मानवीय मन- मस्तिष्क को शरीर का संचालन और नियमनकर्ता माना गया है | मन:शास्त्री इसे शरीर का स्वामी मानते हैं , किंतु भारतीय तत्व दर्शन मन को शरीर का संचालन करने के लिये आत्मा द्वारा नियुक्त एक कर्मचारी मात्र मानता है -- मानवीय काया में परमात्मा ने दस इंद्रियाँ प्रदान की हैं - पांच ज्ञानेंद्रियाँ और पांच कर्मेंद्रियाँ | यह शरीर एक रथ है , दसों इंद्रियाँ इस रथ के घोड़े हैं और मन इन घोड़ों पर नियंत्रण रखने वाली बागडोर , मन इंद्रियों का राजा है |
इस रथ का सारथी है -- मनुष्य की बुद्धि और विवेक | यदि यह सजग है , श्रेष्ठ विचार हैं तो मन की पवित्रता - प्रखरता न केवल मनुष्य के शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य , वरन आत्मोत्कर्ष का भी आधार बनती है |
जबकि कुसंस्कारी मन एक छुट्टल सांड की तरह है , जो केवल सब कुछ तहस-नहस करना जानता है मन को सकारात्मक तर्क , सुविचार और श्रेष्ठ चिंतन में लगाकर , इंद्रियों का सदुपयोग कर मनुष्य जीवन को सुखमय और सफल बनाया जा सकता है |
इस रथ का सारथी है -- मनुष्य की बुद्धि और विवेक | यदि यह सजग है , श्रेष्ठ विचार हैं तो मन की पवित्रता - प्रखरता न केवल मनुष्य के शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य , वरन आत्मोत्कर्ष का भी आधार बनती है |
जबकि कुसंस्कारी मन एक छुट्टल सांड की तरह है , जो केवल सब कुछ तहस-नहस करना जानता है मन को सकारात्मक तर्क , सुविचार और श्रेष्ठ चिंतन में लगाकर , इंद्रियों का सदुपयोग कर मनुष्य जीवन को सुखमय और सफल बनाया जा सकता है |