' पेशे के रूप में पुस्तकें लिखने वाले लेखक बहुत से मिल सकते हैं पर अपने हानि - लाभ , यश - अपयश का विचार छोड़कर समाज को ऊँचा उठाने वाले साहित्यकार विरले ही निकलते हैं । ऐसे साहित्यकार समाज के नेता और मार्गदर्शक होते हैं और उनका यश अनेक राजनैतिक नेताओं की अपेक्षा चिरस्थायी होता है । बंकिम बाबू इसी श्रेणी के सच्चे और सेवाभावी साहित्यिक थे । '
1857 के गदर के फलस्वरूप ईस्ट इन्डिया कम्पनी को हटाकर समस्त शासन भार महारानी विक्टोरिया ने अपने हाथ में ले लिया । वे एक बड़ी सुयोग्य और सह्रदय शासक थीं और भारतवर्ष को आधुनिक प्रगति के मार्ग पर चलाना चाहती थीं । इसलिए यहाँ शीघ्रता पूर्वक शिक्षा का प्रचार किया जा रहा था , प्रेस खोले जा रहे थे, समाचार - पत्रों का प्रकाशन बढ़ रहा था । एक प्रकार से देश में सार्वजानिक जागृति का श्री गणेश हुआ । बंकिम बाबू ने अनुभव किया कि सरकारी नौकरी के कारण किसी सार्वजनिक आन्दोलन में प्रत्यक्ष भाग तो ले नहीं सकते , इसलिए उन्होंने सोचा कि प्रेरणादायक सत - साहित्य की रचना करके जन - जागृति के उद्देश्य की पूर्ति की जाये ।
उस समय बंगला भाषा की दशा बहुत हीन थी , बंकिम बाबू ने निश्चय किया कि वे अपनी शक्ति का उपयोग मातृभाषा के लिए करके उसे सभ्य भाषाओँ की पंक्ति में खड़े होने योग्य बनायेंगे । आज बंकिमचंद्र को बंगला भाषा की प्राण प्रतिष्ठा करने वाला माना जाता है ।
साहित्य प्रचार के लिए उन्होंने ' बंग - दर्शन ' मासिक पात्र प्रकाशित किया , वह अपने समय का प्रतिनिधि मासिक पत्र था । लोग बंग - दर्शन की राह देखा करते थे । बंकिमचंद्र उस युग में कितने प्रसिद्ध हो गये थे , इसका पता इस बात से लग सकता है कि उनके उपन्यासों, निबंधों और रचनाओं के कुछ अंश , कुछ पंक्तियाँ याद कर लेना और समय आने पर उनको सुना सकना एक प्रशंसनीय बात मानी जाती थी । जो लोग उनकी भाषा शैली का प्रयोग अपनी रचनाओं में का सकते थे उनको विद्वान् और बुद्धिमान माना जाता था ।
बंकिम बाबू साहित्य - संसार में ' उपन्यासकार ' की हैसियत से प्रसिद्ध हुए , जिस उपन्यास के कारन उनका नाम देशभक्तों में अमर हो गया , वह है ' आनन्द मठ ' । इसी में सबसे पहले वन्दे मातरम् शब्द और उसका गीत लिखा गया है , जिसकी ध्वनि से सारा भारत गूंज उठा ।
1857 के गदर के फलस्वरूप ईस्ट इन्डिया कम्पनी को हटाकर समस्त शासन भार महारानी विक्टोरिया ने अपने हाथ में ले लिया । वे एक बड़ी सुयोग्य और सह्रदय शासक थीं और भारतवर्ष को आधुनिक प्रगति के मार्ग पर चलाना चाहती थीं । इसलिए यहाँ शीघ्रता पूर्वक शिक्षा का प्रचार किया जा रहा था , प्रेस खोले जा रहे थे, समाचार - पत्रों का प्रकाशन बढ़ रहा था । एक प्रकार से देश में सार्वजानिक जागृति का श्री गणेश हुआ । बंकिम बाबू ने अनुभव किया कि सरकारी नौकरी के कारण किसी सार्वजनिक आन्दोलन में प्रत्यक्ष भाग तो ले नहीं सकते , इसलिए उन्होंने सोचा कि प्रेरणादायक सत - साहित्य की रचना करके जन - जागृति के उद्देश्य की पूर्ति की जाये ।
उस समय बंगला भाषा की दशा बहुत हीन थी , बंकिम बाबू ने निश्चय किया कि वे अपनी शक्ति का उपयोग मातृभाषा के लिए करके उसे सभ्य भाषाओँ की पंक्ति में खड़े होने योग्य बनायेंगे । आज बंकिमचंद्र को बंगला भाषा की प्राण प्रतिष्ठा करने वाला माना जाता है ।
साहित्य प्रचार के लिए उन्होंने ' बंग - दर्शन ' मासिक पात्र प्रकाशित किया , वह अपने समय का प्रतिनिधि मासिक पत्र था । लोग बंग - दर्शन की राह देखा करते थे । बंकिमचंद्र उस युग में कितने प्रसिद्ध हो गये थे , इसका पता इस बात से लग सकता है कि उनके उपन्यासों, निबंधों और रचनाओं के कुछ अंश , कुछ पंक्तियाँ याद कर लेना और समय आने पर उनको सुना सकना एक प्रशंसनीय बात मानी जाती थी । जो लोग उनकी भाषा शैली का प्रयोग अपनी रचनाओं में का सकते थे उनको विद्वान् और बुद्धिमान माना जाता था ।
बंकिम बाबू साहित्य - संसार में ' उपन्यासकार ' की हैसियत से प्रसिद्ध हुए , जिस उपन्यास के कारन उनका नाम देशभक्तों में अमर हो गया , वह है ' आनन्द मठ ' । इसी में सबसे पहले वन्दे मातरम् शब्द और उसका गीत लिखा गया है , जिसकी ध्वनि से सारा भारत गूंज उठा ।