ब्रिटिश सरकार की सेवा में निरत भारतीय डा. कृष्णघन घोष की हार्दिक इच्छा थी कि उनके पुत्र पूरे अंग्रेज साहब बने l बड़े पुत्र को इंग्लैंड में ही रखा , वहीँ पढ़ाया l वह आगे चलकर भारतीय संस्कृति का महान द्रष्टा बना जिन्हें योगीराज महर्षि अरविन्द के रूप में विश्व जानता है l
फूल कहीं भी खिले पर उसकी सुगन्ध नहीं बदली जा सकती l
डा. घोष ने अपनी पत्नी को जब दूसरा पुत्र गर्भ में था इंग्लैंड भिजवा दिया ताकि बालक को इंग्लैंड की नागरिकता प्राप्त हो l बालक वारीन्द्र कुमार घोष इंग्लैंड में पैदा हुआ , उसे वहां की नागरिकता प्राप्त हुई l अंग्रेजी बोलता , अंग्रेजों जैसी वेशभूषा धारण करता , पर उसकी आत्मा भारतीय थी l अपने देश और संस्कृति के प्रति उनके ह्रदय में अपार श्रद्धा थी l वारीन्द्र घोष महान देशभक्त बने l बने l बंगाल में क्रान्ति का सूत्रपात करने का श्रेय इन्हें दिया जा सकता है l
वारीन्द्र घोष ने अपने संस्मरणों में लिखा है -----' अपने व्यक्तित्व को सदा उच्च स्तरीय बनाने के लिए हम युवाओं का मूल प्रेरणा केंद्र दक्षिणेश्वर था l इस पवित्र स्थान का स्मरण मात्र हमें नव स्फूर्ति से भर देता था l कारण था यहाँ की मिटटी में श्री रामकृष्ण परमहंस के तप के संस्कार थे l दक्षिणेश्वर की पावन माटी हम सभी अपने साथ रखते थे l जरा भी रोग आ घेरता तो इस मिटटी से तिलक कर हम ऊर्जावान होते थे l '
जब उन्हें गिरफ्तार करने अंगरेज पुलिस आई तो उनके कमरे में एक डिब्बी मिली , जिसमे दक्षिणेश्वर की मिटटी थी l अंग्रेज कप्तान ने उसे बम बनाने का रसायन समझा और प्रयोगशाला में परीक्षण हेतु भेज दिया l वह तो मिटटी ही निकली l अंग्रेज कप्तान की खूब किरकिरी हुई l
वारीन्द्र लिखते हैं ---- ' अंग्रेज अपनी जगह सही था l वह मिटटी साधारण नहीं थी , असाधारण थी , उसी ने विवेकानन्द गढ़े, वारीन्द्र , श्री अरविन्द गढ़े l '
महामानव गढ़ने वाली विलक्षण माटी थी वह l
फूल कहीं भी खिले पर उसकी सुगन्ध नहीं बदली जा सकती l
डा. घोष ने अपनी पत्नी को जब दूसरा पुत्र गर्भ में था इंग्लैंड भिजवा दिया ताकि बालक को इंग्लैंड की नागरिकता प्राप्त हो l बालक वारीन्द्र कुमार घोष इंग्लैंड में पैदा हुआ , उसे वहां की नागरिकता प्राप्त हुई l अंग्रेजी बोलता , अंग्रेजों जैसी वेशभूषा धारण करता , पर उसकी आत्मा भारतीय थी l अपने देश और संस्कृति के प्रति उनके ह्रदय में अपार श्रद्धा थी l वारीन्द्र घोष महान देशभक्त बने l बने l बंगाल में क्रान्ति का सूत्रपात करने का श्रेय इन्हें दिया जा सकता है l
वारीन्द्र घोष ने अपने संस्मरणों में लिखा है -----' अपने व्यक्तित्व को सदा उच्च स्तरीय बनाने के लिए हम युवाओं का मूल प्रेरणा केंद्र दक्षिणेश्वर था l इस पवित्र स्थान का स्मरण मात्र हमें नव स्फूर्ति से भर देता था l कारण था यहाँ की मिटटी में श्री रामकृष्ण परमहंस के तप के संस्कार थे l दक्षिणेश्वर की पावन माटी हम सभी अपने साथ रखते थे l जरा भी रोग आ घेरता तो इस मिटटी से तिलक कर हम ऊर्जावान होते थे l '
जब उन्हें गिरफ्तार करने अंगरेज पुलिस आई तो उनके कमरे में एक डिब्बी मिली , जिसमे दक्षिणेश्वर की मिटटी थी l अंग्रेज कप्तान ने उसे बम बनाने का रसायन समझा और प्रयोगशाला में परीक्षण हेतु भेज दिया l वह तो मिटटी ही निकली l अंग्रेज कप्तान की खूब किरकिरी हुई l
वारीन्द्र लिखते हैं ---- ' अंग्रेज अपनी जगह सही था l वह मिटटी साधारण नहीं थी , असाधारण थी , उसी ने विवेकानन्द गढ़े, वारीन्द्र , श्री अरविन्द गढ़े l '
महामानव गढ़ने वाली विलक्षण माटी थी वह l