3 November 2017

WISDOM ----- अन्दर से अच्छा बनना ही वास्तव में कुछ बनना है l

 ' मनुष्य  का  आंतरिक  स्तर  ऊँचा  उठे  बिना  उसे  उत्तम  स्थिति  का  लाभ  मिलना    संभव  नहीं   हो  सकता  l  '
संसार  में  अनेक  लोग  हैं    जो  धन , वैभव ,  पद ,  ज्ञान   आदि  विभिन्न    क्षेत्रों  में  उच्च  स्तर  पर  पहुँच  जाते  हैं   किन्तु  आंतरिक  स्तर   निम्न  होने  के   कारण   उनके  क्रिया - कलाप ,  उनका  आचरण  निम्न  कोटि  का  ही  रहता  है  l  इस  संबंध  में  पुराण  की  एक  कथा  है ----------
        कीचड़  में  लोटते  और   गंदगी  चाटते  उस  शूकर  को  घिनौना  जीवन  जीते  देख  कर  नारदजी  को  बड़ी  दया  आई  l  वे  उस   शूकर  के  पास  पहुंचे  और  स्नेहपूर्वक  बोले  --- " इस  घिनौनी  रीति  से  जीवन  जीना  अच्छा  नहीं  है ,  चलो  तुम्हे  स्वर्ग  पहुंचा  दें  l  "
 नारदजी  की  बात  सुनकर  वराह  उनके  पीछे - पीछे  चलने  लगा ,  रास्ते  में  उसे  स्वर्ग  के  बारे  में  जानने  की  जिज्ञासा  हुई  तो  पूछ  बैठा ---- "  वहां  खाने , लोटने  और  भोगने  की  क्या - क्या  वस्तुएं  हैं   ? "
 नारदजी  उसे  स्वर्ग  का  मनोरम  वर्णन   विस्तार  से  बताने  लगे  l  उनकी  बात  पूरी  हो  गई  तो  उसने   दूनी  जिज्ञासा  से  पूछा ---- "  खाने  के  लिए  गंदगी ,  लोटने  के  लिए  कीचड़  और  सहचर्या  के  लिए  वराहकुल   है  या  नहीं  ? "
  नारदजी  ने  कहा ---- " मूर्ख  !  इन  निकम्मी  चीजों  की  वहां  क्या  जरुरत   है  ?  वहां  तो  देवताओं  के  अनुरूप  वातावरण  है   और  वैसे  ही  श्रेष्ठ  पदार्थ  सुसज्जित  हैं  l  "
  वराह  को  नारदजी  के  उत्तर  से  कोई  समाधान  नहीं  मिला  l   वह  कह  रहा  था  -- भला   गंदगी ,  गंधयुक्त  कीचड़   और  वराहकुल   के  बिना  भी  कोई  सुख  मिल  सकता  है   ?
  शूकर  ने  आगे  चलने  से   इनकार  कर  दिया  और  वह  वापस  लौट  पड़ा  l
  ' मनुष्य  जीवन  का   अक्षय  श्रंगार  है ---- ह्रदय  की  पवित्रता ,  आंतरिक  श्रेष्ठता   l '