25 December 2017

सर्वप्रिय ------ महामना पं. मदनमोहन मालवीयजी

    मालवीयजी  धर्म भक्त ,  देश   भक्त   और  समाज  भक्त  होने  के  साथ - साथ   सुधारक  भी  थे  ,  पर  उनके  सुधार  कार्यों  में  अन्य  लोगों  से  कुछ  अंतर  था  l  अन्य  सुधारक  जहाँ  समाज  से  विद्रोह ,  संघर्ष  करने  लग  जाते  हैं  वहां  मालवीयजी  समाज  से  मिलकर  चलने  के  पक्षपाती  थे  l  वे  सुधार  अवश्य  करते  थे  ,  जैसे  उन्होंने  हरिजनों  को मन्त्र  दीक्षा  दी  ,  पर  उन्होंने  यह  कार्य  लोगों  को  समझा-बुझाकर  और  राजी  कर के  ही  किया  l  उनका  मत  था  कि   समाज  से  विद्रोह  कर  के  ,  अपने  नए  रास्ते  पर  चलने  से  कोई  ठोस  कार्य  नहीं  कर  सकते  l  उस  अवस्था  में  समाज  हमारी  बात  की  तरफ  ध्यान  ही  नहीं  देगा    और  उसका  विरोध  करेगा  जिससे  सुधार  का  कुछ  भी  उद्देश्य  पूरा  न  होगा  l 
  मालवीयजी  ने  सुधार  के  कामों   में  कभी  जल्दबाजी  नहीं  की  ,  जो  कुछ  किया   वह  समाज  को  साथ  लेकर  ही  किया  l  उनका  कहना  था  कि  जब  हम  समाज  के  कल्याण  के  लिए  प्रयत्न  कर  रहे  हैं   तो  उसके  साथ  रहकर  ही  वैसा  किया  जा  सकता  है  l
 मालवीयजी  स्वभाव  से  ही   यथासंभव  समझौते  से  कार्य  को   सिद्ध  करने  की  नीति  में   विश्वास  रखते  थे  ,  इसका  परिणाम  यह  हुआ  कि   सामाजिक ,  धार्मिक  और  राजनीतिक  क्षेत्र  में  उन्होंने   बड़ी - बड़ी  कठिन  समस्याओं  को  सुलझा  दिया  l  मालवीयजी  लोकप्रिय  थे  ,  जनता  उनके  प्रति  श्रद्धा  रखती  थी  l