' जिसका जिस विषय में जितना अनुभव है, उसका उस विषय में उतना ही ज्ञान है ।
यदि अनुभव का अभाव है तो विचारों को कितने ही जतन से और कितनी ही कोशिशों से इकट्ठा किया गया हो, वह सब का सब व्यर्थ है, क्योंकि उसके आधार पर झूठी विद्वता का प्रदर्शन तो किया जा सकता है, लेकिन जिंदगी की जटिल पहेलियाँ नहीं सुलझाई जा सकतीं । उलझी हुई समस्याओं के समाधान नहीं ढूंढे जा सकते ।
इस संबंध में पुराणों में एक अत्यंत रोचक कथा है------
प्राचीन भारत में कुलीन ब्राह्मण उच्च कोटि की शिक्षा प्राप्त करने वाराणसी जाया करते थे ।
श्वेतांक के माता-पिता ने कुल की परंपरा का पालन करते हुए पुत्र श्वेतांक को अध्ययन के लिये काशी भेजा और भगवान सदाशिव से प्रार्थना की-- " हे प्रभु ! हमारे पुत्र का हाथ थामना, इसे भटकने मत देना । " वृद्ध दंपती की यह पुकार जैसे कहीं सुन ली गई ।
श्वेतांक ने दीर्घकाल तक काशी में रहकर वेद-शास्त्रों का अध्ययन किया । सभी उसकी प्रखर मेधा और विलक्षण तर्कशक्ति से प्रभावित थे । सभी से मिलने वाली प्रशंसा ने श्वेतांक के मन में अभिमान जगा दिया, उसे यह भान होने लगा कि वह सचमुच ही ज्ञानी है
अपने ज्ञान के अभिमान के साथ श्वेतांक अपने घर के लिये प्रस्थान कर रहे थे । उनके साथ शास्त्रों के, पोथियों के बड़े गट्ठर भी थे, साथ ही उन प्रमाण पत्रों, उपाधियों व पदकों का भी अंबार था जिन्हें वे अपने विद्दार्थी जीवन की कमाई समझते थे । उनके घर के रास्ते में नदी थी, घर पहुँचने के लिये इसे पार करना था । नदी के तट पर पहुँचने पर उनने मल्लाह को आवाज लगाई । उनकी आवाज सुनते ही एक वृद्ध मल्लाह वहां आ गया, उसके साथ उसकी पत्नी भी थी ।
नाव में बैठने के कुछ देर बाद श्वेतांक ने मल्लाह दंपती को अपने ज्ञान की, शास्त्रों की बातें बतानी शुरू की , कुछ देर तक सुनाते रहे फिर बोले-- "तुम लोगों को ये सब सुनाने-बताने का क्या फायदा ? तुम लोग तो ठहरे निपट मूर्ख-गँवार , ये ज्ञान की बातें तुम दोनों को कैसे समझ में आयेंगी । " यह सुनकर वृद्ध मल्लाह ने कहा-- " पुत्र ! ज्ञान क्या केवल पोथियों में रहता है ? मैंने तो सुना है जिंदगी के लौकिक और अलौकिक अनुभव ज्ञान देते हैं । "
उनकी इस बात पर श्वेतांक हँसने लगा , उनकी आपस में बातें चल रही थीं, तभी नदी में तूफान आ गया , नाव बीच धारा में थी, डांवाडोल होने लगी । श्वेतांक ने घबराकर कहा-- " नाव को किसी भी तरह किनारे ले चलो । " वृद्ध मल्लाह ने कहा-- " बेटा ! क्या इसका ज्ञान तुम्हारी किसी पोथी में है ?"
श्वेतांक ने डरे हुए स्वर में कहा-- " मैंने यह सब नहीं पढ़ा । " मल्लाह ने कहा कोई बात नहीं, " तुम्हे अपने जीवन और पोथियों में से किसी एक को चुनना होगा, नाव किनारे ले जाने का यही उपाय है'
श्वेतांक ने झटपट पुस्तकों के गट्ठर नदी में फेंक दिए, अचरज की बात तूफान भी हलका हो गया और नाव किनारे चल पड़ी । अब वृद्ध मल्लाह ने उससे कहा--" बेटा ! जीवन का अध्ययन और अनुभव ही ज्ञान है । यह जितना गहन व व्यापक होता है, उतना ही मनुष्य का ज्ञान भी व्यापक बनता है । विचारों के एकत्रीकरण का कोई लाभ नहीं है । श्रेष्ठ विचारों का क्रियान्वयन एवं इनका व्यावहारिक अनुभव ही जीवन को सफल व सार्थक बनाता है । " श्वेतांक ने उनके चरण पकड़ लिये, सिर उठाकर देखा तो भगवान सदाशिव और माता पार्वती हैं । उसे ज्ञान का सही अर्थ मालुम हो गया ।
यदि अनुभव का अभाव है तो विचारों को कितने ही जतन से और कितनी ही कोशिशों से इकट्ठा किया गया हो, वह सब का सब व्यर्थ है, क्योंकि उसके आधार पर झूठी विद्वता का प्रदर्शन तो किया जा सकता है, लेकिन जिंदगी की जटिल पहेलियाँ नहीं सुलझाई जा सकतीं । उलझी हुई समस्याओं के समाधान नहीं ढूंढे जा सकते ।
इस संबंध में पुराणों में एक अत्यंत रोचक कथा है------
प्राचीन भारत में कुलीन ब्राह्मण उच्च कोटि की शिक्षा प्राप्त करने वाराणसी जाया करते थे ।
श्वेतांक के माता-पिता ने कुल की परंपरा का पालन करते हुए पुत्र श्वेतांक को अध्ययन के लिये काशी भेजा और भगवान सदाशिव से प्रार्थना की-- " हे प्रभु ! हमारे पुत्र का हाथ थामना, इसे भटकने मत देना । " वृद्ध दंपती की यह पुकार जैसे कहीं सुन ली गई ।
श्वेतांक ने दीर्घकाल तक काशी में रहकर वेद-शास्त्रों का अध्ययन किया । सभी उसकी प्रखर मेधा और विलक्षण तर्कशक्ति से प्रभावित थे । सभी से मिलने वाली प्रशंसा ने श्वेतांक के मन में अभिमान जगा दिया, उसे यह भान होने लगा कि वह सचमुच ही ज्ञानी है
अपने ज्ञान के अभिमान के साथ श्वेतांक अपने घर के लिये प्रस्थान कर रहे थे । उनके साथ शास्त्रों के, पोथियों के बड़े गट्ठर भी थे, साथ ही उन प्रमाण पत्रों, उपाधियों व पदकों का भी अंबार था जिन्हें वे अपने विद्दार्थी जीवन की कमाई समझते थे । उनके घर के रास्ते में नदी थी, घर पहुँचने के लिये इसे पार करना था । नदी के तट पर पहुँचने पर उनने मल्लाह को आवाज लगाई । उनकी आवाज सुनते ही एक वृद्ध मल्लाह वहां आ गया, उसके साथ उसकी पत्नी भी थी ।
नाव में बैठने के कुछ देर बाद श्वेतांक ने मल्लाह दंपती को अपने ज्ञान की, शास्त्रों की बातें बतानी शुरू की , कुछ देर तक सुनाते रहे फिर बोले-- "तुम लोगों को ये सब सुनाने-बताने का क्या फायदा ? तुम लोग तो ठहरे निपट मूर्ख-गँवार , ये ज्ञान की बातें तुम दोनों को कैसे समझ में आयेंगी । " यह सुनकर वृद्ध मल्लाह ने कहा-- " पुत्र ! ज्ञान क्या केवल पोथियों में रहता है ? मैंने तो सुना है जिंदगी के लौकिक और अलौकिक अनुभव ज्ञान देते हैं । "
उनकी इस बात पर श्वेतांक हँसने लगा , उनकी आपस में बातें चल रही थीं, तभी नदी में तूफान आ गया , नाव बीच धारा में थी, डांवाडोल होने लगी । श्वेतांक ने घबराकर कहा-- " नाव को किसी भी तरह किनारे ले चलो । " वृद्ध मल्लाह ने कहा-- " बेटा ! क्या इसका ज्ञान तुम्हारी किसी पोथी में है ?"
श्वेतांक ने डरे हुए स्वर में कहा-- " मैंने यह सब नहीं पढ़ा । " मल्लाह ने कहा कोई बात नहीं, " तुम्हे अपने जीवन और पोथियों में से किसी एक को चुनना होगा, नाव किनारे ले जाने का यही उपाय है'
श्वेतांक ने झटपट पुस्तकों के गट्ठर नदी में फेंक दिए, अचरज की बात तूफान भी हलका हो गया और नाव किनारे चल पड़ी । अब वृद्ध मल्लाह ने उससे कहा--" बेटा ! जीवन का अध्ययन और अनुभव ही ज्ञान है । यह जितना गहन व व्यापक होता है, उतना ही मनुष्य का ज्ञान भी व्यापक बनता है । विचारों के एकत्रीकरण का कोई लाभ नहीं है । श्रेष्ठ विचारों का क्रियान्वयन एवं इनका व्यावहारिक अनुभव ही जीवन को सफल व सार्थक बनाता है । " श्वेतांक ने उनके चरण पकड़ लिये, सिर उठाकर देखा तो भगवान सदाशिव और माता पार्वती हैं । उसे ज्ञान का सही अर्थ मालुम हो गया ।
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