प्रसिद्ध चिकित्सक जीवक ने कठोर परिश्रम द्वारा तक्षशिला विश्वविद्यालय द्वारा आयुर्वेदाचार्य की उपाधि हासिल की | उनके आचार्य ने उन्हें मगध जाकर लोगों की सेवा करने का निर्देश दिया | जीवक को अपने कुल गोत्र का कोई ज्ञान नहीं था , उन्होंने कहा --- " आचार्य ! मगध राज्य की राजधानी है , सभी कुलीन लोग वहां निवास करते हैं | क्या वे मुझ जैसे कुलहीन से अपनी चिकित्सा करवाना स्वीकार करेंगे ? मुझे आशंका है कि कहीं मुझे अपमान का सामना न करना
पड़े | " जीवक के गुरु ने कहा ----- " वत्स ! आज से तुम्हारी योग्यता , क्षमता , प्रतिभा और ज्ञान ही तुम्हारे कुल और गोत्र हैं , तुम जहाँ भी जाओगे , अपने इन्ही गुणों के कारण सम्मान के भागीदार बनोगे l कर्म से मनुष्य की पहचान होती है , कुल और गोत्र से नहीं l सेवा ही तुम्हारा धर्म है l " जीवक की आत्महीनता दूर हो गई और अपने सेवा भाव से वह प्रसिद्ध चिकित्सक बना |
पड़े | " जीवक के गुरु ने कहा ----- " वत्स ! आज से तुम्हारी योग्यता , क्षमता , प्रतिभा और ज्ञान ही तुम्हारे कुल और गोत्र हैं , तुम जहाँ भी जाओगे , अपने इन्ही गुणों के कारण सम्मान के भागीदार बनोगे l कर्म से मनुष्य की पहचान होती है , कुल और गोत्र से नहीं l सेवा ही तुम्हारा धर्म है l " जीवक की आत्महीनता दूर हो गई और अपने सेवा भाव से वह प्रसिद्ध चिकित्सक बना |
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