बात 1936 की है l महात्मा गाँधी छुआछूत निवारण हेतु दौरे पर थे l उड़ीसा के एक कसबे में ठहरे हुए थे l वहां पंडितों का एक दल उनसे शास्त्रार्थ करने आ गया l वे कह रहे थे --- " शास्त्र में छुआछूत का समर्थन है l " गांधीजी ने मंडली को सम्मानपूर्वक बैठाया और कहा --- " पंडित जनों मैंने शास्त्र तो पढ़ा नहीं , इसलिए आपसे हार मान लेता हूँ , पर यह विश्वास करता हूँ कि संसार के सब शास्त्र मिलकर भी मानवी एकता के सिद्धांत को झुठला नहीं सकते l मानवता एक तरफ और आपके शास्त्र एक तरफ l मेरा धर्म तो यही है और मरते दम तक मैं इस पर अडिग रहूँगा l " उनकी स्पष्ट अभिव्यक्ति सुनकर लज्जित पंडित मंडली भी निरुत्तर वापस लौट गई l