' मानव सेवा ही है ईश्वर-आराधना '
जीवन सत्कर्मों के प्रभाव से विकसित एवं समुन्नत होता है और स्वार्थ -अहंकार के वशीभूत होकर पतन पराभव के गर्भ में चला जाता है | जीवन उनका सफल है जो औरों के काम आ सकें, दूसरों की सेवा कर सकें , प्रेरणा का प्रकाश बन सकें | ऐसे जीवन का छोटा सा अंश भी शतायु पार करने वाले से उत्कृष्ट एवं महान होता है |
अध्यात्म जगत के ध्रुवतारा कहलाने वाले शंकराचार्य ने 32 वर्ष के जीवन में ज्ञान, भक्ति, साधना, आराधना आदि क्षेत्रों में जो उपलब्धि प्राप्त की और मानव-जगत को नवीन दिशा दी, उसका कोई दूसरा उदाहरण नहीं है | ऐसा ही जीवन प्रकाश स्तम्भ की तरह चिरप्रेरणीय है |
जीवन सत्कर्मों के प्रभाव से विकसित एवं समुन्नत होता है और स्वार्थ -अहंकार के वशीभूत होकर पतन पराभव के गर्भ में चला जाता है | जीवन उनका सफल है जो औरों के काम आ सकें, दूसरों की सेवा कर सकें , प्रेरणा का प्रकाश बन सकें | ऐसे जीवन का छोटा सा अंश भी शतायु पार करने वाले से उत्कृष्ट एवं महान होता है |
अध्यात्म जगत के ध्रुवतारा कहलाने वाले शंकराचार्य ने 32 वर्ष के जीवन में ज्ञान, भक्ति, साधना, आराधना आदि क्षेत्रों में जो उपलब्धि प्राप्त की और मानव-जगत को नवीन दिशा दी, उसका कोई दूसरा उदाहरण नहीं है | ऐसा ही जीवन प्रकाश स्तम्भ की तरह चिरप्रेरणीय है |