सम्राट हर्षवर्धन ने अपने जीवन और चरित्र के माध्यम से यह आदर्श संसार के सामने रखा कि----- कोई पद अथवा अधिकार अपने लिए सुख - सुविधाएँ बढ़ाने के लिए नहीं मिलता l उनके मिलने का तो एक ही कारण है कि हम उसके माध्यम से और अच्छी तरह जन सेवा कर सकें l
प्राय: देखा जाता है कि सफलता के पश्चात् व्यक्ति अपने आदर्शों से गिर जाता है l किन्तु निरंतर आत्म निरीक्षण करते रहने के कारण वे अपने आदर्शों से गिरे नहीं वरन उन्होंने महाराज जनक की तरह अपने आपको राज्य और वैभव से निर्लिप्त ही रखा l उन्होंने ऋषि - मनीषियों के इस कथन को आत्मसात किया कि--- ' संसार से भागने की आवश्यकता नहीं , अपनी द्रष्टि को असंसारी बनाने की आवश्यकता है l मनुष्य यदि अपना द्रष्टिकोण सही रखे तो वह किसी भी काम को करता हुआ लोक सेवा कर सकता है l '
गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद सम्राट हर्षवर्धन ने सम्पूर्ण भारत को एकसूत्र पे पिरोकर एक सुद्रढ़ साम्राज्य गठित किया l जिससे भारत शक्तिशाली हो गया l उनकी विशेषता यह थी कि उन्होंने यह सब सहयोग और सदभावना के आधार पर किया l
सम्राट हर्षवर्धन कुशल प्रशासक , योद्धा व जनसेवी राजा होने के साथ श्रेष्ठ लेखक भी थे l उन्होंने नागानन्द, रत्नावली , प्रियदर्शिका आदि ग्रन्थों की रचना की थी l महाकवि बाणभट्ट उन्ही के दरबार का रत्न था , ' हर्षचरित ' और ' कादम्बरी ' उसकी प्रमुख रचनाएँ हैं l
प्राय: देखा जाता है कि सफलता के पश्चात् व्यक्ति अपने आदर्शों से गिर जाता है l किन्तु निरंतर आत्म निरीक्षण करते रहने के कारण वे अपने आदर्शों से गिरे नहीं वरन उन्होंने महाराज जनक की तरह अपने आपको राज्य और वैभव से निर्लिप्त ही रखा l उन्होंने ऋषि - मनीषियों के इस कथन को आत्मसात किया कि--- ' संसार से भागने की आवश्यकता नहीं , अपनी द्रष्टि को असंसारी बनाने की आवश्यकता है l मनुष्य यदि अपना द्रष्टिकोण सही रखे तो वह किसी भी काम को करता हुआ लोक सेवा कर सकता है l '
गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद सम्राट हर्षवर्धन ने सम्पूर्ण भारत को एकसूत्र पे पिरोकर एक सुद्रढ़ साम्राज्य गठित किया l जिससे भारत शक्तिशाली हो गया l उनकी विशेषता यह थी कि उन्होंने यह सब सहयोग और सदभावना के आधार पर किया l
सम्राट हर्षवर्धन कुशल प्रशासक , योद्धा व जनसेवी राजा होने के साथ श्रेष्ठ लेखक भी थे l उन्होंने नागानन्द, रत्नावली , प्रियदर्शिका आदि ग्रन्थों की रचना की थी l महाकवि बाणभट्ट उन्ही के दरबार का रत्न था , ' हर्षचरित ' और ' कादम्बरी ' उसकी प्रमुख रचनाएँ हैं l