30 December 2013

WISDOM

हर   इनसान   के   अंदर  देवता   का   वास   होता   है , जो   उसे   अच्छे   कार्य   के   लिये   प्रेरित   करता   है   और   ठीक   इसके   विपरीत   हर   इनसान   के   भीतर   एक   शैतान   भी   होता   है   ।   शैतान   हमेशा   अपने   लिये   राह   ढूँढ़ता  रहता  है  , उचित   परिस्थिति   का   इंतजार   करता   रहता   है  और   अनुकूल   परिस्थितियां   पाते   ही   बाहर   निकल   आता   है  , यहीं   से   अपराध   की   यात्रा   प्रारम्भ   होती   है   जो   व्यक्ति   को   एक   गहरे   दलदल   में   धकेल   देती   है   ।   ऐसा   व्यक्ति   स्वयं   परेशान   रहता   है   और   औरों   को   भी   परेशान  करता   है   । 
       इसके   विपरीत   अंदर   के   देवता   को   प्रश्रय   देने   पर   वह   हमें   सत्प्रेरणा   प्रदान   करता   है  ।  उत्कृष्ट   विचार   और   श्रेष्ठ   चिंतन   करने   से  , सतत   श्रेष्ठ   कर्म   करने   से   हमारे   अंदर   देवत्व   का   उदय   होता   है   ।  निष्काम   कर्म   करने   से  , औरों   के   प्रति   सदभाव   रखने   से  , कष्ट   सहकर   भी   सेवा   कार्य   करने   से   भावनाएं   निर्मल   होती   हैं , ह्रदय   परिष्कृत   होता   है  ।  अंदर   की   शैतानियत   को   मारने   की   यही   प्रक्रिया   है   ।  हमें   ईश्वर   से   प्रार्थना   करनी   चाहिए   कि   हम   सबको   सद्बुद्धि   मिले  ।   हमारे   अंतर्जगत   और   बाह्य   जगत   में   सर्वत्र   सद्बुद्धि   का   प्रकाश   हो