संसार में जीवन के अनेक रूप हैं, अनेक रंग हैं, अनेक ढंग हैं | सभी जी रहें हैं , अपने अपने ढंग से | सबको अपनी-अपनी चिंता भी है | सभी सजग हैं ---अपने अधिकारों के बारे में, अपने खान-पान, भोग-लिप्सा, वासना और तृष्णा के बारे में | जिन्हें जितना मिला हुआ है, वह उससे और भी ज्यादा चाहते हैं | बस ! इसमें मजे की बात यह है कि यह सजगता, यह चिंता और चिंतन, वासना, तृष्णा और अहंता तक सीमित है | जीवन में क्या-क्या चाहिये, इसकी सबके पास लंबी सूची है और यह सूची हर दिन बढ़ती जाती है |
परंतु जीवन क्या है ? क्यों है ? इन प्रश्नों की न तो किसी को चिंता होती है और न ही किसी का चिंतन उस ओर मुड़ता है |
जीवन युद्ध संग्राम है, जो इसमें संघर्ष करते हुए आगे बढ़ जाता है, वह महान बनता चला जाता है | इस महासमर में तनाव से गुजरते हुए यदि शांति चाहिये, हम किसी भी क्षण परेशान व दुखी न हों तो इसके लिये यह अनिवार्य है कि हम अपने सांसारिक कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए सदैव ईश्वर की शरण में रहें , अपने जीवन के सभी कार्यों को करते हुए ईश्वर का सुमिरन करें, उन पर द्रढ़ विश्वास रखें | ऐसा करने से जीवन में भक्ति का समावेश हो जाता है | जीवन में आने वाली हर अच्छी-बुरी परिस्थिति में जब व्यक्ति पूर्ण आस्था और विश्वास के साथ जब भगवान को पुकारता है तो ऐसे व्यक्ति के अंदर ऐसी पात्रता आ जाती है कि वह बिगड़े हुए सांसारिक कार्यों को सुलझा सकता है , संवार सकता है |
ईश्वर विश्वास और कर्तव्य पालन के साथ भगवान का स्मरण करने से हम प्रतिकूलताओं में भी शांति से, तनाव-रहित जीवन जीना सीख जाते है | तब प्रतिकूलताएं हमारे लिये परेशानी नहीं बल्कि ' अवसर ' हैं | यही अवसर व्यक्ति के जीवन को ऊँचाइयों तक ले जाता है और इस अवसर के चूक जाने पर व्यक्ति वहीँ का वहीँ खड़ा रह जाता है |
हम प्रार्थना करें कि हमारे अंदर विवेक का जागरण हो, हमें अपने जीवन के औचित्य एवं उद्देश्य का भान हो ताकि निरर्थक कार्यों में लगने वाला समय व चिंतन सार्थकता की ओर मुड़ चले, हमारा जीवन-पथ प्रकाशित हो |
परंतु जीवन क्या है ? क्यों है ? इन प्रश्नों की न तो किसी को चिंता होती है और न ही किसी का चिंतन उस ओर मुड़ता है |
जीवन युद्ध संग्राम है, जो इसमें संघर्ष करते हुए आगे बढ़ जाता है, वह महान बनता चला जाता है | इस महासमर में तनाव से गुजरते हुए यदि शांति चाहिये, हम किसी भी क्षण परेशान व दुखी न हों तो इसके लिये यह अनिवार्य है कि हम अपने सांसारिक कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए सदैव ईश्वर की शरण में रहें , अपने जीवन के सभी कार्यों को करते हुए ईश्वर का सुमिरन करें, उन पर द्रढ़ विश्वास रखें | ऐसा करने से जीवन में भक्ति का समावेश हो जाता है | जीवन में आने वाली हर अच्छी-बुरी परिस्थिति में जब व्यक्ति पूर्ण आस्था और विश्वास के साथ जब भगवान को पुकारता है तो ऐसे व्यक्ति के अंदर ऐसी पात्रता आ जाती है कि वह बिगड़े हुए सांसारिक कार्यों को सुलझा सकता है , संवार सकता है |
ईश्वर विश्वास और कर्तव्य पालन के साथ भगवान का स्मरण करने से हम प्रतिकूलताओं में भी शांति से, तनाव-रहित जीवन जीना सीख जाते है | तब प्रतिकूलताएं हमारे लिये परेशानी नहीं बल्कि ' अवसर ' हैं | यही अवसर व्यक्ति के जीवन को ऊँचाइयों तक ले जाता है और इस अवसर के चूक जाने पर व्यक्ति वहीँ का वहीँ खड़ा रह जाता है |
हम प्रार्थना करें कि हमारे अंदर विवेक का जागरण हो, हमें अपने जीवन के औचित्य एवं उद्देश्य का भान हो ताकि निरर्थक कार्यों में लगने वाला समय व चिंतन सार्थकता की ओर मुड़ चले, हमारा जीवन-पथ प्रकाशित हो |