वे व्यक्ति जो अपने कर्तव्यों के परिपालन के लिए अपने व्यक्तिगत हितों की बलि देने में नहीं हिचकते -- वे धन्य हैं l समाज, धर्म और संस्कृति ऐसे आदर्श निष्ठ व्यक्तियों से ही महान बनते हैं तथा प्रतिष्ठा पाते हैं l
मुंशी प्रेमचंद अंग्रेजी - शासन काल में ही एक प्रसिद्ध उपन्यासकार के रूप में प्रख्यात हो चुके थे । अपनी लेखनी द्वारा वे देश भक्ति की भावना जगाने का कार्य कर रहे थे । अंग्रेज सरकार को यह डर था कि प्रेमचंद की लेखनी भी भारतीयों में विद्रोह भड़काने का कारण न बन जाये । अत: तत्कालीन उत्तर प्रदेश के गवर्नर सर मालकम हेली ने मुंशी प्रेमचंद को अपनी ओर मिलाने के लिए एक चाल चली । उन दिनों का सर्वोच्च खिताब ' राय साहब ' उन्हें देने की घोषणा की । यह खिताब उन्हें क्यों दिया जा रहा है , मुंशी प्रेमचंद को यह समझते देर न लगी । तब तक बड़ी रकम के साथ यह खिताब श्री प्रेमचंद के घर पर एक अंग्रेज अधिकारी द्वारा यह कहकर पहुँचाया जा चुका था कि माननीय गवर्नर ने उनकी रचनाओं से प्रभावित होकर यह उपहार भेजा है ।
घर पहुँचने पर पत्नी ने प्रसन्नता व्यक्त की इस बात के लिए कि आर्थिक विपन्नता की स्थिति में एक बड़ा सहारा मिल गया । किन्तु मुंशी प्रेमचंद तुरंत खिताब और रकम लेकर गवर्नर महोदय के पास पहुंचे l दोनों को वापस लौटाते हुए बोले --- " सहानुभूति के लिए धन्यवाद l आपकी भेंट मुझे स्वीकार नहीं l धन और प्रतिष्ठा की अपेक्षा मुझे देश भक्ति अधिक प्यारी है l आपका उपहार लेकर में देश द्रोही नहीं कहलाना चाहता l "
ऐसे व्यक्तित्व ही देश और समाज की सबसे बड़ी सम्पदा है , ये ऐसे रत्न हैं जो जहाँ रहते हैं अपने प्रकाश से असंख्यों को प्रेरणा देते हैं l
मुंशी प्रेमचंद अंग्रेजी - शासन काल में ही एक प्रसिद्ध उपन्यासकार के रूप में प्रख्यात हो चुके थे । अपनी लेखनी द्वारा वे देश भक्ति की भावना जगाने का कार्य कर रहे थे । अंग्रेज सरकार को यह डर था कि प्रेमचंद की लेखनी भी भारतीयों में विद्रोह भड़काने का कारण न बन जाये । अत: तत्कालीन उत्तर प्रदेश के गवर्नर सर मालकम हेली ने मुंशी प्रेमचंद को अपनी ओर मिलाने के लिए एक चाल चली । उन दिनों का सर्वोच्च खिताब ' राय साहब ' उन्हें देने की घोषणा की । यह खिताब उन्हें क्यों दिया जा रहा है , मुंशी प्रेमचंद को यह समझते देर न लगी । तब तक बड़ी रकम के साथ यह खिताब श्री प्रेमचंद के घर पर एक अंग्रेज अधिकारी द्वारा यह कहकर पहुँचाया जा चुका था कि माननीय गवर्नर ने उनकी रचनाओं से प्रभावित होकर यह उपहार भेजा है ।
घर पहुँचने पर पत्नी ने प्रसन्नता व्यक्त की इस बात के लिए कि आर्थिक विपन्नता की स्थिति में एक बड़ा सहारा मिल गया । किन्तु मुंशी प्रेमचंद तुरंत खिताब और रकम लेकर गवर्नर महोदय के पास पहुंचे l दोनों को वापस लौटाते हुए बोले --- " सहानुभूति के लिए धन्यवाद l आपकी भेंट मुझे स्वीकार नहीं l धन और प्रतिष्ठा की अपेक्षा मुझे देश भक्ति अधिक प्यारी है l आपका उपहार लेकर में देश द्रोही नहीं कहलाना चाहता l "
ऐसे व्यक्तित्व ही देश और समाज की सबसे बड़ी सम्पदा है , ये ऐसे रत्न हैं जो जहाँ रहते हैं अपने प्रकाश से असंख्यों को प्रेरणा देते हैं l
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