27 October 2017

WISDOM ----- जहाँ राह सही होती है वहां असफल होने का प्रश्न ही नहीं उठता

   किसी  भी  देश  के  स्वाधीनता  आन्दोलन  में   उचित   मार्ग  चुनने  का  भी  बड़ा  महत्व  है  l  यदि  ऐसा  न  किया  जाये  तो  प्रकट  में  बड़ा  परिश्रम , त्याग , कष्ट  सहन  करते  हुए  भी  हम   अपनी  शक्ति  को  बर्बाद  करते  रहते  हैं   और  प्रगति  मार्ग  पर  बहुत   ही   कम  अग्रसर   हो  पाते  हैं  l  सभी  राजनीतिक  कार्यकर्ता  अपने - अपने  रास्ते  को   सही  और  प्रभावशाली   बतलाते  हैं   और  उसके  लिए  नई  पार्टी  अथवा  संस्था  बनाकर   अपनी  ढाई  चावल  की  खिचड़ी  अलग  पकाना  ही   महत्वपूर्ण  मानते  हैं   l
           पर   लेनिन  के  समान  व्यक्ति   समस्त  राष्ट्र  में  दो - चार  ही  होते  हैं   जो  समय  की  गति  को   बिलकुल  ठीक  समझ  सकते  हैं  और  अनुकूल  विधान  बना  सकते  हैं   l 
  लेनिन  के   बड़े  भाई  अलेक्जेंडर  को  1887  में  जार  की  हत्या  के  षडयंत्र  के  आरोप  में   गिरफ्तार  कर  लिया  गया  ,  तब  उसने  अदालत  के  सामने  कहा ---- " रूस  के  वर्तमान  निरंकुशता पूर्ण  शासन  में   गुप्त  हत्याओं  के  सिवा  और  किसी  उपाय  से  राजनीतिक  सुधार  नहीं  हो  सकता  l  मुझे  मृत्यु  का  डर  नहीं  l  मेरे  बाद  अवश्य  ही  अन्य  लोग  आगे  बढ़ेंगे  और  एक  दिन  जारशाही  को   जड़मूल  से  उखाड़कर  फेंक  देंगे  l  "   लेनिन  की  आयु  उस  समय  केवल  17  वर्ष  थी  ,  इस  आयु  में  भी  वह  जनक्रांति  के  महत्व  और  शक्ति  को  समझता  था  l   अपने  भाई  के  इस  प्रकार  असामयिक  अन्त  होने  से   उसके  ह्रदय  को  तीव्र  धक्का  लगा  और  वह  सदा  के  लिए  जारशाही  का  दुश्मन  बन  गया  l
   पर  साथ  ही  लेनिन  ने   यह   भी  अनुभव  किया  कि   षडयंत्र  और  गुप्त  हत्याओं  का  मार्ग   सही  नहीं  है  l  उस  अवसर  पर  उसके  मुंह  से  निकला ----- " नहीं ,  यह  रास्ता   ठीक  नहीं  है  ,  हम  इस  पर  चलकर  सफलता   प्राप्त  नहीं  कर  सकते   l  "    उसी  समय  से  वह  नवीन  पथ  का  पथिक  बन  गया   जो  उसकी  समझ  में  रूस  को  जार  की  निरंकुश  सत्ता  से  मुक्त  कराने के  लिए  कारगर  था  l 
 इस  मार्ग  का  वरण  करते  समय  वह  जानते  थे  कि  यह  मार्ग  काँटों  और  बाधाओं  से  भरा  पड़ा  है  फिर  भी  उन्होंने  इस  मार्ग  को    प्रसन्नतापूर्वक   चुना ,  अपने  लिए  नहीं  समाज  के  लिए ,  कोटि - कोटि  उस  जन - समुदाय  के  लिए   जो  शोषण  और  उत्पीड़न  की  आग  में  जल  रहा  था  l   21  जनवरी  1924  की  शाम  को    लेनिन  का  देहान्त  हुआ  ,  उस  अवसर  पर  रूस  की  तमाम  जनता  रो  उठी  l 
  नि:स्वार्थ  भाव  से  जन  कल्याण  के  लिए  किये  गए  कार्यों  का  परिणाम    अंत  में  अपने  और  दूसरों  के  लिए   मंगलदायक  ही  सिद्ध  होता  है   l