भारत के स्वाधीनता संग्राम में लाला लाजपत राय का अति महत्वपूर्ण स्थान है l उनकी आकांक्षा वकील बनने की थी l उनकी इस आकांक्षा के पीछे एक महान मंतव्य था जिसने उन्हें साधारण से असाधारण व्यक्ति बना दिया l लाला लाजपत राय के ह्रदय में देश की पराधीनता और समाज की पतितावस्था की बड़ी गहरी कसक थी l उनका ह्रदय उसके उद्धार और सेवा करने के लिए व्याकुल रहता था l उन दिनों वकालत ही एक ऐसा क्षेत्र था , जिसमे प्रवेश लेकर आर्थिक , सामाजिक तथा राजनीतिक समस्याओं को सम्मानपूर्वक हल करने का अवसर रहता था l
उन्होंने वकालत की यह पढ़ाई किस दरिद्रता का सामना करते हुए की थी इसका परिचय उनके दिए इस विवरण से ही मिल जाता है ----- " लॉ कॉलेज के मेरे प्रारंभिक दो - तीन माह तो असहनीय कठिनाई में बीते l भोजन का अभाव जब तब था जिसे मैं पानी पी- पी कर पूरा करने का प्रयत्न किया करता था l भोजन का आभाव मेरी चिंता का इतना बड़ा विषय नहीं था जितना कि चिंता कॉलेज की फीस और छात्रावास के शुल्क की चिंता थी l बड़े संघर्ष और प्रयत्न के बाद छह रूपये मासिक की छात्रवृति मिली l उस छात्रवृति में से दो रूपये कॉलेज की फीस देता था , तीन रूपये वकालत का शुल्क और एक रुपया मासिक छात्रावास का निवास शुल्क l अब मेरे भोजन व अन्य खर्च के लिए मेरे पास केवल एक रुपया बचता था l ट्यूशन मिल नहीं रही थी और उसके लिए समय भी नहीं था | पुस्तकें मित्रों से मांग लाता था और निर्धारित समय में वापिस कर आता था | "
लाला लाजपत राय एक आत्म निर्मित व्यक्ति थे , उन्होंने अपने को श्रम की तपस्या में तिल- तिल तपा कर गढ़ा था l
उन्होंने वकालत की यह पढ़ाई किस दरिद्रता का सामना करते हुए की थी इसका परिचय उनके दिए इस विवरण से ही मिल जाता है ----- " लॉ कॉलेज के मेरे प्रारंभिक दो - तीन माह तो असहनीय कठिनाई में बीते l भोजन का अभाव जब तब था जिसे मैं पानी पी- पी कर पूरा करने का प्रयत्न किया करता था l भोजन का आभाव मेरी चिंता का इतना बड़ा विषय नहीं था जितना कि चिंता कॉलेज की फीस और छात्रावास के शुल्क की चिंता थी l बड़े संघर्ष और प्रयत्न के बाद छह रूपये मासिक की छात्रवृति मिली l उस छात्रवृति में से दो रूपये कॉलेज की फीस देता था , तीन रूपये वकालत का शुल्क और एक रुपया मासिक छात्रावास का निवास शुल्क l अब मेरे भोजन व अन्य खर्च के लिए मेरे पास केवल एक रुपया बचता था l ट्यूशन मिल नहीं रही थी और उसके लिए समय भी नहीं था | पुस्तकें मित्रों से मांग लाता था और निर्धारित समय में वापिस कर आता था | "
लाला लाजपत राय एक आत्म निर्मित व्यक्ति थे , उन्होंने अपने को श्रम की तपस्या में तिल- तिल तपा कर गढ़ा था l
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