मनुष्य का पुरुषार्थ कितना ही प्रबल क्यों न हो वह सर्वसमर्थ परमात्मा को तनिक सा भी आकर्षित नहीं कर सकता | कर्मकांड अपनी जगह है पर प्राणहीन कर्मकांड किस काम का ?
भगवान को तो आकर्षित करती है भावनाओं से भरे ह्रदय की आर्त पुकार | भावाकुल ह्रदय की पुकार उन्हें व्याकुल कर देती है |
यह पुकारना सरल है , लेकिन उनके लिये जो सरल व निष्कपट हैं | जिनका ह्रदय शुद्ध है |
यह जटिल उनके लिये है , जो प्रेम व भावनाओं से रिक्त हैं | जो पुरुषार्थप्रिय हैं , उनके लिये अनेक तरह की साधनाएं हैं जैसे --हठयोग , राजयोग आदि |
लेकिन जो इन साधनाओं को करने में समर्थ नहीं हैं , जिन्हें स्मरण एवं समर्पण प्रिय है , उनके लिये भक्ति है |
भगवान का स्मरण करना हमारे विभिन्न कार्यों में से एक कार्य नहीं , हर पल , हर श्वास के साथ ईश्वर को याद करना | देवस्थान पर जाओ तो भगवान की याद , खेती करो तो भगवान की याद , मित्र से मिलो या शत्रु से , उच्च पद पर काम करो या छोटे पद पर , ईश्वर की याद सदा ही घेरे रहे क्योंकि परमात्मा की याद विविध स्मृतियों में से एक स्मृति नहीं है , यह तो महास्मृति है |
जैसे जैसे भक्त अपने भक्तिपथ पर चलता है , स्वयं भगवान आगे बढ़कर उसके अवरोध हटा देते हैं , फिर न कोई संपदा बाधा बनती है न कोई आपदा | भक्त भगवान की कृपा का अधिकारी बन जाता है |
भक्ति संसार से भागने का नाम नहीं है | संसार में रहकर कर्मयोगी की तरह अपने समस्त सांसारिक दायित्वों को निभाते हुए , हर पल , हर श्वास के साथ ईश्वर को याद रखने का नाम भक्ति है |
भगवान को तो आकर्षित करती है भावनाओं से भरे ह्रदय की आर्त पुकार | भावाकुल ह्रदय की पुकार उन्हें व्याकुल कर देती है |
यह पुकारना सरल है , लेकिन उनके लिये जो सरल व निष्कपट हैं | जिनका ह्रदय शुद्ध है |
यह जटिल उनके लिये है , जो प्रेम व भावनाओं से रिक्त हैं | जो पुरुषार्थप्रिय हैं , उनके लिये अनेक तरह की साधनाएं हैं जैसे --हठयोग , राजयोग आदि |
लेकिन जो इन साधनाओं को करने में समर्थ नहीं हैं , जिन्हें स्मरण एवं समर्पण प्रिय है , उनके लिये भक्ति है |
भगवान का स्मरण करना हमारे विभिन्न कार्यों में से एक कार्य नहीं , हर पल , हर श्वास के साथ ईश्वर को याद करना | देवस्थान पर जाओ तो भगवान की याद , खेती करो तो भगवान की याद , मित्र से मिलो या शत्रु से , उच्च पद पर काम करो या छोटे पद पर , ईश्वर की याद सदा ही घेरे रहे क्योंकि परमात्मा की याद विविध स्मृतियों में से एक स्मृति नहीं है , यह तो महास्मृति है |
जैसे जैसे भक्त अपने भक्तिपथ पर चलता है , स्वयं भगवान आगे बढ़कर उसके अवरोध हटा देते हैं , फिर न कोई संपदा बाधा बनती है न कोई आपदा | भक्त भगवान की कृपा का अधिकारी बन जाता है |
भक्ति संसार से भागने का नाम नहीं है | संसार में रहकर कर्मयोगी की तरह अपने समस्त सांसारिक दायित्वों को निभाते हुए , हर पल , हर श्वास के साथ ईश्वर को याद रखने का नाम भक्ति है |