रानी दुर्गावती कालिंजर के राजा कीर्तिराय की पुत्री थीं , उनका विवाह गोंडवाना ( मध्य प्रदेश ) के शासक दलपति शाह से हुआ था l अब से लगभग पांच सौ वर्ष पूर्व जब सम्राट अकबर के दबदबे से अनेक बड़े - बड़े राजा उसके आधीन हो गये थे , तब एकमात्र महाराणा प्रताप को छोड़कर किसी राजा ने अकबर का सामना करने का साहस नहीं किया l पर उस समय नारी होते हुए भी रानी दुर्गावती ने दिल्ली सम्राट की विशाल सेना के सामने खड़े होने का साहस किया और उसे दो बार पराजित करके पीछे खदेड़ दिया l
विवाह के बाद रानी अपनी राजधानी ' गढ़मंडला ' में सुखपूर्वक रहने लगीं l अकबर ने अपनी साम्राज्यवादी नीति और धन व राज्य की लालसा में गढ़मंडला पर आक्रमण किया l उस समय दलपति शाह की मृत्यु हो चुकी थी । रानी ने अपने सैनिकों में यह भावना भर दी थी कि ' हम धर्मयुद्ध कर रहे हैं , अपनी मातृभूमि और घरों की रक्षा करना मनुष्य का पवित्र कर्तव्य है । मुग़ल सेना आततायी है , जो बिना कारण लूटमार के लालच से हमारे राज्य में घुस आई है । इसे मारकर खदेड़ देना ही हमारा कर्तव्य है । '
दो आक्रमणों में रानी दुर्गावती ने शत्रु को अच्छी तरह हरा दिया , पर न मालूम किस कारण उसकी सेना ने दुश्मन की भागती हुई सेना का पीछा नहीं किया । कारण कुछ भी रहा हो पर
शत्रु को आधा कुचल कर छोड़ देने से वह प्राय: प्रतिशोध की ताक में रहता है और फिर से तैयार होकर आक्रमण कर सकता है । गढ़ मंडला के सेनाध्यक्षों से यही भूल हुई जिसके फलस्वरूप मुगल सेना एक के बाद एक कर के तीन आक्रमण कर सकी और अंत में सुयोग मिल जाने से उसने सफलता प्राप्त कर ली ।
युद्ध में रानी का एकमात्र अल्प व्यस्क पुत्र वीर नारायण वीरगति को प्राप्त हुआ , अब रानी को अपने जीवन से मोह नहीं रहा । वह तीन सौ घुड़सवारों के साथ मुगल सेना पर टूट पड़ी । उसने सैकड़ों शत्रुओं को यमलोक पहुँचा दिया , पर अचानक एक तीर उसकी आँख में आकर लगा , उसने उसे अपने हाथ से बाहर खींच लिया , इतने में दूसरा तीर गर्दन में लगा , इससे उसे असह्य वेदना होने लगी । उसी समय रानी ने अपने स्वामिभक्त मंत्री आधार सिंह को सामने देखकर कहा --- " रक्त निकलने से मैं अब अशक्त होती जा रही हूँ , मैं कभी नहीं चाहती कि शत्रु मुझे जीवित अवस्था में छू सकें इसलिए तुम तलवार से मेरी जीवन लीला समाप्त कर दो l " पर आधारसिंह इस बात को सुन कर काँप उठा और उसने भरे हुए कंठ से कहा ---- ' मैं असमर्थ हूँ , मेरा हाथ आप पर नहीं उठ सकता l ' रानी जोश में आ गई और मरते - मरते उठकर बैठ गई और अपनी कटार जोर से अपनी छाती में घुसेड़ ली , दूसरे ही क्षण उसकी निर्जीव लाश भूमि पर पड़ी दिखाई दी l
इसके बाद मुगल सेना ने वहां नगर में घुसकर बहुत लूटमार मचाई , गौंडवाना के गौरव का दीपक सदा के लिए बुझ गया और वह एक उजाड़ नगर के रूप में शेष रहा ।
विवाह के बाद रानी अपनी राजधानी ' गढ़मंडला ' में सुखपूर्वक रहने लगीं l अकबर ने अपनी साम्राज्यवादी नीति और धन व राज्य की लालसा में गढ़मंडला पर आक्रमण किया l उस समय दलपति शाह की मृत्यु हो चुकी थी । रानी ने अपने सैनिकों में यह भावना भर दी थी कि ' हम धर्मयुद्ध कर रहे हैं , अपनी मातृभूमि और घरों की रक्षा करना मनुष्य का पवित्र कर्तव्य है । मुग़ल सेना आततायी है , जो बिना कारण लूटमार के लालच से हमारे राज्य में घुस आई है । इसे मारकर खदेड़ देना ही हमारा कर्तव्य है । '
दो आक्रमणों में रानी दुर्गावती ने शत्रु को अच्छी तरह हरा दिया , पर न मालूम किस कारण उसकी सेना ने दुश्मन की भागती हुई सेना का पीछा नहीं किया । कारण कुछ भी रहा हो पर
शत्रु को आधा कुचल कर छोड़ देने से वह प्राय: प्रतिशोध की ताक में रहता है और फिर से तैयार होकर आक्रमण कर सकता है । गढ़ मंडला के सेनाध्यक्षों से यही भूल हुई जिसके फलस्वरूप मुगल सेना एक के बाद एक कर के तीन आक्रमण कर सकी और अंत में सुयोग मिल जाने से उसने सफलता प्राप्त कर ली ।
युद्ध में रानी का एकमात्र अल्प व्यस्क पुत्र वीर नारायण वीरगति को प्राप्त हुआ , अब रानी को अपने जीवन से मोह नहीं रहा । वह तीन सौ घुड़सवारों के साथ मुगल सेना पर टूट पड़ी । उसने सैकड़ों शत्रुओं को यमलोक पहुँचा दिया , पर अचानक एक तीर उसकी आँख में आकर लगा , उसने उसे अपने हाथ से बाहर खींच लिया , इतने में दूसरा तीर गर्दन में लगा , इससे उसे असह्य वेदना होने लगी । उसी समय रानी ने अपने स्वामिभक्त मंत्री आधार सिंह को सामने देखकर कहा --- " रक्त निकलने से मैं अब अशक्त होती जा रही हूँ , मैं कभी नहीं चाहती कि शत्रु मुझे जीवित अवस्था में छू सकें इसलिए तुम तलवार से मेरी जीवन लीला समाप्त कर दो l " पर आधारसिंह इस बात को सुन कर काँप उठा और उसने भरे हुए कंठ से कहा ---- ' मैं असमर्थ हूँ , मेरा हाथ आप पर नहीं उठ सकता l ' रानी जोश में आ गई और मरते - मरते उठकर बैठ गई और अपनी कटार जोर से अपनी छाती में घुसेड़ ली , दूसरे ही क्षण उसकी निर्जीव लाश भूमि पर पड़ी दिखाई दी l
इसके बाद मुगल सेना ने वहां नगर में घुसकर बहुत लूटमार मचाई , गौंडवाना के गौरव का दीपक सदा के लिए बुझ गया और वह एक उजाड़ नगर के रूप में शेष रहा ।