' भारत की स्वतंत्रता के शत्रुओं को अहिंसावादियों की शक्ति से शिक्षा लेनी चाहिए l '
भारतीय सेनाध्यक्ष -' जनरल जयन्त नाथ चौधरी ' एक वीर अनुभवी और तपे हुए सेनानी थे l विश्व के माने हुए छह टैंक युद्ध महारथियों में उनका विशेष स्थान है l
द्वितीय महायुद्ध में जर्मन सेनापति रोमेल को हराने का जो श्रेय मित्र राष्ट्र -सेनाध्यक्ष अकिनलेक को मिला था , वह वास्तव में हमारे जनरल चौधरी और चौथी भारतीय डिवीजन के जवानो की उपलब्धि थी l जनरल चौधरी ने लीबिया के मरुस्थल की हड्डी गला देने वाली सर्दी और आत्मा हिला देने वाली रेगिस्तानी आँधियों के बीच जान हथेली पर रखकर टैंक युद्ध की बारीकियों का अध्ययन किया था l उनकी प्रत्युत्पन्न बुद्धि ने उन्हें टैंक युद्ध में इतना दक्ष बना दिया था कि संसार में उनकी विशेषता का नक्कारा बज रहा है l
लीबिया का युद्ध एक निर्णायक युद्ध था , यदि मित्र - राष्ट्रों की सेना इसमें हार जाती तो हिटलरशाही के नीचे दबे यूरोप का कुछ और ही रूप होता l
जर्मन सेनापति जनरल रोमेल ने लीबिया पर पूर्ण अधिकार कर के उसे मिश्र से अलग करने के लिए दस गज चौड़ी कांटेदार तारों की एक बाड़ लगवा दी थी और इस विश्वास के साथ निश्चिंतता की चादर तान ली कि लीबिया की प्राण -लेवा ठण्ड में इन लौह कंटकों को पार कर कोई नहीं आएगा l 10 नवम्बर 1941 की प्रलयंकारी रात को जब लीबिया का रेगिस्तानी तापमान गौरीशंकर के तापमान को मात दे रहा था , हिम -हवाएं तीर की भांति शरीर में चुभ रहीं थीं , तब मित्र -सेना के सैनिक , इंजीनियर असह्य ठण्ड में अपनी आत्मा की शक्ति लगाकर उस लोहे की कंटीली बाड़ को काट रहे थे कठिन प्रयत्नों के बाद वह कटीली बाड़ बीस जगह से काट गिराई l मित्र राष्ट्र की सेनाओं के टैंक -दस्ते , बख्तर बंद गाड़ियों , मोटार्र का दल तोपों के साथ लीबिया में घुस गया l
इस अभियान में चौथी भारतीय डिवीजन के जवान और उनके नायक --जनरल चौधरी सबसे आगे थे l कई दिन लगातार रेतीली यात्रा पार कर के मित्र सेनाओं ने लीबिया में सिदी उमर के मैदान पर मोर्चा जमा लिया और जर्मन सेनापति रोमेल के आक्रमण की प्रतीक्षा करने लगी l दूर समुद्र तट पर अपने शिविर में पड़े रोमेल को जब आक्रमण की सूचना मिली तो वह अपनी सेना के साथ तोपें दागता , गोले बरसाता, आग उगलता चला l उसकी तोपों के वार से टैंक टूटने लगे , जवान मर -मर कर गिरने लगे , अमरीकी लड़ाकों की हिम्मत पस्त कर दी गई l दूसरे दिन के युद्ध में भी रोमेल विजयी हुआ l ऐसा लगने लगा था कि मित्र सेना लीबिया के रेगिस्तान में दफ़न हो जाएगी किन्तु भारत के वीर जवानो और जनरल चौधरी ने हिम्मत नहीं हारी l वे एक संगठित अनुशासन में होकर बढ़े और तीसरे दिन के घमासान युद्ध में रोमेल के छक्के छुड़ा दिए l रोमेल भाग गया और मैदान मित्र - सेनाओं के हाथ रहा l
लीबिया की पराजय को विजय में बदलने वाले इन्ही जनरल जयन्त नाथ चौधरी ने पाकिस्तान के विरुद्ध युद्ध की कमान संभाली और तब जिस कौशल से जर्मन के अभेद्द टैंकों की मिटटी बनाई थी , उसी कौशल से भारत भूमि पर चढ़ कर आये अमेरिका के पैटर्न - टैंकों के टुकड़े - टुकड़े कर के फेंक दिया l
भारतीय सेनाध्यक्ष -' जनरल जयन्त नाथ चौधरी ' एक वीर अनुभवी और तपे हुए सेनानी थे l विश्व के माने हुए छह टैंक युद्ध महारथियों में उनका विशेष स्थान है l
द्वितीय महायुद्ध में जर्मन सेनापति रोमेल को हराने का जो श्रेय मित्र राष्ट्र -सेनाध्यक्ष अकिनलेक को मिला था , वह वास्तव में हमारे जनरल चौधरी और चौथी भारतीय डिवीजन के जवानो की उपलब्धि थी l जनरल चौधरी ने लीबिया के मरुस्थल की हड्डी गला देने वाली सर्दी और आत्मा हिला देने वाली रेगिस्तानी आँधियों के बीच जान हथेली पर रखकर टैंक युद्ध की बारीकियों का अध्ययन किया था l उनकी प्रत्युत्पन्न बुद्धि ने उन्हें टैंक युद्ध में इतना दक्ष बना दिया था कि संसार में उनकी विशेषता का नक्कारा बज रहा है l
लीबिया का युद्ध एक निर्णायक युद्ध था , यदि मित्र - राष्ट्रों की सेना इसमें हार जाती तो हिटलरशाही के नीचे दबे यूरोप का कुछ और ही रूप होता l
जर्मन सेनापति जनरल रोमेल ने लीबिया पर पूर्ण अधिकार कर के उसे मिश्र से अलग करने के लिए दस गज चौड़ी कांटेदार तारों की एक बाड़ लगवा दी थी और इस विश्वास के साथ निश्चिंतता की चादर तान ली कि लीबिया की प्राण -लेवा ठण्ड में इन लौह कंटकों को पार कर कोई नहीं आएगा l 10 नवम्बर 1941 की प्रलयंकारी रात को जब लीबिया का रेगिस्तानी तापमान गौरीशंकर के तापमान को मात दे रहा था , हिम -हवाएं तीर की भांति शरीर में चुभ रहीं थीं , तब मित्र -सेना के सैनिक , इंजीनियर असह्य ठण्ड में अपनी आत्मा की शक्ति लगाकर उस लोहे की कंटीली बाड़ को काट रहे थे कठिन प्रयत्नों के बाद वह कटीली बाड़ बीस जगह से काट गिराई l मित्र राष्ट्र की सेनाओं के टैंक -दस्ते , बख्तर बंद गाड़ियों , मोटार्र का दल तोपों के साथ लीबिया में घुस गया l
इस अभियान में चौथी भारतीय डिवीजन के जवान और उनके नायक --जनरल चौधरी सबसे आगे थे l कई दिन लगातार रेतीली यात्रा पार कर के मित्र सेनाओं ने लीबिया में सिदी उमर के मैदान पर मोर्चा जमा लिया और जर्मन सेनापति रोमेल के आक्रमण की प्रतीक्षा करने लगी l दूर समुद्र तट पर अपने शिविर में पड़े रोमेल को जब आक्रमण की सूचना मिली तो वह अपनी सेना के साथ तोपें दागता , गोले बरसाता, आग उगलता चला l उसकी तोपों के वार से टैंक टूटने लगे , जवान मर -मर कर गिरने लगे , अमरीकी लड़ाकों की हिम्मत पस्त कर दी गई l दूसरे दिन के युद्ध में भी रोमेल विजयी हुआ l ऐसा लगने लगा था कि मित्र सेना लीबिया के रेगिस्तान में दफ़न हो जाएगी किन्तु भारत के वीर जवानो और जनरल चौधरी ने हिम्मत नहीं हारी l वे एक संगठित अनुशासन में होकर बढ़े और तीसरे दिन के घमासान युद्ध में रोमेल के छक्के छुड़ा दिए l रोमेल भाग गया और मैदान मित्र - सेनाओं के हाथ रहा l
लीबिया की पराजय को विजय में बदलने वाले इन्ही जनरल जयन्त नाथ चौधरी ने पाकिस्तान के विरुद्ध युद्ध की कमान संभाली और तब जिस कौशल से जर्मन के अभेद्द टैंकों की मिटटी बनाई थी , उसी कौशल से भारत भूमि पर चढ़ कर आये अमेरिका के पैटर्न - टैंकों के टुकड़े - टुकड़े कर के फेंक दिया l
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