' प्रबुद्ध व्यक्तियों के पद - चिन्हों का अनुसरण करने का नियम संसार में सभी जगह है |
जब महारानी क्षेमा को वैराग्य हो गया और महाराज बिम्बसार से अनुमति लेकर वे आत्म कल्याण हेतु दीक्षा लेने भगवान बुद्ध के पास पहुंची | तो हजारों की संख्या में नर - नारी एकत्रित होकर आश्रम पहुँचने लगे और दीक्षा का आग्रह करने लगे l
तब भीड़ की ओर इशारा करते हुए भगवान बुद्ध ने कहा ----- क्षेमा ! देखो कितनी भीड़ तुम्हारा अनुकरण कर रही है , जानती हो क्यों ? सामान्य जन के ह्रदय में भी ऐसी ही भक्ति होती है , जैसी कि तुम्हारे ह्रदय में उमड़ रही है l किन्तु इनके पास न विचार होता है न विवेक l ये केवल प्रबुद्ध व्यक्तियों के पद - चिन्हों का अनुकरण करते हैं | आज तक तुम्हारा वैभव - विलास का जीवन रहा , उसका अनुकरण ये लोग करते रहे l खान - पान , रहन - सहन , व्यवहार बर्ताव में इनने वह सब बुराइयाँ पाल लीं , जो राज घरानों में होती हैं l इस स्थिति में इन्हें छोड़कर अकेले तुम्हे दीक्षा कैसे दी जा सकती है ? फिर यह भी आवश्यक है कि इन सब में भी उसी तरह का विचार - विवेक और वैराग्य जाग्रत हो , जैसा तुम्हारे अंत:करण में उदित हुआ है l
भगवान बुद्ध ने कहा ----- ' क्षेमा ! तुम्हे कुछ दिन जन - जन के बीच रहकर ज्ञान दान द्वारा इनमे सत्प्रवृत्तियों का विकास और समाज - कल्याण करना होगा , तब तुम दीक्षा की पात्र बनोगी l "
क्षेमा उस दिन से जन - जन में ज्ञान दान के वितरण में जुट गई l वर्षों तक समाज सेवा के कार्य किये फिर भगवान बुद्ध ने उन्हें दीक्षा दी और आत्म कल्याण की साधना में प्रवेश कराया l
जब महारानी क्षेमा को वैराग्य हो गया और महाराज बिम्बसार से अनुमति लेकर वे आत्म कल्याण हेतु दीक्षा लेने भगवान बुद्ध के पास पहुंची | तो हजारों की संख्या में नर - नारी एकत्रित होकर आश्रम पहुँचने लगे और दीक्षा का आग्रह करने लगे l
तब भीड़ की ओर इशारा करते हुए भगवान बुद्ध ने कहा ----- क्षेमा ! देखो कितनी भीड़ तुम्हारा अनुकरण कर रही है , जानती हो क्यों ? सामान्य जन के ह्रदय में भी ऐसी ही भक्ति होती है , जैसी कि तुम्हारे ह्रदय में उमड़ रही है l किन्तु इनके पास न विचार होता है न विवेक l ये केवल प्रबुद्ध व्यक्तियों के पद - चिन्हों का अनुकरण करते हैं | आज तक तुम्हारा वैभव - विलास का जीवन रहा , उसका अनुकरण ये लोग करते रहे l खान - पान , रहन - सहन , व्यवहार बर्ताव में इनने वह सब बुराइयाँ पाल लीं , जो राज घरानों में होती हैं l इस स्थिति में इन्हें छोड़कर अकेले तुम्हे दीक्षा कैसे दी जा सकती है ? फिर यह भी आवश्यक है कि इन सब में भी उसी तरह का विचार - विवेक और वैराग्य जाग्रत हो , जैसा तुम्हारे अंत:करण में उदित हुआ है l
भगवान बुद्ध ने कहा ----- ' क्षेमा ! तुम्हे कुछ दिन जन - जन के बीच रहकर ज्ञान दान द्वारा इनमे सत्प्रवृत्तियों का विकास और समाज - कल्याण करना होगा , तब तुम दीक्षा की पात्र बनोगी l "
क्षेमा उस दिन से जन - जन में ज्ञान दान के वितरण में जुट गई l वर्षों तक समाज सेवा के कार्य किये फिर भगवान बुद्ध ने उन्हें दीक्षा दी और आत्म कल्याण की साधना में प्रवेश कराया l