' जीवन देने का नाम है -- जो है उसे देते चले जाओ , फिर वह सदभाव , सद्विचार व सत्कर्म कुछ भी हो
देने वाले को माँगना नहीं पड़ता , उन पर उपलब्धियाँ स्वाभाविक ही बरसती हैं |
सच्चा जीवन वही है , जो प्रकृति एवं परमेश्वर के साहचर्य में व्यतीत हो | यह सच है कि जीवन की सभी सामान्य व विशिष्ट आवश्यकताएं प्रकृति से ही पूरी होती हैं , परंतु इसके लिये मनुष्य निरंतर प्रकृति का दोहन-शोषण करता रहे , यह किसी भी तरह उचित नहीं है |
यदि प्रकृति का निरंतर पोषण होता रहे तो प्रकृति स्वत: ही अपना वैभव कोष लुटाती रहती है और अपनी सभी संतानों का माँ की भांति दुलार करती है |
हमें यथार्थ में प्रसन्नता प्रकृति के सान्निध्य से मिलती है | जितना हम प्रकृति से दूर जा रहे
हैं , बनावटी दुनिया में जी रहें हैं , उतना ही तनाव में जी रहें हैं | प्रकृति को इसलिए अदिति - देवमाता कहा जाता है | सद्गुणों की जननी है प्रकृति | जितना हम प्रकृति के नजदीक चलेंगे , उतना ही सद्गुणों से भरते जायेंगे |
देने वाले को माँगना नहीं पड़ता , उन पर उपलब्धियाँ स्वाभाविक ही बरसती हैं |
सच्चा जीवन वही है , जो प्रकृति एवं परमेश्वर के साहचर्य में व्यतीत हो | यह सच है कि जीवन की सभी सामान्य व विशिष्ट आवश्यकताएं प्रकृति से ही पूरी होती हैं , परंतु इसके लिये मनुष्य निरंतर प्रकृति का दोहन-शोषण करता रहे , यह किसी भी तरह उचित नहीं है |
यदि प्रकृति का निरंतर पोषण होता रहे तो प्रकृति स्वत: ही अपना वैभव कोष लुटाती रहती है और अपनी सभी संतानों का माँ की भांति दुलार करती है |
हमें यथार्थ में प्रसन्नता प्रकृति के सान्निध्य से मिलती है | जितना हम प्रकृति से दूर जा रहे
हैं , बनावटी दुनिया में जी रहें हैं , उतना ही तनाव में जी रहें हैं | प्रकृति को इसलिए अदिति - देवमाता कहा जाता है | सद्गुणों की जननी है प्रकृति | जितना हम प्रकृति के नजदीक चलेंगे , उतना ही सद्गुणों से भरते जायेंगे |