आंतरिक व बहिरंग दोनों ही जगत की सिद्धि का एक ही राजमार्ग है---मन: शक्ति का सार्थक सुनियोजन |
मन हमारा सबसे निकट का संबंधी है, वह शरीर से भी अधिक समीप रहने वाला हमारा स्वजन है |शरीर से तो सोते समय संबंध ढीले हो जाते हैं, मरने पर साथ छूट जाता है, पर मन तो जन्म-जन्मांतरों का साथी है और जब तक अपना अस्तित्व रहेगा , तब तक उसका साथ छूटने वाला नहीं है | मन मुख्य और शरीर गौण है | मन की समझदारी से अस्त-व्यस्तता दूर हो सकती है |
शरीर परिपुष्ट होने से मनोविकार दूर नहीं किये जा सकते | शरीर की सामर्थ्य तुच्छ है मन की महान | मन का शासन शरीर पर ही नहीं, जीवन के प्रत्येक क्षेत्र पर है | उत्थान-पतन का वही सूत्रधार है | मन को सशक्त बनाकर प्रतिकूलताओं में भी हम अपना अस्तित्व बनाये रख सकते हैं, स्वस्थ बने रह सकते हैं एवं उल्लास भरा जीवन बिता सकते हैं | इसी मन के दुर्बल पड़ने पर हम जीवित रहते हुए भी नारकीय वेदना की अनुभूति कर सकते हैं , घोर निराशा की स्थिति में आत्मघात करने की भी सोच सकते हैं |
शुद्ध मन ही हमारी बुद्धि की उन्नति करने वाला है | मन: स्थिति को भी श्रेष्ठ विचारों की खुराक निरंतर चाहिए | विचारों में वह शक्ति भरी पड़ी जों मुरदों में भी जान फूंक देती है | यदि श्रेष्ठ विचारों की संजीवनी हमें मिल जाये तो जीवन की सभी समस्याओं के हल का मार्ग हमें अपने अंदर से ही दिखाई देने लगेगा |
मन हमारा सबसे निकट का संबंधी है, वह शरीर से भी अधिक समीप रहने वाला हमारा स्वजन है |शरीर से तो सोते समय संबंध ढीले हो जाते हैं, मरने पर साथ छूट जाता है, पर मन तो जन्म-जन्मांतरों का साथी है और जब तक अपना अस्तित्व रहेगा , तब तक उसका साथ छूटने वाला नहीं है | मन मुख्य और शरीर गौण है | मन की समझदारी से अस्त-व्यस्तता दूर हो सकती है |
शरीर परिपुष्ट होने से मनोविकार दूर नहीं किये जा सकते | शरीर की सामर्थ्य तुच्छ है मन की महान | मन का शासन शरीर पर ही नहीं, जीवन के प्रत्येक क्षेत्र पर है | उत्थान-पतन का वही सूत्रधार है | मन को सशक्त बनाकर प्रतिकूलताओं में भी हम अपना अस्तित्व बनाये रख सकते हैं, स्वस्थ बने रह सकते हैं एवं उल्लास भरा जीवन बिता सकते हैं | इसी मन के दुर्बल पड़ने पर हम जीवित रहते हुए भी नारकीय वेदना की अनुभूति कर सकते हैं , घोर निराशा की स्थिति में आत्मघात करने की भी सोच सकते हैं |
शुद्ध मन ही हमारी बुद्धि की उन्नति करने वाला है | मन: स्थिति को भी श्रेष्ठ विचारों की खुराक निरंतर चाहिए | विचारों में वह शक्ति भरी पड़ी जों मुरदों में भी जान फूंक देती है | यदि श्रेष्ठ विचारों की संजीवनी हमें मिल जाये तो जीवन की सभी समस्याओं के हल का मार्ग हमें अपने अंदर से ही दिखाई देने लगेगा |