27 November 2017

शान - ए - अवध ------- बेगम हजरत महल

 वर्ष  1857  देश  में  स्वाधीनता  का बिगुल  बज  चुका   था  l  अवध  के  बहादुर  सिपाहियों  का   नेतृत्व  स्वयं  बेगम  हजरत महल  कर  रही  थीं  ,  जबकि  अंग्रेज  फौज  की  कमान  लार्ड  कैनिंग  ने  सम्हाल  रखी  थी  l
  उनके  कई   वफादारों  ने  सलाह  दी  कि  आप   जंग  से  दूर  रहें ,  किसी  सुरक्षित  स्थान  पर  छुप  जाएँ  किन्तु  बेगम  हजरत महल  ने  कहा --- " झाँसी  की  रानी  लक्ष्मीबाई, कानपुर  में  तात्यां  टोपे  और  पेशवा  नाना   साहब  इस  आजादी  की  लड़ाई  में  कूद  पड़े  हैं  l  ऐसे  में  हमारा  लखनऊ  पीछे  रहे ,  यह  उचित  न  होगा  l  "   अहमदुल्ला  ने  कहा --- " आपकी  बातें  वाजिब  हैं  बेगम  साहिबा  !  पर  यह  न  भूलें  कि  आप  औरत  हैं  ? "  इस  बात  को  सुनकर  बेगम  हजरत महल  हंस  दीं  और  बोलीं ---- " क्या  झाँसी  की  रानी  औरत  नहीं है  ?  अहमदुल्ला  ने  टोकना  चाहा --- " लेकिन  वह  तो  हिन्दू  हैं  l "  इस  पर  बेगम  के  माथे  पर  बल  पड़  गए  ,  उनकी  आवाज  तेज  हो  गई ,  वह  कहने  लगीं ---- " यह  किसी  को  नहीं  भूलना  चाहिए   कि  यह  देश  हिंदू - मुसलमानों  का  नहीं , मर्दों  या औरतों  का  नहीं  ,  सभी  देशवासियों  का  है  l  इसकी  आन - बान  और  शान  के  लिए  मर - मिटने  का  सबको  बराबर  का  हक  है   और  मुझसे मेरे  इस  हक  को  कोई  नहीं  छीन  सकता  l  सबसे  पहले  मैं  हिन्दुस्तान  की  बेटी  हूँ  ,  बाद  में  अवध  की  बेगम  l " 
     उनकी  भावनाओं   को  देखकर  सभी  एक  साथ  बोल  पड़े --- " बेगम  साहिबा  !  हम  सभी  आपकी  कमान  में  आजादी  की  यह  जंग  लड़ेंगे   और  जीतेंगे  भी  l  "  हिन्दुस्तान   आखिरी  शहंशाह  बहादुरशाह  जफर  को  यह  खबर  मिली  तो  फूले  न  समाये ,  उन्होंने  बेगम  साहिबा  के  पास  पैगाम  भेजा --- '  हमें  फक्र  है  तुम  पर  l  जब  तक  बेगम  हजरत  महल   और  रानी  लक्ष्मीबाई  जैसी  बेटियां  हमारे  मुल्क  में  हैं  ,  कोई  भी  विदेशी  ताकत  इसका  कुछ  नहीं  बिगाड़  सकती  l  इंशाअल्लाह ! हम  रहें  या  न  रहें  हिन्दुस्तान  को  आजादी  जरुर  मिलेगी  l  हम  तुम्हे  शुक्रिया  अदा  करते  हैं   और  तुम्हारे  बेटे  को  अवध  का  नवाब  घोषित  करते  हैं  l "    बूढ़े  बादशाह   के  इस  पैगाम  को  बेगम  हजरत महल  ने  अपने  सिर  से  लगाया  और  अपनी  फौज  के  साथ   पहुँच  गईं---- चिनहट  के  मैदान  में  l  जितने  दिन  यह  जंग अली  , उतने  दिन  बेगम  हजरत महल  खुद  हाथी  पर  बैठकर  अपनी  फौज  का  हौसला  बढ़ाती  रहीं   l  उनके  साहस , शौर्य , शस्त्र - संचालन,   व्यूह  रचना   ने  अंगरेजी  फौज  को  मैदान  छोड़कर  भागने  पर  मजबूर  कर  दिया  l  जनरल  आउटरम  एवं    कॉलिन   कैम्पबेल  को  भी  मानना  पड़ा  कि  बेगम  हजरत  महल  ने  अंग्रेजी  फौज  में  खौफ  पैदा  कर  दिया  था  l   इतिहासकार  ताराचंद  ने   लिखा  है  कि --- "  30  जून  1857  से   21 मार्च  1858     तक  बेगम  हजरत महल  ने  लखनऊ  में  नए  सिरे  से  शासन  सम्हाला  और  आजादी  की  लड़ाई  का  नेतृत्व  किया  l  "  हिन्दुस्तान  की  बेटी  बेगम  हजरत महल  की  ये   जंग   इतिहास  के  पन्नों  में   सदा  अमर  रहेगी   l 

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