हमारा अंतरंग बहिरंग को नियंत्रित करता है | जब शांत अंत:करण वाले व्यक्ति अधिकाधिक होंगे,तभी तो संसार में शांति होगी--आतंकवाद, युद्धोन्माद मिटेगा | निश्चित ही शांत अंत:करण वाले व्यक्ति अपने आस-पास भी ऊर्जा भरी शांति का संचार करते हैं | जब ह्रदय में शांति होगी तब बाहर भी शांति का साम्राज्य होगा |
मनुष्य आज लौकिक जीवन के शोर-शराबों में उलझकर अपने अंत: के स्वरों को सुनना भूल गया है | वह बहिर्मुखी अधिक है | बहिर्मुखी स्वभाव वाला चंचल चित जिसमे इंद्रियों पर नियंत्रण नहीं है, बार-बार भागता है, उन्ही में रमण करता है, जहाँ उसे तात्कालिक आकर्षण नजर आता है | दुनिया भर की आकांक्षा, महत्वाकांक्षाएं वह पाल लेता है | ढेर सारे साधनों का जखीरा खड़ा कर लेता है | कभी-कभी काम आने वाले, कभी भी काम में न आने वाले ढेरों संसाधन रखकर वह सोचता है कि उसके सुख की प्राप्ति में ये सभी मदद करेंगे, पर ऐसा होता नहीं है | मन व इन्द्रियाँ नियंत्रित होती नहीं, तृष्णा की अग्नि सतत जलती रहती है, जितना इसमें डालो, उतनी ही बढ़ती चली जाती है |
किसी भी प्रकार की साधना के पथ पर बढ़ने वाले के लिये मन का संयम सर्वाधिक महत्वपूर्ण शर्त है | हमें अपने मन को नियंत्रित करना सीखना होगा, उसे ढलान की ओर जाने से रोकना होगा |
मनुष्य आज लौकिक जीवन के शोर-शराबों में उलझकर अपने अंत: के स्वरों को सुनना भूल गया है | वह बहिर्मुखी अधिक है | बहिर्मुखी स्वभाव वाला चंचल चित जिसमे इंद्रियों पर नियंत्रण नहीं है, बार-बार भागता है, उन्ही में रमण करता है, जहाँ उसे तात्कालिक आकर्षण नजर आता है | दुनिया भर की आकांक्षा, महत्वाकांक्षाएं वह पाल लेता है | ढेर सारे साधनों का जखीरा खड़ा कर लेता है | कभी-कभी काम आने वाले, कभी भी काम में न आने वाले ढेरों संसाधन रखकर वह सोचता है कि उसके सुख की प्राप्ति में ये सभी मदद करेंगे, पर ऐसा होता नहीं है | मन व इन्द्रियाँ नियंत्रित होती नहीं, तृष्णा की अग्नि सतत जलती रहती है, जितना इसमें डालो, उतनी ही बढ़ती चली जाती है |
किसी भी प्रकार की साधना के पथ पर बढ़ने वाले के लिये मन का संयम सर्वाधिक महत्वपूर्ण शर्त है | हमें अपने मन को नियंत्रित करना सीखना होगा, उसे ढलान की ओर जाने से रोकना होगा |