' अपना सुधार ही संसार की सर्वश्रेष्ठ सेवा है | ' मनुष्य को अपने आपको स्वयं अपने द्वारा ही ऊँचा उठाना चाहिये और अपने आपको अधोगति में नहीं डालना चाहिये | '
जीवन जीने की कला का एक महत्वपूर्ण सूत्र है -'-अपने मन पर अपना नियंत्रण | '
अपने आप को नीचे न गिरने दो , पतन से सावधानीपूर्वक बचो | '
जिसका मन जीता हुआ है ,इंद्रियों पर जिसका नियंत्रण है , वह अपने आकर्षक आभामंडल से अगणित लोगों को प्रभावित कर उन्हें भी उसी दिशा में गतिशील कर देगा |
लेकिन जिसका मन इंद्रियों का गुलाम है , वह क्या तो किसी को प्रभावित करेगा , खुद ही उस प्रवाह में बहता रहेगा और स्वयं अपने जीवन की दुर्गति करता दिखाई देगा |
यह आवश्यक है कि वैचारिक प्रदूषण से भरे इस समाज में कम-से-कम अपने चिंतन को उर्जावान और परिष्कृत बनाये रखें |
प्रख्यात शिक्षाविद और समाजसुधारक अश्विनी कुमार दत्त पढ़ाई में कुशाग्र थे | अपनी मेहनत के बल पर वे 14 वर्ष की आयु में ही इंटरमीडियेट की कक्षा में पहुँच गये | वहां उन्हें पता चला कि विश्वविद्दालय में उच्च अध्ययन के लिये न्यूनतम आयु सीमा 16 वर्ष है | उन्होंने अपने मित्रों से परामर्श किया तो उन्होंने सलाह दी कि गलत आयु लिखकर परीक्षा में बैठ जाएँ | उन्होंने ऐसा ही किया और उनका चयन विश्वविद्यालय में हो गया , परंतु उन्हें बाद में अपने इस कृत्य पर ग्लानि होने लगी | वे अपने संकाय अध्यक्ष से मिले और उन्हें सब सत्य जाहिर कर दिया | उन्होंने उनकी ईमानदारी की प्रशंसा कर उन्हें इस निर्णय पर अधिक चिंता न करने को कहा | फिर भी उन्हें शांति न मिली तो वे कुलसचिव से मिले | वहां से भी उन्हें वही जवाब मिला | तब प्रायश्चितस्वरुप उन्होंने दो वर्ष तक अपनी पढ़ाई बंद रखी और जब उनकी आयु निर्धारित मानकों के अनुरूप हो गई तो उन्होंने अध्ययन पुनः आरंभ किया | इस विषय पर पूछने पर वे बोले --- " समाज के क्षेत्र में कार्य करने वालों का आचरण पारदर्शी होना चाहिये | बेईमानी से प्राप्त योग्यता किसी को सन्मार्ग के लिये प्रेरित नहीं कर सकती | "
जीवन जीने की कला का एक महत्वपूर्ण सूत्र है -'-अपने मन पर अपना नियंत्रण | '
अपने आप को नीचे न गिरने दो , पतन से सावधानीपूर्वक बचो | '
जिसका मन जीता हुआ है ,इंद्रियों पर जिसका नियंत्रण है , वह अपने आकर्षक आभामंडल से अगणित लोगों को प्रभावित कर उन्हें भी उसी दिशा में गतिशील कर देगा |
लेकिन जिसका मन इंद्रियों का गुलाम है , वह क्या तो किसी को प्रभावित करेगा , खुद ही उस प्रवाह में बहता रहेगा और स्वयं अपने जीवन की दुर्गति करता दिखाई देगा |
यह आवश्यक है कि वैचारिक प्रदूषण से भरे इस समाज में कम-से-कम अपने चिंतन को उर्जावान और परिष्कृत बनाये रखें |
प्रख्यात शिक्षाविद और समाजसुधारक अश्विनी कुमार दत्त पढ़ाई में कुशाग्र थे | अपनी मेहनत के बल पर वे 14 वर्ष की आयु में ही इंटरमीडियेट की कक्षा में पहुँच गये | वहां उन्हें पता चला कि विश्वविद्दालय में उच्च अध्ययन के लिये न्यूनतम आयु सीमा 16 वर्ष है | उन्होंने अपने मित्रों से परामर्श किया तो उन्होंने सलाह दी कि गलत आयु लिखकर परीक्षा में बैठ जाएँ | उन्होंने ऐसा ही किया और उनका चयन विश्वविद्यालय में हो गया , परंतु उन्हें बाद में अपने इस कृत्य पर ग्लानि होने लगी | वे अपने संकाय अध्यक्ष से मिले और उन्हें सब सत्य जाहिर कर दिया | उन्होंने उनकी ईमानदारी की प्रशंसा कर उन्हें इस निर्णय पर अधिक चिंता न करने को कहा | फिर भी उन्हें शांति न मिली तो वे कुलसचिव से मिले | वहां से भी उन्हें वही जवाब मिला | तब प्रायश्चितस्वरुप उन्होंने दो वर्ष तक अपनी पढ़ाई बंद रखी और जब उनकी आयु निर्धारित मानकों के अनुरूप हो गई तो उन्होंने अध्ययन पुनः आरंभ किया | इस विषय पर पूछने पर वे बोले --- " समाज के क्षेत्र में कार्य करने वालों का आचरण पारदर्शी होना चाहिये | बेईमानी से प्राप्त योग्यता किसी को सन्मार्ग के लिये प्रेरित नहीं कर सकती | "