वीर दुर्गादास एक ऐसे नायक थे , जिनका सारा कर्तव्य और सम्पूर्ण जीवन परमार्थ , परसेवा , परोपकार एवं राष्ट्र हित की पवित्र वेदी पर बलिदान होता रहा । वे न राजा थे , न राजकुमार , पर उन्होंने अपने बाहुबल और बुद्धिबल से सम्पूर्ण मारवाड़ को स्वतंत्र कराया , मुगलों से तमाम जागीरें छीन लीं और दिल्ली के बादशाह औरंगजेब को नीचा दिखाकर आर्य धर्म की पताका ऊँची कर दी ।
वीर दुर्गादास एक साधारण सेनानायक के पुत्र थे , उन्होंने कभी राज्य या राजपद का लोभ नहीं किया । घोड़े की पीठ ही उनका निवास एवं विश्राम स्थल थी । आजीवन युद्धरत रहते हुए भी वे अपने उदात्त मानवीय चरित्र की रक्षा करते रहे । उनका युद्ध मुगलों के विरुद्ध राजपूतों का न होकर अनाचार के विरुद्ध मानवता का संघर्ष था ।
दुर्गादास वीर होकर भी विनम्र , योद्धा होकर भी दयालु और सिंह होकर भी साधु पुरुष थे ।
वे विजयी होकर भी निरभिमानी और नि:स्वार्थ बने रहे ।
वीर दुर्गादास एक साधारण सेनानायक के पुत्र थे , उन्होंने कभी राज्य या राजपद का लोभ नहीं किया । घोड़े की पीठ ही उनका निवास एवं विश्राम स्थल थी । आजीवन युद्धरत रहते हुए भी वे अपने उदात्त मानवीय चरित्र की रक्षा करते रहे । उनका युद्ध मुगलों के विरुद्ध राजपूतों का न होकर अनाचार के विरुद्ध मानवता का संघर्ष था ।
दुर्गादास वीर होकर भी विनम्र , योद्धा होकर भी दयालु और सिंह होकर भी साधु पुरुष थे ।
वे विजयी होकर भी निरभिमानी और नि:स्वार्थ बने रहे ।
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