' व्यक्ति की महता नहीं है । महता है उसकी अंतरात्मा में स्थित अंत: शक्ति की । जो सदा अपनी अंत: शक्ति को विकसित करता है और उसे अहंकार से बचाए रखता है वही राष्ट्र निर्माण में सबसे आगे खड़ा रहता है '
भारत के सफलतम खाद्य-मंत्री के रूप में रफीअहमद किदवई को आज भी याद किया जाता है राजनेता होते हुए भी उनका जीवन सादगी की अदभुत प्रतिमा था । इस्लाम में आस्था होते हुए भी उसकी हर बात को उनने आँख मीचकर स्वीकार नहीं किया । 21 वर्ष की आयु में उनका विवाह हो गया था । उनकी एकमात्र संतान-- एक पुत्र सात वर्ष की आयु में चल बसा । लोगों ने शरीयत का उल्लेख देते हुए दूसरा विवाह करने को कहा । उनने दूसरा विवाह नहीं किया एवं पवित्र जीवन जिया । अपने खाद्य मंत्री पद पर रहते हुए वे वेश बदलकर जनता के बीच घूमते, उनकी समस्याएं जानने का प्रयास करते । खाद्यान के कृत्रिम संकट को वे इसी कारण कई बार हल करने में सफल हुए ।
कोई सुरक्षा कर्मचारी उनके साथ नहीं होता । कई व्यापारियों से छद्म वेश में ही घूमकर भाव-ताव पता लगाते । अपनी आत्मा की आवाज का अनुसरण कर अकेले अपने बलबूते पर उनने जो काम किये , वे स्मरणीय रहेंगे । 24 अक्टूबर 1954 को उनका देहावसान हो गया, पर उनने भारतीय मानस पर जो छाप छोड़ी है, वह अमिट रहेगी ।
भारत के सफलतम खाद्य-मंत्री के रूप में रफीअहमद किदवई को आज भी याद किया जाता है राजनेता होते हुए भी उनका जीवन सादगी की अदभुत प्रतिमा था । इस्लाम में आस्था होते हुए भी उसकी हर बात को उनने आँख मीचकर स्वीकार नहीं किया । 21 वर्ष की आयु में उनका विवाह हो गया था । उनकी एकमात्र संतान-- एक पुत्र सात वर्ष की आयु में चल बसा । लोगों ने शरीयत का उल्लेख देते हुए दूसरा विवाह करने को कहा । उनने दूसरा विवाह नहीं किया एवं पवित्र जीवन जिया । अपने खाद्य मंत्री पद पर रहते हुए वे वेश बदलकर जनता के बीच घूमते, उनकी समस्याएं जानने का प्रयास करते । खाद्यान के कृत्रिम संकट को वे इसी कारण कई बार हल करने में सफल हुए ।
कोई सुरक्षा कर्मचारी उनके साथ नहीं होता । कई व्यापारियों से छद्म वेश में ही घूमकर भाव-ताव पता लगाते । अपनी आत्मा की आवाज का अनुसरण कर अकेले अपने बलबूते पर उनने जो काम किये , वे स्मरणीय रहेंगे । 24 अक्टूबर 1954 को उनका देहावसान हो गया, पर उनने भारतीय मानस पर जो छाप छोड़ी है, वह अमिट रहेगी ।