खलील जिब्रान की एक कथा है ----- उनका एक मित्र अचानक एक दिन पागलखाने में रहने चला गया l जब वह उससे मिलने गया तो उसने देखा उसका वह मित्र पागलखाने में बाग़ में एक पेड़ के नीचे बैठा मुस्करा रहा है l पूछने पर उसने कहा --- " मैं यहाँ बड़े मजे से हूँ l मैं बाहर के उस बड़े पागलखाने को छोड़कर इस छोटे पागलखाने में शांति से हूँ l यहाँ पर कोई किसी को परेशान नहीं करता l किसी के व्यक्तित्व पर कोऊ मुखौटा नहीं है l जो जैसा है वह वैसा है l न कोई आडम्बर , न कोई ढोंग l " उसने कहा --- " मैं यहाँ पर ध्यान सीख रहा हूँ क्योंकि ध्यान ही सभी तरह के पागलपन का स्थायी इलाज है l "
24 November 2017
WISDOM ----- ईश्वर पर अटूट विश्वास व्यक्ति को निडर व निश्चिन्त बना देता है l
आत्मविश्वास और ईश्वर विश्वास एक ही सिक्के के दो पहलू हैं l ईश्वर पर विश्वास कर के व्यक्ति संसार के किसी भी भय एवं प्रलोभन से विचलित नहीं होता l सुद्रढ़ विश्वास किसी भी चुनौती से घबराता नहीं है , बल्कि उससे पार पाने के लिए अपनी राह निकाल कर आगे अग्रसर हो जाता है l
इस संबंध में एक घटना मुगलकालीन भारत के महान कवि श्रीपति के जीवन की है l श्रीपति माँ भगवती के परम उपासक थे l अपनी बुद्धिमता और माँ की कृपा वे मुगल बादशाह अकबर के अति प्रिय थे , उन्होंने श्रीपति को दरबार में अपना सलाहकार बना रखा था l इस कारन अनेक दरबारी उनसे ईर्ष्या करते थे l एक दिन दरबारियों ने भक्त श्रीपति नीचा दिखाने के लिए एक तरकीब निकली l एक दिन दरबार में श्रीपति को छोड़कर अन्य कवियों व दरबारियों ने एक प्रस्ताव रखा कि अगले दिन सभी कवि स्वरचित कविता सुनायेंगे जिसकी अंतिम पंक्ति में यहय रहे ---- " करौं मिलि आस अकबर की l " दरबारियों को अनुमान था कि श्रीपति तो माँ भवानी के भक्त हैं , वे बादशाह की प्रशंसा नहीं करेंगे बादशाह उनसे नाराज हो जाये , संभव है कोई दंड दे l
अगले दिन दरबार में भारी भीड़ थी l सभी अपनी स्वरचित कवितायेँ सुनाकर अकबर की प्रशंसा कर रहे थे और श्रीपति जी मन ही मन ईश्वर का स्मरण करते हुए निडर व निश्चिन्त थे , उन्हें भरोसा था कि संकट की इस घड़ी में माँ भगवती उनकी चेतना में प्रकट होकर अवश्य मार्ग दिखाएंगी l अंत में उनकी बारी भी आ गई , वे आसन से उठे और माता का स्मरण करते हुए अपनी स्वरचित कविता पढ़ी ------ अबके सुलतान फरियांन समान है .
बांधत पाग अटब्बर की ,
तजि एक को दूसरे को जो भजे ,
कटी जीभ गिरै वा लब्बर की
सरनागत ' श्रीपति ' माँ दुर्गा कि
नहीं त्रास है काहुहि जब्बर की
जिनको माता सो कछु आस नहीं ,
करौं मिलि आस अक्ब्बर की ll
इस कविता को सुनकर सभी षड्यंत्र कारियों के मुख पर कालिमा छा गई l बादशाह अकबर बहुत प्रसन्न हुआ l उसने भक्त श्रीपति को यह कहते हुए गले लगा लिया कि तुम्हारी भक्ति सच्ची है , सचमुच जगन्माता तुम्हारी चिंतन , चेतना में विराजती हैं l
इस संबंध में एक घटना मुगलकालीन भारत के महान कवि श्रीपति के जीवन की है l श्रीपति माँ भगवती के परम उपासक थे l अपनी बुद्धिमता और माँ की कृपा वे मुगल बादशाह अकबर के अति प्रिय थे , उन्होंने श्रीपति को दरबार में अपना सलाहकार बना रखा था l इस कारन अनेक दरबारी उनसे ईर्ष्या करते थे l एक दिन दरबारियों ने भक्त श्रीपति नीचा दिखाने के लिए एक तरकीब निकली l एक दिन दरबार में श्रीपति को छोड़कर अन्य कवियों व दरबारियों ने एक प्रस्ताव रखा कि अगले दिन सभी कवि स्वरचित कविता सुनायेंगे जिसकी अंतिम पंक्ति में यहय रहे ---- " करौं मिलि आस अकबर की l " दरबारियों को अनुमान था कि श्रीपति तो माँ भवानी के भक्त हैं , वे बादशाह की प्रशंसा नहीं करेंगे बादशाह उनसे नाराज हो जाये , संभव है कोई दंड दे l
अगले दिन दरबार में भारी भीड़ थी l सभी अपनी स्वरचित कवितायेँ सुनाकर अकबर की प्रशंसा कर रहे थे और श्रीपति जी मन ही मन ईश्वर का स्मरण करते हुए निडर व निश्चिन्त थे , उन्हें भरोसा था कि संकट की इस घड़ी में माँ भगवती उनकी चेतना में प्रकट होकर अवश्य मार्ग दिखाएंगी l अंत में उनकी बारी भी आ गई , वे आसन से उठे और माता का स्मरण करते हुए अपनी स्वरचित कविता पढ़ी ------ अबके सुलतान फरियांन समान है .
बांधत पाग अटब्बर की ,
तजि एक को दूसरे को जो भजे ,
कटी जीभ गिरै वा लब्बर की
सरनागत ' श्रीपति ' माँ दुर्गा कि
नहीं त्रास है काहुहि जब्बर की
जिनको माता सो कछु आस नहीं ,
करौं मिलि आस अक्ब्बर की ll
इस कविता को सुनकर सभी षड्यंत्र कारियों के मुख पर कालिमा छा गई l बादशाह अकबर बहुत प्रसन्न हुआ l उसने भक्त श्रीपति को यह कहते हुए गले लगा लिया कि तुम्हारी भक्ति सच्ची है , सचमुच जगन्माता तुम्हारी चिंतन , चेतना में विराजती हैं l
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