' ज्ञान को आत्मा का नेत्र कहा गया है । ' नेत्र विहीन व्यक्ति के लिये सारा संसार अंधकारमय है । इसी प्रकार ज्ञानविहीन व्यक्ति के लिये इस संसार में जो कुछ भी उत्कृष्ट है , उसे देख पाना असंभव है । ज्ञान के आधार पर ही धर्म का , कर्तव्य का , शुभ -अशुभ का , उचित -अनुचित का विवेक होता है और पाप -प्रलोभनों के पार यह देख सकना संभव होता है कि अंतत: दूरवर्ती हित किसमें है
ज्ञान के दीपक का प्रकाश ही इंद्रियों की वासना और प्रलोभनों की तृष्णा से होने वाली दुर्दशा से बचा सकता है ।
' ज्ञान तो ' ध्यान ' का सुफल है । ' स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने कहा था -" यथार्थ ज्ञान विवेक ज्ञान है , जो पढ़ने से नहीं बल्कि चित शुद्धि से प्राप्त होता है । "
निष्काम कर्म से चित शुद्ध होता है , जो व्यक्ति को ध्यान के लिये सुपात्र बनाता है और ध्यान से उसे ज्ञान मिलता है ।
ज्ञान से ही दुःख दूर होते हैं । ज्ञान से ही अज्ञान का निवारण होता है , ज्ञान से ही सिद्धि प्राप्त होती है ।
ज्ञान के दीपक का प्रकाश ही इंद्रियों की वासना और प्रलोभनों की तृष्णा से होने वाली दुर्दशा से बचा सकता है ।
' ज्ञान तो ' ध्यान ' का सुफल है । ' स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने कहा था -" यथार्थ ज्ञान विवेक ज्ञान है , जो पढ़ने से नहीं बल्कि चित शुद्धि से प्राप्त होता है । "
निष्काम कर्म से चित शुद्ध होता है , जो व्यक्ति को ध्यान के लिये सुपात्र बनाता है और ध्यान से उसे ज्ञान मिलता है ।
ज्ञान से ही दुःख दूर होते हैं । ज्ञान से ही अज्ञान का निवारण होता है , ज्ञान से ही सिद्धि प्राप्त होती है ।