हैं l आज के समय में हर व्यक्ति स्वतंत्र है , अपने मन से काम करने के लिए अपने ढंग से जीने के लिए l लेकिन हमें जागरूक होना होगा क्योंकि अपनों को लूटना ज्यादा आसान होता है , हर अपराधी यह सरल काम पहले करता है l बस, उसके तरीके , उसका रूप अलग हो सकता है -- कभी धोखा देकर , कभी स्वयं को बहुत अच्छा दिखाकर , कभी स्वयं परदे की आड़ में रहकर दूसरों को माध्यम से अपने ही मित्रों , सगे - संबंधी को लूटना l ईर्ष्या - द्वेष , लालच, कामना - वासना ऐसे दुर्गुण हैं जिनके वशीभूत होकर व्यक्ति अपने हितैषी का भी अहित करने से नहीं चूकता l
अब इस आधुनिक युग में कन्या - भ्रूण - हत्या , दहेज के लिए हत्या , घरेलू हिंसा , विभिन्न कार्यालयों में महिला - उत्पीड़न l इन सबसे भी जी नहीं भरा तो छोटी - छोटी नादान बच्चियों पर जुल्म l यह सब अत्याचार किसी विदेशी ने नहीं किए l अपने ही लोगों ने सताया है l
स्वतंत्रता का दुरूपयोग न हो इसके लिए हमें जागरूक होने की जरुरत है l हर अपराध की शुरुआत परिवार से होती है l चोर , जुआरी , शराबी पैसों की जरुरत होने पर सबसे पहले अपने घर में ही चोरी करते है , फिर मित्रों व रिश्तेदारों के यहाँ चोरी करते हैं , अपने हुनर में माहिर हो जाने पर वे समाज में बड़े स्तर पर चोरी - डकैती करते हैं l इसी तरह बड़े - बड़े अपराधी , दुष्कर्मी सभी अपने अपराध की शुरुआत परिवार से ही करते हैं l लालच , वासना , क्रोध में आदमी अँधा हो जाता है , अपने पराये का भेद भूल जाता है l परिवार के लोग समाज में अपनी इज्जत को बचाए रखने के लिए चुप रहते हैं , उनकी यही चुप्पी , उनकी उदासीनता ऐसे अपराधी को बढ़ावा देती है l
अपने स्वार्थ , लालच आदि अनेक कारणों से जब लोग किसी अपराधी का समर्थन करते हैं , उसे संरक्षण देते हैं तो इसका अर्थ है कि वे उसके द्वारा किये जाने वाले अपराध का समर्थन कर रहे हैं , उसकी दुष्प्रवृति को बढ़ावा दे रहे हैं l आज के समय में हर व्यक्ति स्वतंत्र है , अपने मन से काम करने के लिए अपने ढंग से जीने के लिए l लेकिन हमें जागरूक होना होगा क्योंकि अपनों को लूटना ज्यादा आसान होता है , हर अपराधी यह सरल काम पहले करता है l बस, उसके तरीके , उसका रूप अलग हो सकता है -- कभी धोखा देकर , कभी स्वयं को बहुत अच्छा दिखाकर , कभी स्वयं परदे की आड़ में रहकर दूसरों को माध्यम से अपने ही मित्रों , सगे - संबंधी को लूटना l ईर्ष्या - द्वेष , लालच, कामना - वासना ऐसे दुर्गुण हैं जिनके वशीभूत होकर व्यक्ति अपने हितैषी का भी अहित करने से नहीं चूकता l
12 April 2018
WISDOM ----- शरीर बल और सामर्थ्य की सार्थकता तभी है जब उससे दुर्बल और पीड़ित व्यक्ति की रक्षा की जाये
' अनाचारी पागलपन की हरकतों को चुपचाप सहते रहने से दुष्ट की उन्मत्तता भड़कती है l इन कृत्यों के प्रति उदासीनता आग में घी का काम करती है l अक्सर देखा यही गया है की अच्छे - अच्छे लोग भी ऐसे अवसरों पर बिगाड़ के भय से कुकर्मी का तिरस्कार नहीं करते चाहे मन में उसके प्रति कितनी ही घ्रणा क्यों न हो l बुराइयों की आग उपेक्षा के ईंधन से भड़कती है और उसकी लपटें सारे मानव समाज को झुलसकर रख देती हैं l '
कायरता समाज का कलंक है
' जब कोई पापी किसी मर्यादा की रेखा का उल्लंघन कर उदाहरण बन जाता है , तब अनेकों को उसका उल्लंघन करने में अधिक संकोच नहीं रहता l '
जब सिकन्दर ने भारत पर आक्रमण किया तब ईर्ष्या - द्वेष में अन्धे होकर तक्षशिला के राजा आम्भीक ने देशद्रोह कर सिकन्दर से मित्रता कर ली l आम्भीक की देखा - देखी अनेक राजा देशद्रोही हो गए l महाराज पुरु को छोड़कर लगभग सारे राजा या तो हारकर मिट चुके थे अथवा देशद्रोह कर के सिकन्दर के झंडे के नीचे आ चुके थे l यह भारत के गौरव में कलंक था l
जब सिकन्दर ने भारत पर आक्रमण किया तब ईर्ष्या - द्वेष में अन्धे होकर तक्षशिला के राजा आम्भीक ने देशद्रोह कर सिकन्दर से मित्रता कर ली l आम्भीक की देखा - देखी अनेक राजा देशद्रोही हो गए l महाराज पुरु को छोड़कर लगभग सारे राजा या तो हारकर मिट चुके थे अथवा देशद्रोह कर के सिकन्दर के झंडे के नीचे आ चुके थे l यह भारत के गौरव में कलंक था l
11 April 2018
WISDOM ---- गृहस्थ - योगी ------ राष्ट्रमाता कस्तूरबा
गृहस्थ - योग भी योगशास्त्र की एक शाखा माना जाता है और पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन काल में अनेक नारियों ने इसी के द्वारा महान सिद्धियाँ प्राप्त की हैं l बा की सेवा - भावना और परिचर्या भी लगभग निष्काम कर्मयोग की श्रेणी में जा पहुंची थी l एक बार जब गांधीजी ने बा से कहा --- " मैंने तुझे गहने पहनने या अच्छी रेशमी साड़ियाँ पहनने से कब रोका ?
बा ने कुछ गंभीर होकर कहा --- " आपको साधु - संन्यासी बनना है l तब भला मैं मौज - शौक से रहकर क्या करती ? आपका मन जान लेने के बाद मैंने भी अपने मन को मोड़ लिया और दुनिया का रास्ता छोड़ दिया l "
ऐसा था बा और बापू का दाम्पत्य जीवन l
यद्दपि प्रकट में बा और बापू में कहा - सुनी होती जान पड़ती थी , पर आंतरिक रूप से दोनों एक थे , एक दूसरे के गुणों को समझते थे l
एक बार अन्य किसी प्रान्त का युवक आश्रम में आया और आलोचक की तरह गांधीजी से कहा --- " आप सब किसी को तो चाय आदि पीने से रोकते हैं पर बा तो प्रतिदिन दो बार काफी पीती हैं l " तो गांधीजी ने उत्तर दिया ---- " तुमको मालूम है बा ने कितना अधिक त्याग किया है ? कितनी वस्तुओं और आदतों को छोड़ा है ? अब अगर यदि मैं उसकी इस अन्तिम छोटी सी आदत को भी छुड़ाने की कोशिश करूँ तो मुझसा निर्दयी पति और कौन होगा ? "
मेहमानों की व्यवस्था करने में बा गांधीजी के नियमों को भी ढीला कर देती थीं l दीनबंधु एंड्रूज का काम चाय के बिना चल ही नहीं सकता था l पर गांधीजी के पास किसी को चाय कैसे मिलती l इसलिए बा उनको बुलाकर चाय पिलाती थीं l बा के आश्रम में रहने से ही श्री राजगोपालाचारी को चाय मिलती थी l पं. नेहरु भी खास स्वाद वाली चाय बा के कारण ही पा सकते थे l
अपने गुणों के कारण ही गांधीजी के साथ बा ने अपना भी नाम अमर कर लिया l
बा ने कुछ गंभीर होकर कहा --- " आपको साधु - संन्यासी बनना है l तब भला मैं मौज - शौक से रहकर क्या करती ? आपका मन जान लेने के बाद मैंने भी अपने मन को मोड़ लिया और दुनिया का रास्ता छोड़ दिया l "
ऐसा था बा और बापू का दाम्पत्य जीवन l
यद्दपि प्रकट में बा और बापू में कहा - सुनी होती जान पड़ती थी , पर आंतरिक रूप से दोनों एक थे , एक दूसरे के गुणों को समझते थे l
एक बार अन्य किसी प्रान्त का युवक आश्रम में आया और आलोचक की तरह गांधीजी से कहा --- " आप सब किसी को तो चाय आदि पीने से रोकते हैं पर बा तो प्रतिदिन दो बार काफी पीती हैं l " तो गांधीजी ने उत्तर दिया ---- " तुमको मालूम है बा ने कितना अधिक त्याग किया है ? कितनी वस्तुओं और आदतों को छोड़ा है ? अब अगर यदि मैं उसकी इस अन्तिम छोटी सी आदत को भी छुड़ाने की कोशिश करूँ तो मुझसा निर्दयी पति और कौन होगा ? "
मेहमानों की व्यवस्था करने में बा गांधीजी के नियमों को भी ढीला कर देती थीं l दीनबंधु एंड्रूज का काम चाय के बिना चल ही नहीं सकता था l पर गांधीजी के पास किसी को चाय कैसे मिलती l इसलिए बा उनको बुलाकर चाय पिलाती थीं l बा के आश्रम में रहने से ही श्री राजगोपालाचारी को चाय मिलती थी l पं. नेहरु भी खास स्वाद वाली चाय बा के कारण ही पा सकते थे l
अपने गुणों के कारण ही गांधीजी के साथ बा ने अपना भी नाम अमर कर लिया l
10 April 2018
WISDOM ----- जबतक कोई व्यक्ति अच्छा नागरिक न हो तब तक वह अच्छा जन - प्रतिनिधि या अच्छा राजनीतिज्ञ कैसे हो सकता है ?------ बंट्रेंड रसेल
रसेल कहते थे कि राजनीतिक प्रतिनिधि आमतौर पर ऐसा मानने लगते हैं कि राजनीति में सज्जनता और नैतिकता की कोई गुंजाइश नहीं है l रसेल ने लिखा है --- " संसद और विधान सभाओं के सदस्य आराम से रहते हैं, मोटी - मोटी दीवारें और असंख्य पुलिस जन उनको जनता की आवाज से बचाए रखते हैं l जैसे - जैसे समय बीतता जाता है उनके मन में उन वचनों की धुंधली सी स्मृति ही रह जाती है जो निर्वाचन के समय जनता को दिए थे l दुर्भाग्य यह है कि समाज के व्यापक हित वास्तव में अमूर्त होते हैं और विधायकों के निजी संकीर्ण हितों को ही जनता का हित मान लिया जाता है l "
रसेल लोकतंत्र और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए निरंतर संगठित प्रतिरोध को अनिवार्य मानते थे l इससे समाज में अव्यवस्था का खतरा पैदा हो सकता है परन्तु यह सर्वशक्तिमान राजसभा से उत्पन्न होने वाली जड़ता की तुलना में यह खतरा नगण्य है l
रसेल गांधीजी की तरह साम्राज्यवाद, आर्थिक - विषमता और राजनीतिक सत्ता के केन्द्रीकरण के प्रबल विरोधी थे l
रसेल लोकतंत्र और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए निरंतर संगठित प्रतिरोध को अनिवार्य मानते थे l इससे समाज में अव्यवस्था का खतरा पैदा हो सकता है परन्तु यह सर्वशक्तिमान राजसभा से उत्पन्न होने वाली जड़ता की तुलना में यह खतरा नगण्य है l
रसेल गांधीजी की तरह साम्राज्यवाद, आर्थिक - विषमता और राजनीतिक सत्ता के केन्द्रीकरण के प्रबल विरोधी थे l
9 April 2018
WISDOM----- अच्छी सरकार किसे कहते हैं ?
एक बार कन्फ्यूशियस से किसी शिष्य ने पूछा --- " अच्छी सरकार किसे कहते हैं ? "
कन्फ्यूशियस ने उत्तर दिया ---- " जिसके पास पर्याप्त अन्न हो , पर्याप्त अस्त्र - शस्त्र हों और जिस पर जनता का विश्वास हो ? "
शिष्य ने पुन: पूछा ---- " मान लीजिए तीनो बातें न मिल सकें ? "
गुरु ने कहा --- " इनमे से हथियार निकाल सकते हो l "
शिष्य की जिज्ञासा शान्त नहीं हुई और उसने फिर प्रश्न किया --- " यदि इन तीनो में से एक ही रखना हो तो कौन सी पसंद करेंगे ? "
कन्फ्यूशियस ने गम्भीर मुद्रा में उत्तर दिया ---- " जनता का विश्वास l "
चीन के एक अत्याचारी शासक ने कन्फ्यूशियस की मृत्यु के दो सौ वर्ष बाद ही उनकी लिखी सब पुस्तकों को जला दिया था और उनके अनुयायी विद्वानों को फाँसी पर लटकवा दिया था , फिर भी उनके सिद्धान्त आज भी चीन ही नहीं सारे संसार में आदर की द्रष्टि से देखे जाते हैं l
कन्फ्यूशियस ने उत्तर दिया ---- " जिसके पास पर्याप्त अन्न हो , पर्याप्त अस्त्र - शस्त्र हों और जिस पर जनता का विश्वास हो ? "
शिष्य ने पुन: पूछा ---- " मान लीजिए तीनो बातें न मिल सकें ? "
गुरु ने कहा --- " इनमे से हथियार निकाल सकते हो l "
शिष्य की जिज्ञासा शान्त नहीं हुई और उसने फिर प्रश्न किया --- " यदि इन तीनो में से एक ही रखना हो तो कौन सी पसंद करेंगे ? "
कन्फ्यूशियस ने गम्भीर मुद्रा में उत्तर दिया ---- " जनता का विश्वास l "
चीन के एक अत्याचारी शासक ने कन्फ्यूशियस की मृत्यु के दो सौ वर्ष बाद ही उनकी लिखी सब पुस्तकों को जला दिया था और उनके अनुयायी विद्वानों को फाँसी पर लटकवा दिया था , फिर भी उनके सिद्धान्त आज भी चीन ही नहीं सारे संसार में आदर की द्रष्टि से देखे जाते हैं l
8 April 2018
WISDOM ----- जीवन में सच्चाई हो तो प्रकृति रक्षा करती है
यदा - कदा मनुष्य का मोह और मानसिक दुर्बलताएं प्रवंचना के जाल में फंसा कर उसको गलत दिशा की ओर प्रेरित कर देती हैं l इस मनोसंकट के समय मनुष्य को सावधानीपूर्वक विवेक का ही अवलम्ब लेकर और अपने को तटस्थ बना कर परिणाम की महत्ता के प्रकाश में किसी निर्णय का निर्धारण करना चाहिए l किंचित कमजोरी से मनुष्य का व्यक्तिगत मोह ' सर्वजन हिताय ' की महानता पर आच्छादित हो जाता है l लेकिन जो अपने जीवन में सच्चे होते हैं और जिसका संग उत्तम होता है उसके डगमगाते कदम को रोकने वाले संयोग आ ही जाते हैं l
6 April 2018
WISDOM ----- कर्म ही ईश्वर की सच्ची पूजा है ----- संत वसवेश्वर
कर्नाटक के महान संत वसवेश्वर ने व्याख्यान शैली नहीं अपनाई , वे सुकरात की तरह विचार विमर्श और मंत्रणा करने का क्रम अपनाकर चले l उनके सम्पर्क में आने वाले सच्चे धर्म परायण बनते चले गए , यह संख्या इतनी बढ़ती गई कि उनका समूह ' लिंगायत ' के नाम से प्रसिद्ध हुआ l सन्त वसवेश्वर ने बताया कि केवल पूजा - प्रार्थना , कर्मकांड के आधार पर भगवान का अनुग्रह प्राप्त नहीं किया जा सकता l कर्तव्यहीन व्यक्ति ही तथाकथित धर्म - कृत्यों को सब कुछ मान लेते हैं l
ईश्वर की प्राप्ति उच्च चरित्र , उदार प्रकृति और परमार्थ परायणता पर निर्भर है l उनका कहना था कि जो व्यक्ति अपने व्यक्तिक और सामाजिक कर्तव्यों का पालन निष्ठापूर्वक करता है वही सच्चा धर्म परायण है l वे पूजा - पाठ द्वारा पाप - फल न मिलने का बहकावा नहीं देते थे l '
उनका कहना था कि भक्ति की पूर्णता और सार्थकता के लिए मनुष्य का व्यक्तिगत और सामाजिक आचरण शुद्ध , सच्चरित्र , ईमानदार , नेक और पवित्र होना चाहिए l
ईश्वर की प्राप्ति उच्च चरित्र , उदार प्रकृति और परमार्थ परायणता पर निर्भर है l उनका कहना था कि जो व्यक्ति अपने व्यक्तिक और सामाजिक कर्तव्यों का पालन निष्ठापूर्वक करता है वही सच्चा धर्म परायण है l वे पूजा - पाठ द्वारा पाप - फल न मिलने का बहकावा नहीं देते थे l '
उनका कहना था कि भक्ति की पूर्णता और सार्थकता के लिए मनुष्य का व्यक्तिगत और सामाजिक आचरण शुद्ध , सच्चरित्र , ईमानदार , नेक और पवित्र होना चाहिए l
5 April 2018
WISDOM ----- जनता सदैव जागरूक रहे ----- कन्फ्यूशियस
कन्फ्यूशियस का कहना था कि अत्याचारी शासक चीते से भी अधिक भयंकर होता है l अत्याचारी शासन में रहने की अपेक्षा अच्छा है कि किसी पहाड़ी अथवा वन में रह लिया जाये l किन्तु यह व्यवस्था सार्वजनिक नहीं हो सकती l इसलिए जनता को चाहिए कि वह अत्याचारी शासन का समुचित विरोध करे और सत्ताधारी को अपना सुधार करने के लिए विवश करने का उपाय करे l '
कन्फ्यूशियस का स्पष्ट मत था कि --- अत्याचारी शासन को भय के कारण सहन करने वाला समाज किसी प्रकार की उन्नति नहीं कर पाता l विकासहीन जीवन बिताता हुआ वह युगों तक नारकीय यातना भोगा करता है तथा सदा सर्वदा अवनति के गर्त में पड़ा रहकर जिस - तिस प्रकार जीवन व्यतीत करता रहता है l अत: दु:शासन को पलटने के लिए जनता सदैव जागरूक रहे l '
कन्फ्यूशियस का स्पष्ट मत था कि --- अत्याचारी शासन को भय के कारण सहन करने वाला समाज किसी प्रकार की उन्नति नहीं कर पाता l विकासहीन जीवन बिताता हुआ वह युगों तक नारकीय यातना भोगा करता है तथा सदा सर्वदा अवनति के गर्त में पड़ा रहकर जिस - तिस प्रकार जीवन व्यतीत करता रहता है l अत: दु:शासन को पलटने के लिए जनता सदैव जागरूक रहे l '
4 April 2018
WISDOM ----- सत्ता और धन के सदुपयोग से ही मानव - जाति का कल्याण होगा
प्राय: ऐसा देखा जाता है कि जब कोई साधारण स्थिति का मनुष्य संयोगवश ऐसा उच्च स्थान पा जाता है तो वह अपनी अवस्था को भूलकर अभिमानी और स्वार्थी बन जाता है और अपनी सम्पति और साधनों का स्वयं ही अधिकाधिक उपयोग करना चाहता है l ऐसे व्यक्ति निश्चित ही बड़े संकीर्ण और अदूरदर्शी होते हैं l वे इतना नहीं सोच पाते कि सौभाग्य की स्थिति को अविचल या अटल समझ लेना बुद्धिमानी नहीं है l न मालूम कब वह बादल की छाया की तरह विलीन हो जाये l इसलिए स्वहित की बात यही है कि ऐसा अवसर पाकर उसका सदुपयोग अधिकाधिक परोपकार और दूसरों के साथ भलाई के लिए ही किया जाये , जिससे प्रत्येक परिवर्तित दशा में आत्मसंतोष बना रहे l
महारानी अहिल्याबाई का चरित्र इस द्रष्टि से आदर्श था l एक साधारण ग्रामीण कन्या से वे इंदौर की महारानी बनी l इतना बड़ा दर्जा पा लेने पर भी उनमे अहंकार नहीं था l उन्हें जो कुछ धन , मान मिला उसका उपयोग उन्होंने सदैव दूसरों के हित के लिए किया l दीन - हीन , विधवाएं , अनाथ , निर्धन व्यक्ति उनकी करुणा के मुख्य आधार थे l धन और सत्ता के सदुपयोग का उन्होंने एक ऐसा महान आदर्श उपस्थित किया जिसकी गुण गाथा हमेशा गाई जाएगी l यदि हमारे अनेक छत्रधारी इस पथ पर चले होते तो यह पृथ्वी क्लेश और कष्टों के बजाय आनन्द और शान्ति का आगार बनी दिखाई पड़ती l
3 April 2018
WISDOM --- जन - आन्दोलन प्राय: उसी स्थिति में गति पकड़ते हैं जब उसके द्वारा जनता की किसी समस्या का समाधान होता हो
वर्ष 1905 जब देश पर लार्ड कर्जन का कूटनीति पूर्ण शासन चल रहा था l वे जब से भारत के वायसराय बन कर आये थे , तब से यहाँ की जन - जागृति को दबाने की तरकीबें कर रहे थे और उनका अंतिम प्रहार था -- 19 अक्टूबर 1905 को बंगाल का विभाजन l उस समय जनता में विदेशी शासकों के प्रति विद्रोह का भाव अपने चरम बिन्दु पर था l देश भर में आन्दोलन चला l ज्यों - ज्यों आन्दोलन गति पकड़ता गया सरकार का दमन - चक्र भी क्रूर और दानवी होता गया l
' जन - भावनाओं का दमन वह भी आतंक के बल पर , कोई भी सरकार सफल नहीं रही है l इतिहास इस बात का साक्षी है l मन की पाशविक प्रक्रिया विद्रोह की आग को कुछ क्षणों के लिए भले ही कम कर दे , परन्तु वह अन्दर ही अन्दर सुलगती रहती है और जब विस्फोट होता है तो बड़ी से बड़ी संहारक शक्तियां और साम्राज्य ध्वस्त हो जाते हैं l
शताब्दियों से भारतीय समाज पर किये जाने वाले अत्याचारों की भी प्रतिक्रिया अन्दर ही अन्दर सुलगती रही और बंग - भंग योजना का प्रतिरोध करते समय फूट पड़ी l उस समय देश का बच्चा - बच्चा आततायी के सामने खुल कर मुकाबला करने के लिए आ खड़ा हुआ l
' जन - भावनाओं का दमन वह भी आतंक के बल पर , कोई भी सरकार सफल नहीं रही है l इतिहास इस बात का साक्षी है l मन की पाशविक प्रक्रिया विद्रोह की आग को कुछ क्षणों के लिए भले ही कम कर दे , परन्तु वह अन्दर ही अन्दर सुलगती रहती है और जब विस्फोट होता है तो बड़ी से बड़ी संहारक शक्तियां और साम्राज्य ध्वस्त हो जाते हैं l
शताब्दियों से भारतीय समाज पर किये जाने वाले अत्याचारों की भी प्रतिक्रिया अन्दर ही अन्दर सुलगती रही और बंग - भंग योजना का प्रतिरोध करते समय फूट पड़ी l उस समय देश का बच्चा - बच्चा आततायी के सामने खुल कर मुकाबला करने के लिए आ खड़ा हुआ l
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