14 December 2017

WISDOM ----- धर्म पर दृढ़ रह कर हानिकारक रूढ़ियों के बंधन तोड़े

  लोकमान्य  तिलक  सच्चे  धर्म  का  पालन  करने  वाले  थे  l    यद्दपि  आचार - व्यवहार  में  तिलक  महाराज  कट्टर  धार्मिक  माने  जाते  थे  ,  पर  वे  अन्धविश्वासी  नहीं  थे  l  वे  जानबूझकर  किसी  धर्म  संबंधी  नियम  का  उल्लंघन  नहीं  करते  थे   ,  पर  अपने  कर्तव्य पालन  में  दिखावटी  परंपरा  की   बातों    को   बाधक  भी  नहीं  होने  देते  थे  l  जब  अपने  मुक़दमे  और  होमरूल   आन्दोलन  के  लिए  उन्हें   विदेश    यात्रा   की  आवश्यकता  पड़ी   तो  यह  प्रश्न  उठा  कि  बहुसंख्यक  हिन्दू   विदेश  यात्रा  को  शास्त्र अनुसार  वर्जित  मानते  थे  ,  इसलिए  इंग्लैंड  कैसे  जाएँ   ? लोकमान्य  ने  इस  सम्बन्ध  में  काशी  के  पंडितों  से  व्यवस्था   चाही  l  पर  उन  कलियुगी  पंडितों  ने  कहा  कि  हम  विदेश  यात्रा  की  शास्त्रीय  व्यवस्था  दे  सकते  हैं ,  इसके  लिए  पांच  हजार  रूपये  भेंट  देना  होगा  l
  तिलक  महाराज  जो   स्वयं  हिन्दू  शास्त्रों  के  सबसे  बड़े  ज्ञाता  थे  ,  इस  ' धर्म  की  दुकानदारी '  को  देखकर  बड़े   नाराज  हुए   और  उन्होंने  पंडितों  की  बात  को  ठुकरा  दिया  l  वे  स्वेच्छापूर्वक  विदेश  चले  गए   और  वहां  से  वापस  आने  पर   स्वयं  ने  ही  शास्त्र  विधि  के  अनुसार   उसका  प्रायश्चित  कर  लिया  l
  लोकमान्य  तिलक  का  चरित्र  हमको  बतलाता    है  कि   किस  प्रकार  मनुष्य  अपने   धर्म  पर  पूर्णतया   दृढ़  रहकर  भी  हानिकारक  रूढ़ियों  के  बंधनों  को  तोड़  सकता  है   l