8 December 2017

WISDOM ----- धन की वृद्धि के साथ द्रष्टिकोण का परिष्कार अनिवार्य है

  यदि  लोगों  का  द्रष्टिकोण  परिष्कृत  न  हुआ ,  लोगों  में  सह्रदयता  न  हुई  , संवेदना  विकसित  न  हुई    तो  ऐसा  धन  और  बुद्धि   खुशहाली  नहीं  बढ़ाएगी ,  बल्कि  विनाश  खड़ा  कर  देगी  l 
  एक  बार  ब्रिटिश  संसद  में   वेतन  बढ़ाने  की  मांग  को  लेकर   दार्शनिकों  की  राय  जानने  के  लिए    पार्लियामेंट  में  कुछ  विशेषज्ञों  को  बुलाया  गया  l  उनमे  एक  दार्शनिक  थे ---- जाँन   स्टुअर्ट  मिल  l   उन्होंने  कहा   ----- " मैं  वेतन  बढाने  के   सख्त  खिलाफ  हूँ  ,  मजदूरों  का  वेतन   नहीं  बढ़ाया  जाये   l "
 उन्होंने  अपनी  गवाही  में  कहा ---- ' जो  वेतन  बढाया   जा  रहा  है .  उसकी  तुलना  में   उनके  लिए   स्कूलों   का  प्रबंध  किया  जाये  ,  उनकी  शिक्षा  व  स्वास्थ्य  का  प्रबंध  किया  जाये  l  जब  वे  सभ्य  और  सुसंस्कृत  हो  जाएँ   तभी  धन  की  वृद्धि  की  जाये   अन्यथा  पैसों  की  वृद्धि  करने  से   मुसीबत  आ  जाएगी  और  ये  मजदूर  तबाह  हो  जायेंगे  l  "  उनकी  सलाह  पर  ध्यान  न  देकर   सभी  ने  एक  मत  से  मजदूरों  का  वेतन  डेढ़  गुना   बढ़ा    दिया   l
  तीन  साल  बाद  जब  इन्क्वायरी  हुई    कि    डेढ़  गुना  वेतन   जो  बढाया  गया  था   उसका  क्या  फायदा  हुआ  ?   मालूम  पड़ा  कि  मजदूरों  की  बस्तियों  में  जो  शिकायतें  थीं  , वे  पहले  से  दोगुनी  हो  गईं  l  खून खराबा   पहले  से  बढ़  गया , शराबखाने  पहले  की  अपेक्षा  दुगुने  हो  गए  l   वेश्यालयों  की  संख्या  पहले  कि  अपेक्षा   दुगुनी - चौगुनी  हो  गई ,  सुजाक  आदि  गुप्त  रोग  पहले  की  अपेक्षा  बहुत  बढ़  गए  l
   जाँन  स्टुअर्ट  मिल  की   सलाह   सही  थी   कि  लोगों  का  द्रष्टिकोण ,  लोगों  का  चिंतन  परिष्कृत  होना  चाहिए  ,  लोगों  का  ईमान  बढ़ना  चाहिए   तभी  वह  बढ़े  हुए  धन  का  सदुपयोग  करेगा   अन्यथा   गरीबी  से  ज्यादा  अमीरी  महँगी  पड़  सकती  है ,  दुनिया  में  तबाही  ला  सकती  है   l 
  यही  स्थिति  आजकल  है  l  जितनी  पैनी  अक्ल  होगी  , उतने  ही  तीखे  विनाश  के  साधन  होंगे  l 
संवेदनहीन , ह्रदयहीन  व्यक्ति  के  पास  जितना  धन  होगा  , जितनी  ताकत  होगी   , वह   उतना  ही  सर्वनाश  करेगा   l