स्वामीजी ने कहा था ----" वर्तमान आर्य सन्तान हमें चाहे जो कहे परन्तु भारत की भावी संतति हमारे धर्म सुधार को और हमारे जातीय संस्कार को अवश्यमेव महत्व की द्रष्टि से देखेगी l हम लोगों की आत्मिक और मानसिक निरोगता के लिए जो कुरीतियों का खंडन करते हैं वह सब कुछ हित भावना से किया जाता है l "
स्वामीजी का यह कथन आज एक ' भविष्यवाणी ' की तरह यथार्थ सिद्ध रहा है l उनके प्रचार कार्य के आरंभिक वर्षों में आर्य समाज की स्थापना होते समय उनके विरोध और आक्षेपों जो तूफान उठा था आज उसका चिन्ह भी नहीं है l आज हिन्दू - समाज में केवल थोड़े से पुराने ढर्रे
के पंडा - पुजारियों को छोड़कर कोई स्वामीजी के कार्यों को बुरा कहने वाला न मिलेगा l आज के समय में जब लोगों के जीवन में व्यस्तता अधिक है , अवकाश की समस्या है , परिवहन कठिन और खर्चीला है तो लोग मृत्यु भोज जैसे विशाल खर्चे के स्थान पर ' शुद्धता ' ' तेरहवीं ' श्राद्ध - आर्य - समाजी विधि से कम खर्च व कम समय में संपन्न कर देते हैं l
अन्य देशों के निष्पक्ष विद्वान भी स्वामीजी के लिए ' हिन्दू जाति के रक्षक ' ' हिन्दुओं को जगाने वाले ' आदि प्रशंसनीय विशेषण का प्रयोग करते हैं l वास्तव में स्वामीजी उन महापुरुषों में से थे जो किसी जाति की अवनति होने पर उसके उद्धार के लिए जन्म लिया करते हैं , वे जो कुछ करते हैं मानव मात्र की कल्याण भावना से होता है l
अलीगढ़ में मुसलमानों के सबसे बड़े नेता सर सैयद अहमद खां स्वामीजी से भेंट करने कई बार गए l उन्होंने कहा --- " स्वामीजी आपकी अन्य बातें तो युक्ति युक्त जान पड़ती हैं , लेकिन थोड़े से हवन से वायु में सुधार हो जाता है युक्ति संगत नहीं जान पड़ती l "
स्वामीजी ने समझाया ---" जैसे छह - सात सेर दाल को माशा भर हींग से छोंक दिया जाता है तो इतनी सी हींग पचास आदमियों के लिए दाल को सुगन्धित बना देती है l उसी प्रकार थोड़ा सा हवन भी वायु को सुगन्धित बना देता है l स्वामीजी के तर्क से सभी श्रोता प्रभावित हुए और सर सैयद उनकी स्तुति करते हुए अपने घर गए l
इसी तरह उन्होंने बताया कि भारत में दूध , दही , घी को आहार सामग्री का सर्वोत्तम अंग माना जाता है l अत: जो लोग उत्तम और उपयोगी दूध देने वाले पशुओं के विनाश का कारण बनते हैं , वे निस्संदेह समाज के बहुत बड़े अनीति करता माने जाने चाहिए l
" भारत पर स्वामीजी के महान ऋण हैं l अपने छोटे से जीवन में उन्होंने देश के एक कोने से दूसरे कोने तक फैले हुए ' पाखण्ड और कुप्रथाओं ' का निराकरण कर के वैदिक धर्म का नाद बजाया l
स्वामीजी का यह कथन आज एक ' भविष्यवाणी ' की तरह यथार्थ सिद्ध रहा है l उनके प्रचार कार्य के आरंभिक वर्षों में आर्य समाज की स्थापना होते समय उनके विरोध और आक्षेपों जो तूफान उठा था आज उसका चिन्ह भी नहीं है l आज हिन्दू - समाज में केवल थोड़े से पुराने ढर्रे
के पंडा - पुजारियों को छोड़कर कोई स्वामीजी के कार्यों को बुरा कहने वाला न मिलेगा l आज के समय में जब लोगों के जीवन में व्यस्तता अधिक है , अवकाश की समस्या है , परिवहन कठिन और खर्चीला है तो लोग मृत्यु भोज जैसे विशाल खर्चे के स्थान पर ' शुद्धता ' ' तेरहवीं ' श्राद्ध - आर्य - समाजी विधि से कम खर्च व कम समय में संपन्न कर देते हैं l
अन्य देशों के निष्पक्ष विद्वान भी स्वामीजी के लिए ' हिन्दू जाति के रक्षक ' ' हिन्दुओं को जगाने वाले ' आदि प्रशंसनीय विशेषण का प्रयोग करते हैं l वास्तव में स्वामीजी उन महापुरुषों में से थे जो किसी जाति की अवनति होने पर उसके उद्धार के लिए जन्म लिया करते हैं , वे जो कुछ करते हैं मानव मात्र की कल्याण भावना से होता है l
अलीगढ़ में मुसलमानों के सबसे बड़े नेता सर सैयद अहमद खां स्वामीजी से भेंट करने कई बार गए l उन्होंने कहा --- " स्वामीजी आपकी अन्य बातें तो युक्ति युक्त जान पड़ती हैं , लेकिन थोड़े से हवन से वायु में सुधार हो जाता है युक्ति संगत नहीं जान पड़ती l "
स्वामीजी ने समझाया ---" जैसे छह - सात सेर दाल को माशा भर हींग से छोंक दिया जाता है तो इतनी सी हींग पचास आदमियों के लिए दाल को सुगन्धित बना देती है l उसी प्रकार थोड़ा सा हवन भी वायु को सुगन्धित बना देता है l स्वामीजी के तर्क से सभी श्रोता प्रभावित हुए और सर सैयद उनकी स्तुति करते हुए अपने घर गए l
इसी तरह उन्होंने बताया कि भारत में दूध , दही , घी को आहार सामग्री का सर्वोत्तम अंग माना जाता है l अत: जो लोग उत्तम और उपयोगी दूध देने वाले पशुओं के विनाश का कारण बनते हैं , वे निस्संदेह समाज के बहुत बड़े अनीति करता माने जाने चाहिए l
" भारत पर स्वामीजी के महान ऋण हैं l अपने छोटे से जीवन में उन्होंने देश के एक कोने से दूसरे कोने तक फैले हुए ' पाखण्ड और कुप्रथाओं ' का निराकरण कर के वैदिक धर्म का नाद बजाया l