5 October 2017

युवाओं के मार्गदर्शक ----- सुभाषचंद्र बोस

  घटना  उन  दिनों  की  है -----  सुभाषचंद्र  बोस  ने   20  सितम्बर  1920  को   इंग्लैंड  में  आई. सी. एस.  की  परीक्षा  में  सफलता  प्राप्त  की  थी  ,  सफल  छात्रों    की    सूची  में  उनका  स्थान  चौथा  था  l  अंग्रेजी  कम्पोजिशन  में  उन्हें  प्रथम  स्थान  मिला  था ,  उन्होंने  अंग्रेजों  को  उन्ही  की  भाषा  में  धूल  चटा  दी   l   इसके  कुछ  ही  महीनों  बाद  समाचार   पत्र    में   मुखर  पृष्ठ  पर   यह  समाचार   प्रकाशित   हुआ कि   -----
  'सुभाषचंद्र  बोस  ने   आई. सी. एस.  पद  से  त्यागपत्र  दे  दिया ,   22  अप्रैल  1921  का  यह  दिन   भारतीय  इतिहास  में  अमिट  हो  गया  ---  स्वतंत्र  और  सशक्त  भारत  के  निर्माण  के  लिए  उन्होंने  स्वयं  को  समर्पित  कर  दिया  ----------
       एक  अंग्रेज    पुलिस  अधिकारी    जो   सुभाषचंद्र  बोस  से  इंग्लैंड  के  दिनों  से  परिचित  था  ,  उसने  उनके  कमरे  में  प्रवेश  किया  और  कहा ---- ' मिस्टर  सुभाष  ! मेरे  पास  तुम्हारी  गिरफ्तारी  के  लिए  वारंट  है  l " इतना  कहकर  उसने  विचित्र  नजरों  से  उन्हें  देखा  और  कहा ---- " तुम  क्या  हो  सकते  थे  और  क्या  हो  गए   ? "    इस  अंग्रेज  अधिकारी  को  यह  मालूम  था  कि  यदि  आज  वह  आई. सी. एस.  अधिकारी  होते  तो  वह  उनका  अधीनस्थ  होता   l
      उस  अंग्रेज  की  इस  बात  के  उत्तर  में  उन्होंने  कहा ---  "  ठीक  कहा  तुमने  मिस्टर  ग्रिफिथ  !  मैं  गुलाम  हो  सकता  था  ,  लेकिन  आज  मैं  अपने  देश  की  स्वाधीनता  का  सजग   सिपाही  हूँ  l  '
 अंग्रेज  अधिकारी  ने  कहा --- ' मुझे  तुम्हारे  कमरे  की  तलाशी  लेनी  है  l '    वह  उनके  कमरे  कि  हर  चीज  को  बड़े  ध्यान  से  उलटता - पुलटता   रहा   ---- एक  पुस्तक  थी  जिसमे  स्वामी  विवेकानन्द  के  पत्रों  का  संकलन  था  ,  एक  चांदी  की  डिब्बी  में  कुछ  चूर्ण  जैसा  था ,  उसने  पूछा ---- " यह  क्या  है   मिस्टर  सुभाष  ? '  उत्तर  में  उन्होंने  कहा ----- "  यह  मेरे  देश  की  मिटटी  है ,  मैं  हर  रोज  इसकी  पूजा  करता  हूँ   इसे  अपने  माथे  पर  लगाता  हूँ   और  देश  की  स्वाधीनता  के   अपने  उद्देश्य  का  स्मरण  करता  हूँ   l  " 
  यह  बात   अंग्रेज  की  समझ  के  बाहर  थीं  l   उनके  चेहरे  पर  प्रसन्नता  के  भाव  देखकर  वह  बोला ---- " तुम्हे  गिरफ्तार  होने  का  जरा  भी  दुःख  नहीं  है  मिस्टर  सुभाष  ? "
  उत्तर  में  उन्होंने  कहा ---- " कष्ट  और  त्याग --- दोनों  स्वराज्य  की  नींव  हैं ,  मिस्टर ग्रिफिथ  l  यदि  देश  के   युवक  उसके  लिए  स्वयं  को  अर्पित  करने  के  लिए  तैयार  हों   तो  स्वतंत्रता  की  कल्पना  को  साकार  होने  में  देर  न  लगेगी  l  " 
  इस   गिरफ्तारी  के  बाद  उन्हें  बर्मा  की  मांडले  जेल  भेज  दिया  गया  l  जेल  की  यातनाएं  उनकी  साधनाओं  में  परिवर्तित  होने  लगीं  ,  यह  जेल  उनके  लिए  तपोभूमि  बन  गई   l   बीतते  समय  के  साथ  वे  सबके  प्रिय   महानायक   नेताजी  बन  गए  l
  भारत  के  युवाओं  ने    उनसे  कहा ---- " इस  विपदा  के  समय  में  जब  पूरा  देश  अंधकार  में  डूबा  है  ,  आपका  व्यक्तित्व   हम  सबके  लिए  प्रकाश  पुंज  है   l  "  नेताजी  सुभाषचंद्र  बोस  आज  भी  राष्ट्र  के  लिए  प्रेरणा  और  प्रकाश  का  अमर  स्रोत  हैं   l