14 November 2017

WISDOM ----- जिन्हें दैवी सत्ताओं का अनुग्रह प्राप्त होता है , उन्हें लोक - प्रतिष्ठा प्रभावित नहीं करती

   भारत  की  सर्वोच्च  उपाधि  ' भारत  रत्न '  उसका  विधान  पं. गोविन्द वल्लभ  पन्त  के  समय  से  चला  था   l  प्रथम  व  द्वितीय    के  बाद  जब  अगले  की  बारी  आई तो  सर्व सम्मति  से  भाई जी  श्री  हनुमान  प्रसाद  पोद्दार  का  नाम  चुना  गया  l  वे  गीता  प्रेस  गोरखपुर  के  संस्थापक --- गीता  आन्दोलन  के  प्रणेता  थे   l  उन  तक  बात  पहुंची  l  उन्होंने  पन्त  जी  से  कहा ---- " हम  इस  योग्य  नहीं  हैं  l  देश  बड़ा  है  l  कई  सुयोग्य  व्यक्ति  होंगे  l  हमने  अगर  कुछ  किया  भी  है  तो  किसी  पुरस्कार  की  आशा  से  नहीं  किया  l  आप  किसी   और  को  दे    दें   l "     नेहरु  जी  को  पता  चला   तो  उन्होंने  पंत  जी  से  कहा ---- " जाओ  और  मिलो  l  आदर - सत्कार  से  बात  करो  l   कोई  बात  हो  सकती  है  l  पता  लगाओ  l  "
  पन्त  जी  ने  जाकर  बात  की   l  पुन:  भाई  जी  बोले ----- "  हम  स्वयं  को  इस लायक  मानते  ही  नहीं  l  हमने  भक्ति भाव  से   परमात्मा  की  आराधना  मानकर  ही  सब  कुछ  किया  है   l  "
  ऐसा  ही  हुआ  l  सरकार  को  अपना  इरादा  बदलना  पड़ा  l
  वस्तुतः  भाई  जी  जिस  भाव  और  भूमिका  में  जीते  थे  ,  वह  लोक  की  प्रतिष्ठा  से  परे ---- और  भी  ऊपर   था  l  उन्हें  दैवी  सत्ताओं  का  अनुग्रह  सहज  ही  सदैव  प्राप्त  था   l