' Great minds must be ready not only to take opportunities , but to make them .'
सिकंदर हिंदुस्तान पर आक्रमण की तैयारी के साथ आ रहा था । अरस्तू का आशीर्वाद लेने पहुंचा । अरस्तू ने उसे समझाया , पर उसकी मह त्वाकांक्षा के समक्ष सब व्यर्थ था । उसने पूछा -" हिंदुस्तान से आपके लिये क्या लाऊं ?" गुरु ने कहा -" मेरे लिये वहां का एक दार्शनिक ज्ञानी व्यक्ति ले आना । "
भारी लूट , रक्तपात के बाद , सैन्य बल की भारी क्षति के बाद सिकंदर को लौटना पड़ा । लौटते हुए गुरु की याद आई । सोचा , एक विद्वान ले चलते हैं , गुरु को भेंट करेंगे ।
दंडायन की उन दिनों पश्चिमोतर भारत में ख्याति थी । सैनिकों से उसने कहा -" उन्हें लेकर आओ पर याद रहे , जिंदा ही लाना । मुझे अपने साथ लेकर जाना है । सैनिकों को दंडायन ने न केवल साफ मना कर दिया , बल्कि डांट भी लगाई , कहा -" हम उसके नौकर नहीं हैं । "
सिकंदर खुद लेने आया । बोला -" आपको ले जाने आया हूँ । इसके बदले जो चाहिये , वह मांग लीजिये । " दंडायन ने कहा --" तू क्या देगा सिकंदर ! पर एक चीज मत छीन । तू धूप के व मेरे बीच खड़ा है , इसे तो आने दे । याद रख ! तू जिस गुरु के लिये मुझे ले चलना चाह रहा है , वहां तक तू खुद नहीं पहुँच पायेगा । हाँ ! मैं तेरे गुरु तक पहुँच जाऊंगा । "
इतिहास साक्षी है कि सिकंदर के कैंप में बगावत हुई । वह अकाल मृत्यु को प्राप्त हुआ । दंडायन यूनान गये । वहां उनका नाम पड़ा -डायोजनिज । यही वह मोड़ था , जब यूनानी व भारतीय दर्शन एक दूसरे से जुड़े । दंडायन अमर हो गये ।
सिकंदर हिंदुस्तान पर आक्रमण की तैयारी के साथ आ रहा था । अरस्तू का आशीर्वाद लेने पहुंचा । अरस्तू ने उसे समझाया , पर उसकी मह त्वाकांक्षा के समक्ष सब व्यर्थ था । उसने पूछा -" हिंदुस्तान से आपके लिये क्या लाऊं ?" गुरु ने कहा -" मेरे लिये वहां का एक दार्शनिक ज्ञानी व्यक्ति ले आना । "
भारी लूट , रक्तपात के बाद , सैन्य बल की भारी क्षति के बाद सिकंदर को लौटना पड़ा । लौटते हुए गुरु की याद आई । सोचा , एक विद्वान ले चलते हैं , गुरु को भेंट करेंगे ।
दंडायन की उन दिनों पश्चिमोतर भारत में ख्याति थी । सैनिकों से उसने कहा -" उन्हें लेकर आओ पर याद रहे , जिंदा ही लाना । मुझे अपने साथ लेकर जाना है । सैनिकों को दंडायन ने न केवल साफ मना कर दिया , बल्कि डांट भी लगाई , कहा -" हम उसके नौकर नहीं हैं । "
सिकंदर खुद लेने आया । बोला -" आपको ले जाने आया हूँ । इसके बदले जो चाहिये , वह मांग लीजिये । " दंडायन ने कहा --" तू क्या देगा सिकंदर ! पर एक चीज मत छीन । तू धूप के व मेरे बीच खड़ा है , इसे तो आने दे । याद रख ! तू जिस गुरु के लिये मुझे ले चलना चाह रहा है , वहां तक तू खुद नहीं पहुँच पायेगा । हाँ ! मैं तेरे गुरु तक पहुँच जाऊंगा । "
इतिहास साक्षी है कि सिकंदर के कैंप में बगावत हुई । वह अकाल मृत्यु को प्राप्त हुआ । दंडायन यूनान गये । वहां उनका नाम पड़ा -डायोजनिज । यही वह मोड़ था , जब यूनानी व भारतीय दर्शन एक दूसरे से जुड़े । दंडायन अमर हो गये ।