श्रीमदभगवद्गीता में श्री भगवान कहते हैं -" मेरा ही ध्यान करने वाले मुझमे प्रीति रखने वाले भक्तों को उनकी भक्ति के फलस्वरूप मैं उन्हें बुद्धियोग प्रदान करता हूँ |
जैसे ही भक्त भगवान की शरण में जाता है, उसकी भावनाएं भगवान की ओर उन्मुख होती हैं , उसका संबंध भगवान से हो जाता है | सच्चा भक्त वास्तव में कुछ नहीं चाहता | वह सारी जिम्मेदारी
भगवान पर सौंप देता है | इसी के परिणाम स्वरुप भगवान उसे बुद्धियोग प्रदान करते हैं |
यह बुद्धियोग है भगवान का सबसे प्रिय और विलक्षण दैवी अनुदान -- भक्त की श्रद्धा से जुड़ा ज्ञान | विवेक और श्रद्धा का युग्म है बुद्धि योग जो हमें कर्मों को कुशलतापूर्वक संपन्न करना सिखाता है | श्रद्धा के पास अनंत का बल है | श्रद्धायुक्त बुद्धि नकारात्मकता में भी सकारात्मकता पैदा कर देती है |
जैसे ही भक्त भगवान की शरण में जाता है, उसकी भावनाएं भगवान की ओर उन्मुख होती हैं , उसका संबंध भगवान से हो जाता है | सच्चा भक्त वास्तव में कुछ नहीं चाहता | वह सारी जिम्मेदारी
भगवान पर सौंप देता है | इसी के परिणाम स्वरुप भगवान उसे बुद्धियोग प्रदान करते हैं |
यह बुद्धियोग है भगवान का सबसे प्रिय और विलक्षण दैवी अनुदान -- भक्त की श्रद्धा से जुड़ा ज्ञान | विवेक और श्रद्धा का युग्म है बुद्धि योग जो हमें कर्मों को कुशलतापूर्वक संपन्न करना सिखाता है | श्रद्धा के पास अनंत का बल है | श्रद्धायुक्त बुद्धि नकारात्मकता में भी सकारात्मकता पैदा कर देती है |