11 December 2017

WISDOM ------- देश - प्रेम , देश - भक्ति

   घटना  वर्षों  पुरानी  है  ----- वैशाली   महानगरी  दुल्हन  की  तरह  सजी  थी  ,  राज्य महोत्सव  था ,  राजा- प्रजा  सब  संगीत  और  नृत्य  के  आनंद  में   डूबता  जा  रहे  थे  l  अचानक  महल  में  लगे  विशाल  घंटे  की  निरंतर  बजने   की  आवाज  ने  सभी  का  ध्यान  भंग  कर  दिया   l  निरंतर बजने  का  अर्थ  था  कि  शत्रु  ने  देश  पर  आक्रमण  कर  दिया  l  नृत्य  थम  गया  और  युद्ध  की  रणभेरी  वातावरण  में  गूंजने  लगी  l  शत्रु  की  विशाल  सेना  थी    और  वैशाली  के  सैनिकों  की  कोई  पूर्व  तैयारी  नहीं  थी  ,  इस  कारण   उनके  पैर  उखड़ने  लगे  l  राजा  को  बंदी  बना  लिया  गया  l  बाल - वृद्ध ,  नर  नारियों  की  हत्या  एवं   लूटपाट  से  वातावरण  चीत्कार  कर  कर  उठा   l 
  नगर नायक  महायायन  कभी  अपनी  शूरवीरता  के  लिए  विख्यात  थे  लेकिन  अब  वो  वृद्ध  थे  , उनका  अपना  शरीर  भी  साथ  नहीं  दे  रहा  था  l  लेकिन  अपनी  आँखों  के  सामने  यह  अत्याचार  असहनीय  था  l  वह  वृद्ध  नायक   शत्रु  सेनाध्यक्ष  से  मिलने  चल  पड़े  l   शत्रु  को  सामने  देखते  ही  बोल  पड़े ---- "  इन  मासूमों  पर  अत्याचार  बंद  करो  l "
  शत्रु  सेनानायक  को  न  जाने  क्या  सूझी ,  उसने   वैशाली  के  नगर नायक  महायायन   के  सामने  एक  विचित्र  शर्त   रखी  कि ---- तुम  जितनी  देर  सामने  बह  रही  नदी   में  डूबे  रहोगे  ,  हमारी  सेना  लूटपाट  एवं  हत्या   बंद  रखेगी   l  शर्त  स्वीकार  कर  अविलम्ब  वृद्ध  महायायन   नदी  में  कूद पड़े   l  वचनबद्ध  शत्रु  सेना  नायक  ने   अपनी  सेना  को  तब  तक  लूटपाट  बंद  रखने  को   कहा   जब  तक  कि  वृद्ध  का  सिर  पानी  से  बाहर  दिखाई न  पड़े   l  विशाल  सेना  खड़ी  महायायन   का  सिर  पानी  के  बाहर   निकलने  की  प्रतीक्षा   में  ,    लेकिन  प्रात:  से  दोपहर ,  दोपहर  से  शाम  हो  गई   ,  आखिर  सेनानायक  ने   गोताखोरों  को  वृद्ध  का  पता  लगाने  के  लिए  कहा  l  लम्बी  खोजबीन  के   बाद   महायायन   का  मृत  शरीर  चट्टान  से   लिपटा    पाया  गया   l  उसने  दोनों  हाथों  से  चट्टान  को  मजबूती  से  पकड़े  ही  दम  तोड़  दिया  था  l  इस  अनुपम  त्याग  और  बलिदान   को  देखकर  शत्रु  सेनानायक  का   ह्रदय  द्रवित  हो  गया   l 
  मानवता  के  इस  वृद्ध  पुजारी  के  समक्ष  अपनी  हार  स्वीकार  करते  हुए  उसने  सेना  को  वापस  लौटने  का  आदेश  दे  दिया  l