' दुष्प्रवृतियाँ बिना हमारे सहयोग के विकसित नहीं हो सकतीं , जिस दिन हम उनको सहारा देना बंद करते हैं , उनका निष्कासन सहज हो जाता है | '
एक व्यक्ति एक संत के पास पहुंचा और उनसे अनुरोध करने लगा कि उसे क्रोध बहुत आता है , उससे छुटकारे का कोई उपाय वे उसे बता दें | संत धीरे से हँसे और अपनी मुट्ठी बाँधकर बोले --" मेरी मुट्ठी बंद हो गई है , इसे खोलने के लिये मुझे क्या करना होगा ?" वह व्यक्ति अचरज में पड़कर बोला --"महाराज ! आप कैसी विचित्र बातें करते हैं , मुट्ठी तो आपने ही बंद की है तो इसे खोल भी आप ही सकते हैं | "
महात्मा बोले --" जब ये मुट्ठी मुझे बाँध नहीं सकती तो क्रोध तुम्हे कैसे जकड़ सकता है | जिस अंत:करण से क्रोध को पकड़कर बैठे हो , उसी से छोड़ दो तो किसी से इसके छुटकारे का मार्ग नहीं पूछना पड़ेगा | "
क्रोध , दंभ और अहंकार अंदर के विकार हैं जो व्यक्ति के विवेक का हरण कर लेते हैं | भक्ति के द्वारा ही इन्हें समाप्त किया जा सकता है | भक्ति के द्वारा परमात्मा की कृपा प्राप्त होती है , तभी अंदर और बाहर के शत्रुओं पर विजय प्राप्त की जा सकती है |
एक व्यक्ति एक संत के पास पहुंचा और उनसे अनुरोध करने लगा कि उसे क्रोध बहुत आता है , उससे छुटकारे का कोई उपाय वे उसे बता दें | संत धीरे से हँसे और अपनी मुट्ठी बाँधकर बोले --" मेरी मुट्ठी बंद हो गई है , इसे खोलने के लिये मुझे क्या करना होगा ?" वह व्यक्ति अचरज में पड़कर बोला --"महाराज ! आप कैसी विचित्र बातें करते हैं , मुट्ठी तो आपने ही बंद की है तो इसे खोल भी आप ही सकते हैं | "
महात्मा बोले --" जब ये मुट्ठी मुझे बाँध नहीं सकती तो क्रोध तुम्हे कैसे जकड़ सकता है | जिस अंत:करण से क्रोध को पकड़कर बैठे हो , उसी से छोड़ दो तो किसी से इसके छुटकारे का मार्ग नहीं पूछना पड़ेगा | "
क्रोध , दंभ और अहंकार अंदर के विकार हैं जो व्यक्ति के विवेक का हरण कर लेते हैं | भक्ति के द्वारा ही इन्हें समाप्त किया जा सकता है | भक्ति के द्वारा परमात्मा की कृपा प्राप्त होती है , तभी अंदर और बाहर के शत्रुओं पर विजय प्राप्त की जा सकती है |