26 October 2017

WISDOM ------ प्रत्येक श्रेष्ठ एवं महान कार्य की सफलता में गहन , गंभीर मौन सहायक रहा है l

  सामान्यत:  वाणी  को  विराम  देना  मौन  कहलाता  है ,  परन्तु   सार्थक  मौन  उसे  कहते  हैं  ,  जब  मन  में  सद्चिन्तन  होता  रहे   l  यों  ही  जिह्वा  को  बंद  रखकर   मन  में  ईर्ष्या- द्वेष  का  बीज  बोते  रहने  को  मौन  नहीं  कहा  जाता  l  यह  तो  और  भी  खतरनाक  एवं   हानिकारक  सिद्ध  हो  सकता  है  l   मौन  के  साथ  श्रेष्ठ  चिन्तन ,  ईश्वर  स्मरण  आवश्यक  है  , तभी  मौन  की  सार्थकता  है  l 
  प्रकृति  का  हर  घटक ,  इसका  प्रत्येक  जीव  मौन  रहकर  अपने  कर्तव्य - कर्म  में  संलग्न  है   l  अपनी  आंतरिक  उर्जा  के  क्षरण  को  रोकने   हेतु  मनुष्य  के  लिए  कुछ  समय  मौन  रहना  जरुरी  है  l
  अरुणाचलम  के  महर्षि  रमण सदैव  मौन  रहते  थे   l  उनका  मौन  उपदेश  आत्मा  की  गहराई  में  उतर  जाता  था  l  बिना  बोले  वह  हर  एक  की  जिज्ञासा  को  शांत  करते  और  प्रत्येक  को  अपनी  समस्या  का  समाधान  मिल  जाता  था  l
  इसी  मौन    की    शक्ति  से  आचार्य  विष्णु गुप्त  के  भीतर    चाणक्य  ने  जन्म  लिया  जिसके    परिणाम  स्वरुप    बृहत   भारत   का  उदय  हुआ  l   महात्मा  गाँधी  के  मौन  का  प्रभाव  इतना  विलक्षण  और  अद्भुत  था  जिसने  भारत   को    सदियों  की  गुलामी   से   आजादी  दिलाई  l
  मौन  से  आत्मशक्ति  का  उदय  होता  है  , अत:  श्रेष्ठ  और  सार्थक  कार्य  के  लिए   मौन  को  एक  व्रत  मानकर  अपनाना  चाहिए   l