दुराचारी से दुराचारी व्यक्ति भी ठान ले कि प्रभु मेरे हैं, मैं उनका हूँ, उनका अंश होने के नाते अब मुझसे कोई गलत कार्य नहीं होगा तो प्रभु दयालु हैं, वे उसे भी तार ( कृपा ) देते हैं |
अनन्य भाव से भगवान को भजने पर जीवन-द्रष्टि बदल जाती है ।
अंगुलीमाल जब डाकू के रूप में कुख्यात हो चुका था । अनेक नागरिकों की उँगलियाँ काटकर उनकी माला पहन कर घूमता था । सेनाएं भी उससे हार मान चुकी थीं । तब उसके पास चलकर गौतम बुद्ध आये । अंगुलीमाल ने उनसे बार-बार रुकने को कहा--" भिक्षु ! मैं तुम्हे मार दूंगा । "
तथागत बोले---" रुकना तो तुझे है पुत्र ! मैं तो कभी का ठहरा हुआ हूँ । भाग तो तू रहा है--जिंदगी से, अपने आप से, अपने भगवान से । तू रुक ! "
इतना कहते-कहते वे उसके नजदीक आ गये और जब तक वह कुछ समझ पाता, उनने उसे गले लगा लिया । पहली बार उसे सच्चा प्यार मिला । बुद्ध ने उसे संघ में शामिल कर लिया ।
धीरे-धीरे छिटपुट स्वर संघ में सुनाई देने लगे कि एक अपराधी हमारे बीच रह रहा है ।
भगवान ने अंगुलीमाल को धैर्य बनाये रखने को कहा और कहा कि कोई प्रतिक्रिया न करे । भगवान के पास सभी भिक्षुजन आये और सबने सामूहिक बात रखी कि अंगुलीमाल के संघ में शामिल होने के कारण संघ की बदनामी हो रही है ।
बुद्ध बोले--" वह तो पूर्व में डाकू था अब भिक्षु है, पर अब तुम में से बहुत सारे डाकू बनने की दिशा में चल रहे हो । उसे मार डालने की सोच रहे हो । यह क्या कर रहे हो ! "
एक बार भगवान बुद्ध ने उसे उसी क्षेत्र में भिक्षा मांगने भेजा जहाँ वह अपराधी बना था । लोगों में उसके प्रति द्वेष था, गुस्सा था । उसे पत्थर खाने पड़े । चोट खाकर वह मूर्च्छित होकर गिर
पड़ा । और तो कोई नहीं आया, भगवान बुद्ध आये, पत्थर हटाये, उसकी सेवा-शुश्रूषा की । जब वह चैतन्य हुआ तो कहा--" तुम एक घुड़की दे देते, सब भाग जाते, क्यों मार खाते रहे । "
अंगुलीमाल बोला---" प्रभु! कल तक मैं बेहोश था, आज ये बेहोश हैं । " उसे मोक्ष मिल गया ।
सोच बदलते ही व्यक्ति अपने को प्रभु के चरणों में सच्चे मन से अर्पित कर देता है और ऐसा अपराधी भी धर्मात्मा हो जाता है ।
अनन्य भाव से भगवान को भजने पर जीवन-द्रष्टि बदल जाती है ।
अंगुलीमाल जब डाकू के रूप में कुख्यात हो चुका था । अनेक नागरिकों की उँगलियाँ काटकर उनकी माला पहन कर घूमता था । सेनाएं भी उससे हार मान चुकी थीं । तब उसके पास चलकर गौतम बुद्ध आये । अंगुलीमाल ने उनसे बार-बार रुकने को कहा--" भिक्षु ! मैं तुम्हे मार दूंगा । "
तथागत बोले---" रुकना तो तुझे है पुत्र ! मैं तो कभी का ठहरा हुआ हूँ । भाग तो तू रहा है--जिंदगी से, अपने आप से, अपने भगवान से । तू रुक ! "
इतना कहते-कहते वे उसके नजदीक आ गये और जब तक वह कुछ समझ पाता, उनने उसे गले लगा लिया । पहली बार उसे सच्चा प्यार मिला । बुद्ध ने उसे संघ में शामिल कर लिया ।
धीरे-धीरे छिटपुट स्वर संघ में सुनाई देने लगे कि एक अपराधी हमारे बीच रह रहा है ।
भगवान ने अंगुलीमाल को धैर्य बनाये रखने को कहा और कहा कि कोई प्रतिक्रिया न करे । भगवान के पास सभी भिक्षुजन आये और सबने सामूहिक बात रखी कि अंगुलीमाल के संघ में शामिल होने के कारण संघ की बदनामी हो रही है ।
बुद्ध बोले--" वह तो पूर्व में डाकू था अब भिक्षु है, पर अब तुम में से बहुत सारे डाकू बनने की दिशा में चल रहे हो । उसे मार डालने की सोच रहे हो । यह क्या कर रहे हो ! "
एक बार भगवान बुद्ध ने उसे उसी क्षेत्र में भिक्षा मांगने भेजा जहाँ वह अपराधी बना था । लोगों में उसके प्रति द्वेष था, गुस्सा था । उसे पत्थर खाने पड़े । चोट खाकर वह मूर्च्छित होकर गिर
पड़ा । और तो कोई नहीं आया, भगवान बुद्ध आये, पत्थर हटाये, उसकी सेवा-शुश्रूषा की । जब वह चैतन्य हुआ तो कहा--" तुम एक घुड़की दे देते, सब भाग जाते, क्यों मार खाते रहे । "
अंगुलीमाल बोला---" प्रभु! कल तक मैं बेहोश था, आज ये बेहोश हैं । " उसे मोक्ष मिल गया ।
सोच बदलते ही व्यक्ति अपने को प्रभु के चरणों में सच्चे मन से अर्पित कर देता है और ऐसा अपराधी भी धर्मात्मा हो जाता है ।