7 January 2014

बुद्धियोग

श्रीमदभगवद्गीता  में  श्री भगवान  कहते  हैं -" मेरा  ही  ध्यान  करने  वाले  मुझमे  प्रीति  रखने  वाले  भक्तों  को  उनकी  भक्ति  के  फलस्वरूप  मैं  उन्हें  बुद्धियोग  प्रदान  करता  हूँ  |
  जैसे  ही  भक्त  भगवान  की  शरण  में  जाता  है, उसकी  भावनाएं  भगवान  की  ओर  उन्मुख  होती  हैं , उसका  संबंध  भगवान  से  हो  जाता  है  | सच्चा  भक्त  वास्तव  में  कुछ  नहीं  चाहता  | वह  सारी  जिम्मेदारी
भगवान  पर  सौंप  देता  है  |  इसी  के  परिणाम स्वरुप  भगवान  उसे  बुद्धियोग  प्रदान  करते  हैं  |
          यह  बुद्धियोग  है  भगवान  का  सबसे  प्रिय  और  विलक्षण  दैवी  अनुदान -- भक्त  की  श्रद्धा  से  जुड़ा  ज्ञान  | विवेक  और  श्रद्धा  का  युग्म  है  बुद्धि  योग  जो  हमें  कर्मों  को  कुशलतापूर्वक  संपन्न  करना  सिखाता  है  | श्रद्धा  के  पास  अनंत  का  बल  है  | श्रद्धायुक्त  बुद्धि  नकारात्मकता  में  भी  सकारात्मकता  पैदा  कर  देती  है  |