'एक धनी राजकुमार भगवान बुद्ध के पास पहुंचा | उसने तथागत से प्रश्न किया --" हे प्रभु ! ये बताएँ कि मनुष्य को साधनों का उपभोग कैसे करना चाहिये, जिससे उसमे संग्रह की प्रवृति भी न पनपे और आवश्यकताएं भी पूर्ण होती रहें |"
बुद्ध बोले --" पुत्र ! मनुष्य को अल्प, सुलभ और निर्दोष, इन तीन व्रतों का पालन करते हुए भोग करना चाहिये | अल्प-- का अर्थ है कि जितने कम में हमारी आवश्यकताएं पूर्ण हो जायें, उतना ही भोग किया जाये | दूसरा-- उन वस्तुओं का उपभोग न करें, जो दुर्लभ या अत्याधिक मूल्यवान हों |
तीसरा-- इस बात का सदा ध्यान रखें कि उपयोग में लाई जाने वाली वस्तु दोषों से रहित अर्थात ईमानदारी से, परिश्रम और सदाचार से प्राप्त की गई हो | |
जो व्यक्ति इन व्रतों का पालन निष्ठापूर्वक करता है, वो कर्मों को करता हुआ भी उनसे लिप्त नहीं
होता |
बुद्ध बोले --" पुत्र ! मनुष्य को अल्प, सुलभ और निर्दोष, इन तीन व्रतों का पालन करते हुए भोग करना चाहिये | अल्प-- का अर्थ है कि जितने कम में हमारी आवश्यकताएं पूर्ण हो जायें, उतना ही भोग किया जाये | दूसरा-- उन वस्तुओं का उपभोग न करें, जो दुर्लभ या अत्याधिक मूल्यवान हों |
तीसरा-- इस बात का सदा ध्यान रखें कि उपयोग में लाई जाने वाली वस्तु दोषों से रहित अर्थात ईमानदारी से, परिश्रम और सदाचार से प्राप्त की गई हो | |
जो व्यक्ति इन व्रतों का पालन निष्ठापूर्वक करता है, वो कर्मों को करता हुआ भी उनसे लिप्त नहीं
होता |