सौभाग्य का सुख एवं दुर्भाग्य का दुःख जीवन के दो पहलू हैं | जीवन इन्ही दो पहियों से गति करता है । सौभाग्य का तात्पर्य है--- विगत समय में किये गये सत्कर्मों का परिणाम । तथा दुर्भाग्य का अर्थ है---- बीते कल के सभी दुष्कर्मों की परिणति ।
जीवन को आर-पार देखने वाले महापुरुष सजग रहते हैं । वे जीवन के सौभाग्य काल में मदमस्त नहीं होते, इस काल को वे गहन तपस्या, सेवा आदि उत्कृष्ट कार्यों में लगाते हैं क्योंकि उन्हें पता रहता है कि सौभाग्य की आड़ में दुर्भाग्य झाँकता रहता है और वह जीवन में बिना सूचना दिये कभी भी आ सकता है । सौभाग्य के समय में वे दुर्भाग्य को पराजित करने की प्रक्रिया को क्रियान्वित करते हैं---- गायत्री मंत्र का जप, सेवा, निष्काम कर्म आदि श्रेष्ठ कार्यों को करते हुए अहंकाररहित जीवन जीते हैं । जिससे उनके जीवन में भगवत चेतना ढाल बनकर खड़ी हो जाती है उनके जीवन में दुर्भाग्य दब-छिपकर नहीं आता, वे इससे परिचित होते हैं । उनके लिये दुर्भाग्य महज एक खेल का विषय बन जाता है, वे इसे सामान्य जनों की अपेक्षा अधिक आसानी से झेल जाते हैं ।
हम भी सांसारिक दायित्वों को निभाते हुए निरंतर ईश्वर का सुमिरन करें और सत्कर्म करें जिससे दुर्भाग्य का ताप कमजोर हो ।
जीवन को आर-पार देखने वाले महापुरुष सजग रहते हैं । वे जीवन के सौभाग्य काल में मदमस्त नहीं होते, इस काल को वे गहन तपस्या, सेवा आदि उत्कृष्ट कार्यों में लगाते हैं क्योंकि उन्हें पता रहता है कि सौभाग्य की आड़ में दुर्भाग्य झाँकता रहता है और वह जीवन में बिना सूचना दिये कभी भी आ सकता है । सौभाग्य के समय में वे दुर्भाग्य को पराजित करने की प्रक्रिया को क्रियान्वित करते हैं---- गायत्री मंत्र का जप, सेवा, निष्काम कर्म आदि श्रेष्ठ कार्यों को करते हुए अहंकाररहित जीवन जीते हैं । जिससे उनके जीवन में भगवत चेतना ढाल बनकर खड़ी हो जाती है उनके जीवन में दुर्भाग्य दब-छिपकर नहीं आता, वे इससे परिचित होते हैं । उनके लिये दुर्भाग्य महज एक खेल का विषय बन जाता है, वे इसे सामान्य जनों की अपेक्षा अधिक आसानी से झेल जाते हैं ।
हम भी सांसारिक दायित्वों को निभाते हुए निरंतर ईश्वर का सुमिरन करें और सत्कर्म करें जिससे दुर्भाग्य का ताप कमजोर हो ।