' मन ही हमारा मित्र है, मन ही हमारा शत्रु है |यह मन बड़ा ताकतवर है, बड़ा चंचल भी है एवं वश में आ जाये, तो हमारा अपना एक अतिसशक्त सहायक भी है |'
स्वर्ग-नरक की आलंकारिक मान्यताएँ पौराणिक काल की काल्पनिक गाथाएं भर हैं |
वस्तुत: स्वर्ग आत्मसंतोष को कहते हैं | स्थायी आनंद भावनाओं का ही होता है | यदि व्यक्ति का द्रष्टिकोण परिष्कृत और क्रियाकलाप आदर्शवादी मान्यताओं के अनुरूप हों तो वह वस्तुत: स्वर्ग में ही जी रहा है |
नरक भी कोई लोक नहीं है |कुसंस्कारी , दुर्गुणी मनुष्य अपने ओछे चिंतन की आग में स्वयं ही हर घड़ी जलते रहते हैं | चिंता, भय, क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष, शोषण, प्रतिशोध की प्रवृति हर घड़ी विक्षुब्ध बनाये रहती हैं | ये नरक की अनुभूतिय हैं |
स्वर्ग-नरक की आलंकारिक मान्यताएँ पौराणिक काल की काल्पनिक गाथाएं भर हैं |
वस्तुत: स्वर्ग आत्मसंतोष को कहते हैं | स्थायी आनंद भावनाओं का ही होता है | यदि व्यक्ति का द्रष्टिकोण परिष्कृत और क्रियाकलाप आदर्शवादी मान्यताओं के अनुरूप हों तो वह वस्तुत: स्वर्ग में ही जी रहा है |
नरक भी कोई लोक नहीं है |कुसंस्कारी , दुर्गुणी मनुष्य अपने ओछे चिंतन की आग में स्वयं ही हर घड़ी जलते रहते हैं | चिंता, भय, क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष, शोषण, प्रतिशोध की प्रवृति हर घड़ी विक्षुब्ध बनाये रहती हैं | ये नरक की अनुभूतिय हैं |